पंकज चतुव्रेदी का ब्लॉग: भुखमरी मिटाने के लिए जरूरी है अनाज की बर्बादी रोकना

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 28, 2019 09:44 AM2019-04-28T09:44:32+5:302019-04-28T09:44:32+5:30

हर साल 92600 करोड़ कीमत के 6.7 करोड़ टन खाद्य उत्पात की बर्बादी, वह भी उस देश में जहां बड़ी आबादी भूखे पेट सोती हो, बेहद गंभीर मामला है.

Blog of Pankaj Chaturvedi: To remove starvation | पंकज चतुव्रेदी का ब्लॉग: भुखमरी मिटाने के लिए जरूरी है अनाज की बर्बादी रोकना

पंकज चतुव्रेदी का ब्लॉग: भुखमरी मिटाने के लिए जरूरी है अनाज की बर्बादी रोकना

हम जितना खेतों में उगाते हैं, उसका 40 फीसदी उचित रखरखाव के अभाव में नष्ट हो जाता है. यह आकलन स्वयं सरकार का है. यह व्यर्थ गया अनाज बिहार जैसे राज्य का पेट भरने के लिए काफी है. 

हर साल 92600 करोड़ कीमत के 6.7 करोड़ टन खाद्य उत्पात की बर्बादी, वह भी उस देश में जहां बड़ी आबादी भूखे पेट सोती हो, बेहद गंभीर मामला है. विडंबना है कि विकसित कहे जाने वाले ब्रिटेन जैसे देश सालभर में जितना भोजन पैदा नहीं करते, उतना हमारी लापरवाही से बेकार हो जाता है. कुछ महीने पहले, अस्सी साल बाद जारी किए गए सामाजिक, आर्थिक और जातीय जनगणना के आंकड़े भारत की चमचमाती तस्वीर के पीछे का विद्रूप चेहरा उजागर करने के लिए काफी हैं.

देश के 51.14 प्रतिशत परिवार की आय का जरिया महज अस्थाई मजदूरी है. 4.08 लाख परिवार कूड़ा बीन कर तो 6.68 लाख परिवार भीख मांग कर अपना गुजारा करते हैं. गांव में रहने वाले 39.39 प्रतिशत परिवारों की औसत मासिक आय दस हजार रु. से भी कम है. आय और व्यय में असमानता की हर दिन गहरी होती खाई का ही परिणाम है कि कुछ दिनों पहले ही संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा जारी की गई रपट में बताया गया है कि भारत में 19.4 करोड़ लोग भूखे सोते हैं, हालांकि सरकार के प्रयासों से पहले से ऐसे लोगों की संख्या कम हुई है. हमारे यहां बीपीएल यानी बिलो पॉवर्टी लाइन अर्थात गरीबी की रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वालों की संख्या को ले कर भी गफलत है, हालांकि यह आंकड़ा 29 फीसदी के आसपास सर्वमान्य है. भूख, गरीबी, कुपोषण व उससे उपजने वाली स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधन प्रबंधन की दिक्कतें देश के विकास में सबसे बड़ी बाधक हैं. हमारे यहां न तो अन्न की कमी है और न ही रोजगार के लिए श्रम की. कागजों पर योजनाएं भी हैं, नहीं है तो उन योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार स्थानीय स्तर की मशीनरी में जिम्मेदारी व संवेदना.

भारत में सालाना 10 लाख टन प्याज और 22 लाख टन टमाटर खेत से बाजार पहुंचने से पहले ही सड़ जाते हैं. हमारे कुल उत्पाद में चावल का 5.8 प्रतिशत, गेहूं का 4.6 प्रतिशत, केले का 2.1 प्रतिशत खराब हो जाता है. वहीं गन्ने का 26.5 प्रतिशत हर साल बेकार होता है. जिस देश में नए खरीदे गए अनाज को रखने के लिए गोदामों में जगह नहीं है, वहां ऐसे भी लोग हैं जो अन्न के एक दाने के अभाव में दम तोड़ देते हैं. हर जरूरतमंद को अन्न मिले, इसके लिए सरकारी योजनाओं को तो थोड़ा चुस्त-दुरुस्त होना ही होगा, समाज को भी थोड़ा संवेदनशील बनना होगा. गांव स्तर पर अन्न बैंक, प्रत्येक गरीब, बेरोजगार के आंकड़े रखने जैसे कार्य में सरकार से ज्यादा समाज को अग्रणी भूमिका निभानी होगी. 

Web Title: Blog of Pankaj Chaturvedi: To remove starvation

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