ब्लॉग: नई संसद में अखंड भारत का चित्र...और भाजपा की पसमांदा रणनीति! क्या ये साबित होगा ‘गेम चेंजर’?

By अभय कुमार दुबे | Published: June 6, 2023 10:34 AM2023-06-06T10:34:55+5:302023-06-06T10:35:50+5:30

नए संसद भवन के एक हिस्से में 16 भित्ति चित्र बनाए गए हैं जिनमें एक ऐसा चित्र है जिसमें दिखाए गए भारत में अफगानिस्तान, बर्मा, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, तिब्बत, पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल हैं.

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ब्लॉग: नई संसद में अखंड भारत का चित्र...और भाजपा की पसमांदा रणनीति! क्या ये साबित होगा ‘गेम चेंजर’?

अभी इस घटना को बहुत दिन नहीं हुए हैं जब एक केंद्रीय राज्यमंत्री मराठी में भाषण देते हुए सुने गए थे कि प्रधानमंत्री प्याज और दाल की महंगाई कम करने के लिए नहीं चुने गए हैं बल्कि उन्होंने तो पाक-अधिकृत कश्मीर को वापस छीनने के लिए पद और गोपनीयता की शपथ ली है. यह एक ऐसा भाषण था जिसकी बड़े पैमाने पर चर्चा हुई. मंत्री महोदय को कई चैनलों ने यह सब बोलते हुए दिखाया. हां, इसके बाद उन्होंने ऐसी बात दोबारा नहीं बोली. लेकिन बात तो चले हुए तीर की तरह होती है. 

इस भाषण ने कई कयासों को जन्म दिया. यह तक कहा गया कि पिछला चुनाव तो बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक के दम पर जीता गया था, और यह चुनाव पाक कब्जे वाले कश्मीर को हस्तगत करने के अभियान के दम पर जीता जाएगा.

भाजपा सरकार संघ परिवार के कई विचारधारात्मक लक्ष्यों को पूरा कर चुकी है. राम मंदिर पूरा होने के कगार पर है. कश्मीर की धारा 370 के विवादास्पद अंश खत्म कर दिए गए हैं. गोहत्या पर तकरीबन सारे देश में पाबंदी है. तीन तलाक को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया है. मजहब बदलने के खिलाफ कई जगहों पर कानून बनने लगे हैं. नागरिकता का रजिस्टर बन ही रहा है. अब कसर केवल समान नागरिक संहिता लागू करने की रह गई है. उसके बाद तो फिर अखंड भारत बनाना ही शेष रह जाएगा. इस एक नारे के तहत कितने चुनाव और जीते जा सकते हैं, इसकी कल्पना करना भी अभी मुश्किल है.

राम माधव संघ परिवार के बुद्धिजीवी हैं जो हिंदू राष्ट्रवाद के लिए विमर्श बनाने का काम करते हैं. उन्होंने नया शब्द गढ़ा है- धर्मोक्रेसी. उन्होंने संसद के बीच सेंगोल की स्थापना को संसद के बाहर गांधी की प्रतिमा के साथ जोड़ दिया है ताकि रामराज्य, धर्मराज्य और लोकतंत्र को एक-दूसरे का पर्याय साबित किया जा सके. ये वही राम माधव हैं जिन्होंने 2015 में ‘अल जजीरा’ से बात करते हुए कहा था कि ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को आज भी यकीन है कि एक न एक दिन ये हिस्से (पाकिस्तान और बांग्लादेश), जो ऐतिहासिक कारणों से 60-65 साल पहले अलग हो गए थे, जनता की इच्छा के दबाव में एक साथ आएंगे तो अखंड भारत की रचना होगी. 

नई संसद जनता की इस कथित इच्छा को गढ़ने का पहला प्रयास लगती है. इसके भवन के एक हिस्से में 16 भित्ति चित्र बनाए गए हैं जिनमें एक ऐसा चित्र है जिसमें दिखाए गए भारत में अफगानिस्तान, बर्मा, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, तिब्बत, पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल हैं. यह अखंड भारत का चित्र है. उसी अखंड भारत का जिसे संघ परिवार पुण्यभूमि भारत की संज्ञा देता है. इसके तहत अफगानिस्तान को ‘उगंथन’, काबुल को ‘कुभा नगर’,  पेशावर को ‘पुरुषपुर’, मुल्तान को ‘मूलस्थान’, तिब्बत को ‘त्रिविश्त’, श्रीलंका को सिंहलद्वीप और म्यांमार को ‘ब्रह्मदेश’ का नाम दिया गया है.

1944 में मुस्लिम लीग द्वारा भारत के विभाजन की मांग के जवाब में हुई अखंड भारत कांफ्रेंस में बोलते हुए राष्ट्रवादी इतिहासकार राधाकुमुद मुखर्जी ने अखंड भारत का जो भौगोलिक वर्णन किया था, वह आज भी संघ परिवार के लिए संदर्भ-बिंदु बना हुआ है. चाहे संघ के दूसरे सरसंघचालक गोलवलकर हों या भारतीय जनसंघ की प्रमुख हस्ती दीनदयाल उपाध्याय हों या आज के कई वरिष्ठ नेता हों, अखंड भारत की शब्दावली संघ परिवार की जुबान पर चढ़ी ही रहती है. 

संसद में बने भित्ति चित्र पर पड़ोसी देश आपत्ति न करें इसलिए उसके नीचे लिख दिया गया है कि 235 से 28 ईसा पूर्व का अशोक साम्राज्य है जिसे बौद्ध धर्म का प्रसार करने का श्रेय जाता है. यह लिखना कितना जरूरी था इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि नेपाल के विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री प्रचंड से अपील की थी कि वे भारत-यात्रा के दौरान इस तरह के नक्शे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सफाई मांगें.

भाजपा प्रवक्ता बार-बार यही बात कहते हैं कि अगर देश के मुसलमान पिछड़ी हालत में हैं तो यह जवाबदेही उन्हें वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करने वाली कांग्रेस की है. चूंकि कांग्रेस के अलावा मुसलमानों के वोटों की दावेदार दलित-पिछड़ा नेतृत्व वाली पार्टियां भी अशरफों के नेतृत्व पर भरोसा करती हैं इसलिए भी भाजपा की यह पसमांदा रणनीति अगर पचास फीसदी भी सफल हो गई तो ‘गेम चेंजर’ साबित हो सकती है. 

यह एक ऐसा तीर है जो एक साथ दो निशाने साधेगा. पहला निशाना तो यह होगा कि मुसलमान वोटों का एक बड़ा हिस्सा पारंपरिक रूप से गैर-सांप्रदायिक पार्टियों से हट जाएगा, और दूसरा निशाना यह होगा कि हिंदू वोटों की गोलबंदी के मामले में जड़ता का सामना कर रही सत्तारूढ़ पार्टी को अपने राष्ट्रीय वोट 36-37 फीसदी से बढ़ा कर चालीस के पार ले जाने का मौका मिल जाएगा. यह पहलू भाजपा की धर्मोक्रेसी को सेकुलरक्रेसी भी बना देगा.

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