बिहार में कायम रही वोटरों की गोलबंदी, अभय कुमार दुबे का ब्लॉग

By अभय कुमार दुबे | Published: November 18, 2020 01:46 PM2020-11-18T13:46:27+5:302020-11-18T13:48:19+5:30

नीतीश कुमार के खिलाफ एंटी-इनकम्बेंसी  (सरकार विरोधी भावनाएं) का जो माहौल था, वह मुख्य रूप से बिहार की मजबूत जातियों द्वारा खड़ा किया गया था. इस माहौल के मुख्य स्वर शक्तिशाली और बहुसंख्यक यादव जाति (जो महागठबंधन की पैरोकार है) और ऊंची जातियों (जो भाजपा की पैरोकार हैं) की तरफ से आ रहे थे.

Bihar assembly elections 2020 voters continues women nda bjp jdu rjd pm narendra modi Abhay Kumar Dubey's blog  | बिहार में कायम रही वोटरों की गोलबंदी, अभय कुमार दुबे का ब्लॉग

राजग को नीतीश कुमार के माध्यम से पहुंचा, क्योंकि ये मतदाता नीतीश के साथ पारंपरिक रूप से जुड़े हुए हैं. (file photo)

Highlightsलोकनीति-सीएसडीएस द्वारा किए गए विस्तृत चुनाव बाद सर्वेक्षण से पता चलता है कि प्रधानमंत्री द्वारा बताए गए दो में से एक ही कारण सही है, दूसरा नहीं.एंटी-इनकम्बेंसी  की इस आवाज में अतिपिछड़ी जातियों के स्वर शामिल नहीं थे. इन छोटी-छोटी जातियों की संख्या बहुत है. दलित और महादलित भी इस एंटी-इनकम्बेंसी के साथ खड़े नहीं दिख रहे थे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार विधानसभा चुनाव जीतने के दो कारण बताए हैं- पहला, खामोश वोटरों ने राजग का साथ दिया, दूसरा, माताओं-बहनों ने राजग की सरकार बना दी. लोकनीति-सीएसडीएस द्वारा किए गए विस्तृत चुनाव बाद सर्वेक्षण से पता चलता है कि प्रधानमंत्री द्वारा बताए गए दो में से एक ही कारण सही है, दूसरा नहीं.

दरअसल, नीतीश कुमार के खिलाफ एंटी-इनकम्बेंसी  (सरकार विरोधी भावनाएं) का जो माहौल था, वह मुख्य रूप से बिहार की मजबूत जातियों द्वारा खड़ा किया गया था. इस माहौल के मुख्य स्वर शक्तिशाली और बहुसंख्यक यादव जाति (जो महागठबंधन की पैरोकार है) और ऊंची जातियों (जो भाजपा की पैरोकार हैं) की तरफ से आ रहे थे.

एंटी-इनकम्बेंसी  की इस आवाज में अतिपिछड़ी जातियों के स्वर शामिल नहीं थे. इन छोटी-छोटी जातियों की संख्या बहुत है. इन्हें बिहार में पचपनिया के संयुक्त नाम से बुलाया जाता है. दलित और महादलित भी इस एंटी-इनकम्बेंसी के साथ खड़े नहीं दिख रहे थे. इन्हीं लोगों को खामोश या चुप्पा वोटरों की संज्ञा दी जा सकती है.

इन लोगों ने मोटे तौर पर राजग का समर्थन किया. उल्लेखनीय यह है कि यह समर्थन राजग को नीतीश कुमार के माध्यम से पहुंचा, क्योंकि ये मतदाता नीतीश के साथ पारंपरिक रूप से जुड़े हुए हैं. लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वेक्षण के अनुसार अतिपिछड़े या पचपनिया वोटर 58 फीसदी राजग के खाते में पड़े. महागठबंधन को इनका केवल 16 फीसदी हिस्सा ही मिल पाया.

जहां तक माताओं-बहनों द्वारा सरकार बनाने का सवाल है, यह दावा आंकड़ों की कसौटी पर पूरी तरह से खरा नहीं उतरता. विेषक आम तौर पर स्त्रियों को भी खामोश वोटरों की श्रेणी में डाल देते हैं. साथ ही यह भी मान लिया जाता है कि शराबबंदी करने के कारण और कुछ स्त्री-विकास योजनाएं चलाने के कारण वे नीतीश कुमार के प्रति विशेष हमदर्दी रखती हैं. चुनाव आयोग के इन आंकड़ों से भी काफी सनसनी फैली कि दूसरे और तीसरे चरण में स्त्रियों ने पुरुषों के मुकाबले खासे ज्यादा वोद दिए.

