ब्लॉग: भाजपा चार राज्यों में जीत के बावजूद कर रही आत्म-विश्लेषण! पार्टी को मुस्लिम वोटों को लेकर चिंता
By हरीश गुप्ता | Published: March 24, 2022 10:36 AM2022-03-24T10:36:47+5:302022-03-24T10:36:47+5:30
भाजपा ने भले ही चार राज्यों में विधानसभा चुनाव जीते लेकिन इसके शीर्ष नेतृत्व को यह बात हजम नहीं हो रही कि दो प्रतिशत मुसलमानों ने भी भगवा पार्टी को वोट नहीं दिया. आखिर ऐसे क्यों हुआ, इसे लेकर पार्टी के अंदर मंथन जारी है.
2019 में अमेठी लोकसभा सीट खोने के बाद, जहां राहुल गांधी को भाजपा की स्मृति ईरानी के हाथों हार का सामना करना पड़ा, अब यूपी में कांग्रेस के आखिरी गढ़ रायबरेली पर खतरा मंडरा रहा है. हाल ही में संपन्न उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनावों में रायबरेली लोकसभा क्षेत्र में पड़ने वाली सभी पांच विधानसभा सीटों पर कांग्रेस हार गई. कांग्रेस के सभी उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई.
यह इस तथ्य के बावजूद था कि प्रियंका गांधी वाड्रा ने अमेठी और रायबरेली में बड़े पैमाने पर प्रचार किया था. राहुल गांधी भी अंत में चुनाव प्रचार में उतरे थे. लेकिन अमेठी में भी कांग्रेस सभी पांच विधानसभा क्षेत्रों में हार गई. दशकों तक अमेठी, रायबरेली और आसपास के निर्वाचन क्षेत्रों में कांग्रेस का दबदबा रहा. 2004 के बाद से, रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र ने सोनिया गांधी को चुना है.
फिरोज गांधी और इंदिरा गांधी ने अतीत में कई मौकों पर इस सीट से जीत हासिल की थी. लेकिन अब आम तौर पर उत्तर भारत और विशेष रूप से उत्तरप्रदेश से लोकसभा में एक सीट के लिए खुद कांग्रेस अध्यक्ष के लिए एक वास्तविक खतरा सामने नजर आ रहा है.
उल्लेखनीय है कि 2019 में जब सोनिया गांधी ने सीट जीती थी तो प्रत्यक्ष रूप से उनकी मदद के उद्देश्य से न तो सपा और न ही बसपा ने अपने उम्मीदवार खड़े किए थे. यह विडंबना ही है कि 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों में, कांग्रेस मुश्किल से 2 सीटें जीत सकी और 399 विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ते हुए 387 विधानसभा क्षेत्रों में अपनी जमानत तक गंवा दी. पार्टी को महज 2.4 प्रतिशत वोट मिले.
सोनिया गांधी को कांग्रेस को पुनर्जीवित करने और एक महागठबंधन बनाने के लिए आत्म-विश्लेषण करना होगा, जैसा कि उन्होंने 2004 में भाजपा को हराने के लिए किया था. कांग्रेस अस्त-व्यस्त है और उत्तर भारत में उसके पुनरुद्धार की कोई आशा नहीं है जब तक कि गांधी परिवार पहले अपना निर्वाचन क्षेत्र ठीक करने में सक्षम न हो जाए.
भाजपा भी कर रही आत्म-विश्लेषण
भाजपा ने भले ही चार राज्यों में विधानसभा चुनाव जीते; यूपी, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर, लेकिन इसके शीर्ष नेतृत्व को यह बात हजम नहीं हो रही है कि दो प्रतिशत मुसलमानों ने भी भगवा पार्टी को वोट नहीं दिया. यह इस तथ्य के बावजूद है कि प्रधानमंत्री की अधिकांश कल्याणकारी योजनाओं ने सभी समुदायों के सदस्यों को समान रूप से लाभान्वित किया.
यूपी में पार्टी के प्रमुख नेताओं द्वारा बूथवार आंतरिक रिपोर्ट का आकलन किया गया तो केंद्रीय नेतृत्व हैरान रह गया. यह स्पष्ट रूप से सामने आया है कि पार्टी में कई लोगों द्वारा किए गए लंबे-चौड़े दावों के बावजूद मुस्लिम महिला मतदाताओं ने भी भाजपा को वोट नहीं दिया. पार्टी असमंजस में है कि मुस्लिम महिलाओं को लुभाने के लिए उसे आगे क्या करना चाहिए कि जिससे बहुसंख्यक समुदाय भी नाराज न हो.
आंतरिक बैठकों में जो सुझाव सामने आए उनमें से एक यह था कि भाजपा को एक मुस्लिम महिला नेता की तलाश करनी चाहिए जिसे यूपी से राज्यसभा में लाया जा सके. भाजपा कम से कम सात राज्यसभा सीटें जीतेगी. भाजपा ने कई सालों तक नजमा हेपतुल्ला कार्ड आजमाया. लेकिन इससे वास्तव में पार्टी को कोई मदद नहीं मिली, हालांकि अरब जगत में उनके संपर्क थे.
भाजपा की योजना एक नया चेहरा लाने की है जो मुसलमानों के बीच उसके खिलाफ प्रचार का प्रभावी ढंग से मुकाबला कर सके. हाल ही में जिस तरह से ऑल इंडिया मुस्लिम वुमन पर्सनल लॉ बोर्ड की प्रमुख शाइस्ता अंबर हिजाब पर कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश के समर्थन में सामने आईं, उससे संकेत मिलता है कि मुस्लिम वोटों की लड़ाई में भाजपा ने सब कुछ नहीं खोया है.
आगे एक और लड़ाई
पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की धूल भी नहीं बैठी थी कि देश में एक बार फिर चुनाव होने वाले हैं. राष्ट्रपति चुनाव से पहले अप्रैल-जुलाई के बीच 20 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 75 राज्यसभा सीटें खाली हो रही हैं. डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी, डॉ. नरेंद्र जाधव, छत्रपति संभाजी, एम. सी. मेरी कोम, स्वप्न दासगुप्ता, रूपा गांगुली और सुरेश गोपी जैसे सात मनोनीत सांसद अगले महीने सेवानिवृत्त हो रहे हैं.
हालांकि, व्यापक जनादेश के बावजूद, भाजपा को राज्यसभा में अपने बल पर बहुमत नहीं मिलेगा. वह 100 सीटों का आंकड़ा पार कर जाएगी, लेकिन वास्तव में बहुमत के लिए किसी पार्टी को 122 सीटों की आवश्यकता होती है. सभी राज्यों में सबसे दिलचस्प लड़ाई महाराष्ट्र में देखने को मिलेगी जहां जल्द ही राज्यसभा की 6 सीटें खाली हो रही हैं.
भाजपा छत्रपति संभाजी को राष्ट्रपति पद का नामांकन देने के बजाय अपने चुनाव चिह्न् पर लाना चाहती है. भाजपा सिर्फ दो राज्यसभा सीटें जीत सकती है और दूसरी सीट राज्यसभा के नेता और केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल को मिल सकती है. ऐसे में विनय सहत्रबुद्धे और डॉ. विकास महात्मे को समायोजित करना मुश्किल होगा, जो इस दौर में सेवानिवृत्त हो रहे हैं.
राकांपा और शिवसेना प्रफुल्ल पटेल और संजय राऊत को फिर से नामित करने के लिए तैयार हैं, जबकि पी. चिदंबरम तमिलनाडु जा सकते हैं. कांग्रेस की एकमात्र राज्यसभा सीट के लिए खेल खुला है.