ब्लॉग: सरकारी कर्मचारियों की चिंता और निजी क्षेत्र को लेकर बेफिक्री!
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: August 26, 2024 10:36 AM2024-08-26T10:36:58+5:302024-08-26T10:39:56+5:30
लोकसभा चुनाव में सरकारी कर्मचारियों की कथित नाराजगी सहने के बाद केंद्र सरकार ने यूनिफाइड पेंशन स्कीम(यूपीएस) को शनिवार को मंजूरी दे दी. सरकार ने अपनी पीठ थपथपाते हुए नई पेंशन योजना को सरकारी कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा को लेकर चिंता से जुड़ा तक बता दिया.
लोकसभा चुनाव में सरकारी कर्मचारियों की कथित नाराजगी सहने के बाद केंद्र सरकार ने यूनिफाइड पेंशन स्कीम(यूपीएस) को शनिवार को मंजूरी दे दी. सरकार ने अपनी पीठ थपथपाते हुए नई पेंशन योजना को सरकारी कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा को लेकर चिंता से जुड़ा तक बता दिया. हालांकि पुरानी पेंशन योजना के लिए संघर्षरत संगठन सरकार की नई घोषणा से संतुष्ट नहीं हैं, फिर भी केंद्र ने यूपीएस को तार्किक स्तर तक ले जाने की कोशिश की है.
यह बताया गया है कि प्रधानमंत्री के निर्देशों पर पूर्व वित्त सचिव डॉ. सोमनाथन के नेतृत्व में एक कमेटी ने विचार-विमर्श कर योजना को तैयार किया. कमेटी ने करीब-करीब सभी राज्यों, श्रमिक संगठनों के साथ बातचीत की और दुनिया के दूसरे देशों की व्यवस्थाओं को समझकर योजना तैयार की, जिसे केंद्र सरकार की मंजूरी मिली. एक अप्रैल 2025 से लागू होने वाली योजना से केंद्र सरकार के 23 लाख कर्मचारियों को फायदा मिलेगा.
इसमें 10 साल तक की न्यूनतम सेवा की स्थिति में भी कर्मचारी को कम से कम 10 हजार रुपए प्रति माह पेंशन के रूप में मिलेंगे. इसमें सरकार ने वर्ष 2019 में किए सरकारी योगदान 14 फीसदी से बढ़ाकर 18.5 फीसदी तक कर दिया है, जिससे कर्मचारियों पर इसका कोई अतिरिक्त भार नहीं पड़ेगा. कुछ उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार केंद्र सरकार के लगभग 49.18 लाख कर्मचारी हैं और दूसरी ओर भारत के बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) में सूचीबद्ध शीर्ष 500 कंपनियों में लगभग 67.4 लाख लोगों को रोजगार मिला है. इसके अलावा अन्य अनेक क्षेत्र हैं, जिनमें लोग कार्यरत हैं. सरकार का दावा है कि बीते वित्त वर्ष में कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) योजना के माध्यम से निजी क्षेत्र से 1,09,93,119 नए ग्राहकों को जोड़ा गया. जो स्पष्ट करता है कि सरकारी की तुलना में निजी क्षेत्र के अलग-अलग भागों में बड़ी संख्या में कर्मचारी कार्यरत हैं. वे ईपीएफ के माध्यम से पेंशन के लिए अंशदान देते हैं. मगर ज्यादातर कर्मचारियों को पांच हजार रुपए से भी कम पेंशन मिलती है, जो वृद्धावस्था में दवाई के खर्च से भी कम साबित होती है.
इसे अनेक बार उच्चतम न्यायालय के समक्ष उठाया गया, जहां से न्यूनतम दस हजार रुपए की पेंशन देने की बात कही गई. किंतु सरकार ने उसके लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए. माना जाता है कि सरकार का कर्मचारी भविष्य निधि संगठन ईपीएफ के माध्यम से अच्छी-खासी मात्रा में धन एकत्र करता है, जिससे निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को पेंशन देने में अधिक समस्या नहीं हो सकती है. किंतु वोटों की चिंता में सरकार अपने कर्मचारियों के लिए रास्ते निकालती रहती है और निजी क्षेत्र के कर्मचारियों की आवाज दबाती है. वृद्धावस्था हर व्यक्ति के लिए समान होती है, चाहे वह निजी या सरकारी क्षेत्र से सेवानिवृत्त हुआ हो. ऐसे में निजी क्षेत्र के साथ सौतेला बर्ताव अपेक्षित नहीं है. सरकार को चाहिए कि वह सरकारी कर्मचारियों की तरह ही निजी क्षेत्र के लिए भी कोई योजना बनाए. वह उसे बेफिक्री के साथ न छोड़े, क्योंकि राष्ट्र निर्माण में हर क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान है.