वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: भाजपा की लचीली नीति
By वेद प्रताप वैदिक | Published: February 22, 2019 07:40 AM2019-02-22T07:40:03+5:302019-02-22T07:40:03+5:30
भाजपा और शिवसेना का चुनावी समझौता विपक्ष के लिए एक झटका-सा है, क्योंकि विपक्षी दल यह आशा लगाए हुए थे
भाजपा और शिवसेना का चुनावी समझौता विपक्ष के लिए एक झटका-सा है, क्योंकि विपक्षी दल यह आशा लगाए हुए थे कि तीन हिंदी राज्यों में भाजपा अभी हारी ही है और महाराष्ट्र में भी ये दोनों पार्टियां यदि एक-दूसरे का मुकाबला करेंगी तो संसद के चुनाव में नुकसान होगा. उ.प्र. के बाद सबसे ज्यादा 48 सीटें इसी प्रदेश में हैं लेकिन भाजपा ने उदारता का परिचय दिया और 48 में से 25 सीटें अपने पास रखीं और 23 सीटें शिवसेना को दे दीं. 2014 में भाजपा ने 23 सीटें जीत ली थीं जबकि शिवसेना ने 18 जीती थीं.
2019 में शिवसेना को इतनी सीटें देकर भाजपा ने अपने गठबंधन को मजबूत बना लिया है. भाजपा ने यह उदारता तब दिखाई है जबकि 2014 के विधानसभा चुनाव में उसने 122 सीटें जीती थीं और शिवसेना को उससे आधी यानी 63 सीटें मिली थीं. यह समझौता इसलिए भी विशेष महत्व का है कि पिछले साढ़े चार वर्षो में शिवसेना ने मोदी सरकार की भारी आलोचना की. चाहे कोई मामला हो- राम मंदिर का, राफेल का, नोटबंदी का, आतंकी हमलों का, सजिर्कल स्ट्राइक का या गोरक्षा का- शिवसेना ने मोदी सरकार की इतनी तीखी आलोचना की है कि उतनी कांग्रेस ने भी नहीं की है.
ऐसा लगता था कि शिवसेना मोदी सरकार और भाजपा के गठबंधन की पार्टी नहीं है बल्कि विपक्ष की सशक्त प्रवक्ता है. महाराष्ट्र में शिवसेना और बिहार में नीतीश के जनता दल (यू) के प्रति इतनी उदारता आखिर भाजपा क्यों दिखा रही है? उसका कारण स्पष्ट है. एक तो सभी प्रदेशों में विरोधी दल चुनावी गठजोड़ बनाने में जुटे हुए हैं और दूसरा बड़ा कारण यह है कि अब मोदी लहर नहीं रही.
भाजपा के पास जनता को दिखाने के लिए कोई ठोस उपलब्धि नहीं है सिवाय इसके कि विपक्ष के पास प्रधानमंत्नी पद का कोई निर्विवाद उम्मीदवार नहीं है. पुलवामा में हमारे फौजियों की शहादत ने मोदी सरकार को और भी ज्यादा दुविधा में डाल दिया है. ऐसे में लचीली या झुककर चलने की नीति ही बेहतर राजनीति है.