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ब्लॉग: डरावनी हैं चुनावों के दौरान मुफ्त वस्तुएं देने की घोषणाएं

By अवधेश कुमार | Updated: November 20, 2023 10:40 IST

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में राजनीतिक दलों द्वारा मतदाताओं को वस्तुएं मुफ्त प्रदान करने की प्रवृत्ति चिंताजनक रूप से प्रबल होती दिखी है। अंग्रेजी में इसके लिए फ्रीबीज शब्द प्रयोग किया जाता है।

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ठळक मुद्देराजनीतिक दलों द्वारा मतदाताओं को मुफ्त वस्तुएं प्रदान करने का वादा करना चिंताजनक हैअंग्रेजी में मुफ्त वस्तुएं प्रदान करने के लिए फ्रीबीज शब्द प्रयोग किया जाता हैउच्चतम न्यायालय और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके प्रति चिंता जता चुके हैं

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में राजनीतिक दलों द्वारा मतदाताओं को वस्तुएं मुफ्त प्रदान करने की प्रवृत्ति चिंताजनक रूप से प्रबल होती दिखी है। अंग्रेजी में इसके लिए फ्रीबीज शब्द प्रयोग किया जाता है। उच्चतम न्यायालय ने राजनीतिक दलों की इस प्रवृत्ति पर गहरी चिंता प्रकट की।

स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कई भाषणों में इसे देश के लिए चिंताजनक बताया। उन्होंने जनता को आगाह किया था कि ऐसे लोग आपको कुछ भी मुफ्त देने का वादा कर सकते हैं लेकिन इसका असर देश के विकास पर पड़ेगा बावजूद आप देखेंगे कि हर पार्टी अपने संकल्प पत्र, गारंटी पत्र या घोषणा पत्र में मुफ्त वस्तुएं, सेवाएं या नगदी वादों की संख्या बढ़ा रही थी।

वैसे तो इसकी शुरुआत 80 और 90 के दशक में दक्षिण से हुई लेकिन 21वीं सदी के दूसरे दशक में अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी ने इसे दोबारा वापस लाया। दिल्ली की जनता से बहुत कुछ मुफ्त देने के वायदे किए और उनको चुनाव में विजय मिल गई।

कांग्रेस और भाजपा ने इसके विरुद्ध आवाज उठाई तथा अपनी घोषणाओं में परिपक्वता का परिचय दिया। यह प्रवृत्ति बाद में कायम नहीं रह सकी। पांच राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के चुनाव में दलों के घोषणा पत्रों में मुफ्त सेवाओं, वस्तुओं और नगदी के वायदों के विवरणों को लिखने के लिए पूरी पुस्तिका तैयार हो गई।

इसे आप मतदाता को घूस देना कहिए, लोकतंत्र का अपमान या और कुछ, यह स्थिति डराने वाली है। हमारे देश के ज्यादातर राज्य वित्तीय दृष्टि से काफी कमजोर पायदानों पर खड़े हैं और लगातार कर्ज लेकर अपने खर्च की पूर्ति कर रहे हैं यानी अनेक राज्यों की राजस्व आय इतनी नहीं है कि वह अपने वर्तमान व्यय को पूरा कर सकें।

कई राज्यों के व्यय के विवरण का विश्लेषण बताता है कि मुफ्त चुनावी वादों को पूरा करने या भविष्य के चुनाव को जीतने की दृष्टि से मुफ्त प्रदानगी वाले कदमों की इसमें बड़ी भूमिका है। देश की राजधानी दिल्ली में कोरोना काल में समय पर कर्मचारियों का वेतन देने तक की समस्या खड़ी हो गई थी। दिल्ली ऐसा अकेला राज्य नहीं था।

जब राज्य अकारण नगदी देने लगें तो फिर लोगों में परिश्रम से जीवन जीने और प्रगति करने का भाव कमजोर होता है। कोई भी देश तभी ऊंचाइयां छू सकता है जब वहां के लोग परिश्रम की पराकाष्ठा करें। विश्व में जिन देशों को हम शीर्ष पर देखते हैं वहां के लोगों ने अपने परिश्रम, पुरुषार्थ और पराक्रम से इसे प्राप्त किया है। अगर राजनीतिक दलों में मुफ्त देने की प्रतिस्पर्धा शुरू हो जाए तो उस देश और समाज का क्या होगा, इसकी आसानी से कल्पना की जा सकती है।

टॅग्स :विधानसभा चुनाव 2023कांग्रेसAam Aadmi Partyआम आदमी पार्टीनरेंद्र मोदीसुप्रीम कोर्ट
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