शोभना जैन का ब्लॉग: चीन को समझना होगा कि भारत से सहज रिश्ते उसके हित में है
By शोभना जैन | Updated: September 8, 2020 09:41 IST2020-09-08T09:41:47+5:302020-09-08T09:41:47+5:30
चीन लगातार सीमा पर उकसाने वाली हड़कत कर रहा है. वो बेवजह विवादों को खड़ा कर रहा है. उसे ये समझना होगा कि भारत से खराब रिश्ते उसके हित में नहीं हैं.

चीन और भारत के बिगड़ते रिश्ते (प्रतीकात्मक तस्वीर)
चीन की नापाक हरकतों की वजह से वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत चीन सीमा विवाद और गंभीर होता जा रहा है. हाल ही में एक बार फिर चीन के सैनिकों ने पूर्वी लद्दाख सेक्टर में वायदा खिलाफी करते हुए वहां यथास्थति में बदलाव करने के मंसूबे से, पैंगांग त्सो झील के दक्षिणी किनारे पर भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करने की कोशिश की लेकिन सतर्क भारतीय सैनिकों ने उन्हें पीछे खदेड़ दिया. इस क्षेत्र में फिलहाल स्थिति बेहद तनावपूर्ण है.
दोनों देशों की फौजें आमने सामने डटी हैं. सामरिक मामलों के एक विशेषज्ञ के अनुसार भारत ने अब इस क्षेत्र में जिस तरह से विशेष फ्रंटियर बल के दस्ते तैनात किए, जो पर्वतीय युद्ध में पारंगत होते हैं, उससे चीन बुरी तरह से बौखला गया है. इस दस्ते में मुख्यत: तिब्बती शरणार्थी हैं. दूसरी तरफ चीन ने तिब्बत पर कब्जा तो कर लिया लेकिन अपनी सेना में वह तिब्बत के लोगों को शामिल नहीं कर पाया.
चीन जिस तरह से गत मई से वास्तविक नियंत्रण रेखा पर यथास्थिति को रह रह कर बदलने के लिए उकसावे वाली हरकतें कर रहा है. इस सब के चलते मौजूदा गतिरोध के फिलहाल तो जल्द कम होने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं उल्टे हाल की घटना से दोनों के बीच आपसी भरोसा और टूट रहा है, जिस से सैन्य टकराव का खतरा और बढ़ रहा है.
फिलहाल सबसे जरूरी प्राथमिकता है कि सैन्य टकराव की आशंका को खत्म नहीं तो कम से कम किया जाए और धीरे धीरे सीमा विवाद के हल की दिशा में प्रयास बढ़ाए जाएं. चीन को अब समझना होगा कि भारत के खिलाफ घेराबंदी कर पाकिस्तान के साथ साथ नेपाल को साथ मिलाने से वह भारत पर दबाव नहीं बढ़ा सकता है. दोनों ही ताकतवर पड़ोसी हैं. भारत के साथ रिश्तों को सहज बनाना उसके भी हित में हैं.
भारत और चीन सीमा पर स्थिति को सुलझाने के लिए पिछले तीन महीने से सैन्य और राजनयिक माध्यमों से परस्पर बातचीत कर रहे हैं. उनके विदेश मंत्री और विशेष प्रतिनिधि इस बात पर सहमत हुए हैं कि स्थिति को जिम्मेदाराना तरीके से सुलझाया जाना चाहिए और कोई भी पक्ष उकसाने वाली कार्रवाई न करे तथा यह सुनिश्चित किया जाए कि द्विपक्षीय समझौतों और प्रोटोकॉल के अनुरूप सीमा पर शांति बनी रहे.
इसके बावजूद चीन ने इस सहमति का उल्लंघन किया और 29 तथा 30 अगस्त को पेंगोंग झील के दक्षिण तट के क्षेत्र में यथास्थिति में बदलाव की कोशिश की. भारत ने देश के हितों की सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास यथोचित रक्षात्मक कार्रवाई कर यथास्थिति को बदलने की चीन की एकतरफा कोशिशों को नाकाम कर दिया.
इस घटना के बाद लद्दाख से ले कर अरुणाचल प्रदेश तक भारतीय सेना अब और अधिक सतर्क और मुस्तैद है.
दरअसल चीन ने भारत के खिलाफ इस तरह की आक्रामकता बढ़ाने के लिए यह समय ही क्यों चुना, उस की अपनी वजहें हैं. घरेलू उथल पुथल, असंतोष और कोविड की सूचना को शुरुआती दौर में दुनिया भर से छुपाने को ले चीन विश्व बिरादरी में अलग थलग पड़ गया है.
पाकिस्तान, नेपाल जैसे कुछ देशों को छोड़ कर उस के सभी पड़ोसी देश विकास कार्यों की आड़ में भारी निवेश कर अपना विस्तारवादी एजेंडा लागू करने को ले कर उससे काफी सतर्क हंै. दक्षिण चीन सागर में भी उसके साथ कोई देश नहीं है. जहां तक दक्षिण चीन सागर में अमेरिका, भारत समेत अन्य देशों के युद्धपोतों की तैनाती की बात है तो वहां अभ्यास चलता रहता है.
हिंद-प्रशांत महासागर को लेकर अमेरिका की रणनीति ‘ओपन सी’ रखने की है. भारत भी मानता है कि ‘ओपन सी’ की रणनीति होनी चाहिए. इसलिए वहां भारत समेत बहुत से देश अभ्यास कर रहे हैं. चीन ने हिंद महासागर के भी कई द्वीपों पर कब्जा किया हुआ है, वहां अपने सैन्य अड्डे बनाए हैं और भारत को चारों तरफ से घेरने की कोशिश की है.
भारत राजनयिक और आर्थिक दृष्टि से चीन को कड़े संदेश दे रहा है और सैन्य टकराव को टालने के लिए संयम बरतने के साथ ही सतर्कता बरते हुए सामरिक दृष्टि से मजबूती के लिए कदम उठा रहा है. चीन के साथ भारत राजनयिक और सैन्य स्तर पर बातचीत कर रहा है तो चीन को भी इसका आदर करना होगा. रिश्ते सहज करना उस के भी हित में है.