ये बात पूरी तरह से गलत नहीं थी, लेकिन पूरी तरह से सही भी नहीं साबित हुई. मसलन, बिहार के पिछले तीन चुनावों से स्त्रियां पुरुषों से ज्यादा वोट कर रही हैं. इस बार ऐसा होना कोई नई बात नहीं है. इसीलिए जैसे ही स्त्रियों के भीतर के समाजशास्त्र पर गौर किया जाता है, उनके खास तौर से राजग समर्थक होने की पोलपट्टी खुल जाती है. मसलन, यादव स्त्रियों के 82 प्रतिशत वोट महागठबंधन को मिले, जो बहुत बड़ी संख्या है. मुसलमान स्त्रियों के 74 फीसदी वोट महागठबंधन को मिले.

राजग को उन्हीं स्त्रियों के वोट ज्यादा मिले जो जातिगत रूप से उसकी समर्थक रही हैं. जैसे, पचपनिया स्त्री वोटरों का 63 फीसदी राजग में गया. ऊंची जातियों का 59 फीसदी वोट राजग को मिला. दलित स्त्रियों का 33 फीसदी वोट भी राजग के हिस्से में आया, लेकिन 24 फीसदी वोट महागठबंधन को भी मिला.

अगर स्त्रियों के कुल वोटों का तखमीना लगाया जाए तो स्पष्ट हो जाता है कि 38 फीसदी महिला वोटरों ने राजग के चुनाव चिह्नें पर बटन दबाए, जबकि महागठबंधन के चुनाव चिह्नें पर बटन दबाने वाली स्त्रियों का प्रतिशत 37 फीसदी रहा. केवल एक फीसदी का अंतर कहीं से साबित नहीं करता कि राजग सरकार माताओं-बहनों ने बनाई है.

जातिगत गोलबंदी के आधार पर वोट न पड़ने और आर्थिक प्रश्न पर वोटों की प्राथमिकता बदलने की उम्मीद इस बार भी परवान नहीं चढ़ पाई. जातियों ने पुराने हिसाब से ही वोट दिए. मसलन, ब्राrाण, भूमिहार, राजपूत और अन्य ऊंची जातियों के क्रमश: 52, 51, 55 और 59 फीसदी वोट भाजपा के जरिये राजग को मिले. 81 फीसदी कुर्मी और 51 फीसदी कोइरी वोट नीतीश के जरिये राजग की झोली में गिरे. चूंकि मुसहरों की पार्टी (जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा) राजग की थी, इसलिए उनके 65 फीसदी वोट राजग को मिले.

दुसाधों की पार्टी लोजपा अलग थी, इसलिए उनके केवल 17 फीसदी वोट ही उसे मिल पाए. यादवों ने 83 फीसदी और मुसलमानों ने 76 फीसदी समर्थन महागठबंधन का किया. यानी, एमवाई अर्थात यादव-मुसलमान गठजोड़ पूरी तरह से कायम रहा. इस चुनाव में वोट बिखरे बहुत. ओवैसी-कुशवाहा-बसपा के महामोर्चे ने कुछ वोट खींचे तो अन्य की श्रेणी में आने वाले उम्मीदवारों ने करीब 25 प्रतिशत वोट प्राप्त करके राजग और महागठबंधन के बीच वोटों का पूरा ध्रुवीकरण नहीं होने दिया.

कहा जा सकता है कि अगर लोजपा ने नीतीश के उम्मीदवारों के वोट न काटे होते तो राजग के परिणाम और अच्छे हो सकते थे. लेकिन अगर महामोर्चा ने सीमांचल की कुछ सीटों पर 11 फीसदी मुसलमान वोट न काट लिए होते तो महागठबंधन भी बहुमत के करीब पहुंच सकता था.

आखिरी प्रश्न यह है कि क्या इन वोटों को नियोजित रूप से बिखेरा गया? क्या ओवैसी के महामोर्चे के पीछे कुछ ऐसी अदृश्य शक्तियां थीं जो महागठबंधन को हो सकने वाले लाभों में कटौती करवाना चाहती थीं? क्या लोजपा का राजग के बाहर जाकर नीतीश का कद छोटा करने की घोषित रणनीति के पीछे राजग की भीतरी राजनीति थी? क्या भाजपा नीतीश को छोटा भाई बनाने पर तुली थी और इस चक्कर में उसने चुनाव तक हारने का खतरा मोल ले लिया था? ये सवाल एक अरसे तक जवाबों की उम्मीद करते रहेंगे.

Web Title: Bihar assembly elections 2020 voters continues women nda bjp jdu rjd pm narendra modi Abhay Kumar Dubey's blog 

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे