एन. के. सिंह का ब्लॉगः सत्य को समझने से सत्तावर्ग को परहेज क्यों?
By एनके सिंह | Published: January 19, 2019 09:52 PM2019-01-19T21:52:55+5:302019-01-19T21:52:55+5:30
भाजपा आज पूरे देश में और देश की आधी आबादी पर राज्य सरकारों के जरिए शासन कर रही है. पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की विगत 11-12 जनवरी की बैठक में पारित कृषि प्रस्ताव कहता है ‘हाल के वर्षो में कृषि क्षेत्न के लिए बजट का आवंटन भी बढ़ाया गया और यह सरकार किसानों की आय दुगुनी करने के अपने लक्ष्य को हासिल करने में तेजी से अग्रसर है.
कई बातें जो कक्षा पांच के बच्चे को भी समझ में आ सकती हैं सत्ताधारी वर्ग नहीं समझता; या नहीं समझना चाहता; या राजनीति की बाध्यताएं उसे समझ कर भी खारिज करने को मजबूर करती हैं, खासकर जब चुनाव नजदीक हो. कुछ उदाहरण देखें. भाजपा की अगुवाई में प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी की सरकार का 2014 में आने के बाद सबसे बड़ा ऐलान था, ‘सन 2022 तक किसानों की आय दुगुनी करेंगे’.
भाजपा आज पूरे देश में और देश की आधी आबादी पर राज्य सरकारों के जरिए शासन कर रही है. पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की विगत 11-12 जनवरी की बैठक में पारित कृषि प्रस्ताव कहता है ‘हाल के वर्षो में कृषि क्षेत्न के लिए बजट का आवंटन भी बढ़ाया गया और यह सरकार किसानों की आय दुगुनी करने के अपने लक्ष्य को हासिल करने में तेजी से अग्रसर है.
यह राष्ट्रीय परिषद अपना विश्वास व्यक्त करती है कि (इस लक्ष्य के लिए) जो समय-सीमा निर्धारित की गई है उस समय सीमा में पार्टी अपने शासन में लक्ष्य पूरा कर लेगी’. लेकिन सरकार के ही कंपनी और उद्योग मंत्नालय के ताजा और पूर्व के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला कि कृषि उत्पादों के दाम गैर-कृषि जिंसों के मुकाबले इतनी तेजी से पिछले 18 वर्षो में इतने नहीं गिरे जितने पिछले छह माह में लगातार गिरे. अर्थात किसान को उसकी पैदावार का तुलनात्मक मूल्य पिछले 18 वर्षो में इतना कम नहीं मिला जितना इस वर्ष.
थोक-मूल्य सूचकांक में इस गिरावट का सीधा मतलब है कि किसानों को अपना उत्पाद बेहद कम मूल्य पर बेचना पड़ रहा है जबकि जीवन-यापन के लिए गैर-कृषि उत्पाद उसे महंगे खरीदने पड़ रहे हैं यानी कृषि व्यवसाय लगातार अलाभकर होता जा रहा है. ‘टर्म्स ऑफ ट्रेड’ में किसान के मुकाबले अन्य उत्पादक वर्ग ज्यादा खुशहाल है. तीन राज्यों में हार को भाजपा को इसी परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए. जबकि पार्टी प्रवक्ता टीवी चैनलों पर यह कहते फिर रहे हैं कि थोक मूल्य सूचकांक में गिरावट सरकार की उपलब्धि है.
सत्य और दावों में एक और विरोधाभास देखें. भाजपा सरकार का दूसरा ड्रीम प्रोजेक्ट था ‘फसल बीमा योजना’. सन 2016 के मई महीने में शुरू की गई इस योजना के दो साल बीतने के बाद पता चला कि 2018 के अंत तक पिछले साल के मुकाबले इस योजना की किसानों में लोकप्रियता 17 प्रतिशत कम हुई जबकि दावा था कि इसे बढ़ाकर सन 2018 तक 40 प्रतिशत किसानों की फसल को बीमित कराया जाएगा.
सबसे चिंता वाली बात यह है कि जिन दस राज्यों में कम बीमा हुआ है उनमें से आठ भाजपा-शासित हैं और जिन चार राज्यों में बढ़ा है उनमें से तीन गैर-भाजपा शासित. तीसरा चौंकाने वाला तथ्य है : देश भर में कृषि बीमा संख्या में इस गिरावट के बावजूद निजी क्षेत्न की बीमा कंपनियों को 3000 करोड़ रु. का लाभ हुआ है जबकि सरकारी बीमा कंपनियों को 4085 करोड़ रु. का घाटा. क्या मोदी सरकार में केंद्र और राज्यों की सरकारी मशीनरी अपना कम कर रही हैं?
प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी जब सन 2014 में वाराणसी से चुनाव लड़ रहे थे तो गंगा आरती के दौरान देशवासियों को बताया ‘मैं यहां आया नहीं हूं. मुङो गंगा मां ने बुलाया है’. पांच साल बाद प्रदूषण नियंत्नण बोर्ड के अधिकारियों ने कागज पर गढ़मुक्तेश्वर से वाराणसी तक गंगा को निर्मल कर दिया. बस कुछ खास नहीं करना पड़ा. खाली पांच पैरामीटर्स में से मात्न तीन का संज्ञान लिया गया और दो को छोड़ दिया गया, जबकि स्वायत्त संस्थाओं के विशेषज्ञ चीख-चीख कर कह रहे हैं कि इन तीन पैरामीटर्स के भी आंकड़े फर्जी हैं.
विभाग की ओर से रोजाना जारी बुलेटिन केवल घुलित ऑक्सीजन, पानी का पीएच (हाइड्रोजन-आयन की सांद्रता) और पानी का रंग बता कर इस गंगाजल को ‘आचमन’ करने के काबिल बता रही है. लेकिन यह नहीं पता चल रहा है कि पानी में कीटाणु की जानकारी देने वाला बायो-ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) और फीकल कॉलिफोर्म (शौच आदि के विसर्जन से पैदा हुए कीटाणु) का स्तर क्या है. महामना इंस्टीट्यूट टेक्नोलॉजी फॉर गंगा मैनेजमेंट के नदी विशेषज्ञ प्रोफेसर यू. के. चौधरी कह रहे हैं कि विभाग झूठ बोल रहा है. गंगा की ऑक्सीजन-वहन क्षमता शुद्धता के मानक के हिसाब से काफी कम है.
खुले में शौच से मुक्ति (ओडीएफ) मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट था. बड़ी तारीफ हुई, अधिकारियों की जन-मंचों से सराहना हुई. और अब ऐलान होने जा रहा है कि पूरा देश ओडीएफ हो गया. जाहिर है चूंकि हर व्यक्ति को शौचालय ‘उपलब्ध’ है लिहाजा अब यह कार्यक्र म सफल मान कर रोक दिया जाएगा और चुनाव में जनता के समक्ष यह सफलता गिनाई जाएगी.
बहरहाल भारत और अमेरिका की दो मकबूल संस्थाओं ने एक संयुक्त सर्वे में पाया कि उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान जिनमें देश की एक-तिहाई से ज्यादा आबादी बसती है, में 44 प्रतिशत लोग आज भी खुले में शौच जाते हैं. भारत में दो लाख बच्चे लोगों की खुले में शौच करने की आदत के कारण हर साल मरते हैं.