प्रत्याशी क्यों करे अपने दागी रिकार्ड का प्रचार? शशिधर खान का ब्लॉग
By शशिधर खान | Published: November 5, 2020 03:57 PM2020-11-05T15:57:07+5:302020-11-05T15:58:27+5:30
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के लिए अपने खिलाफ चल रहे लंबित आपराधिक मुकदमे की जानकारी अखबार, टीवी चैनलों और सोशल मीडिया के जरिए देना अनिवार्य कर दिया.
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए जारी मतदान प्रक्रिया के बीच में ही चुनाव आयोग को उन दागी उम्मीदवारों से जवाब-तलब करना पड़ गया, जिन्होंने अपने खिलाफ चल रहे आपराधिक मुकदमे का विवरण अखबारों और टीवी चैनलों में प्रसारित/प्रकाशित नहीं करवाया.
दूसरे चरण के मतदान तीन नवंबर से पहले जब चुनाव प्रचार समाप्त होने की समय-सीमा समाप्त होने में एक दिन बचे थे, उसी वक्त चुनाव आयोग ने वैसे दागी उम्मीदवारों को नोटिस भेजकर जवाब मांगा. चुनाव अधिसूचना जारी होने से एक महीना पहले ही चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के लिए अपने खिलाफ चल रहे लंबित आपराधिक मुकदमे की जानकारी अखबार, टीवी चैनलों और सोशल मीडिया के जरिए देना अनिवार्य कर दिया.
यह चुनाव प्रचार की तरह दागी पृष्ठभूमि का भी प्रचार करने जैसा निर्देश है, ताकि मतदाताओं की अदालत में ही फैसला हो कि दागियों को लॉ मेकर (कानून बनाने वाला) बनाया जाए या नहीं. लेकिन सभी दलों की ओर से मैदान में उतारे गए उम्मीदवारों और उनकी पार्टियों ने चुनाव आयोग के आदेश की परवाह नहीं की. ज्यादातर दागी उम्मीदवारों ने तो अपने खिलाफ चल रहे आपराधिक मुकदमे का विवरण बिल्कुल ही सार्वजनिक नहीं किया. इन मुकदमे में फंसे जिन कुछेक उम्मीदवारों ने अखबारों में छपाया भी तो उसमें चुनाव आयोग के निर्देश का अनुपालन जरूरी नहीं समझा.
चुनाव आयोग के निर्देश के अनुसार दागियों को अपने आपराधिक रिकार्ड की जानकारी मतदाताओं को बार-बार देनी है. कम-से-कम तीन बार देना तो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार अनिवार्य है. दागी उम्मीदवारों को अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि का पहली बार प्रचार नाम वापसी की तारीख के चार दिनों के अंदर करना था. दूसरी बार नाम वापसी की तारीख के पांचवें से लेकर आठवें दिन के अंदर करना था और तीसरी बार दागियों को अपना विवरण चुनाव प्रचार के अंतिम दिन तक प्रचारित करने का निर्देश था.
चुनाव आयोग ने संबंधित दलों को भी निर्देश दिया था कि यदि कोई पार्टी दागी को उम्मीदवार बनाती है तो उसका भरपूर प्रचार करने की जिम्मेदारी पार्टी की होगी. इसका प्रचार न सिर्फ प्रत्याशी, बल्कि उसकी पार्टी भी अखबार और टीवी चैनलों में करेगी. निर्वाचन आयोग ने संभवत: पहली बार किसी चुनाव में ऐसा निर्देश जारी किया.
पार्टियों ने और उम्मीदवारों ने चुनाव आयोग के निर्देशों को हल्के ढंग से लिया. बिहार निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार 28 अक्तूबर को पहले चरण की 71 सीटों के लिए हुए मतदान के दिन तक 104 दागी उम्मीदवारों ने अपना आपराधिक विवरण किसी अखबार में प्रकाशित नहीं कराया.
अन्य उम्मीदवारों में कुछ ने एक बार, कुछ ने दो बार, तीन बार किया. चुनाव आयोग ने पहले चरण की सीटों से लड़ रहे ऐसे 104 दागी उम्मीदवारों को 31 अक्तूबर को नोटिस भेजकर जवाब मांगा, जिन्होंने एक बार भी अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि का प्रचार अखबार या टीवी में नहीं किया. निर्वाचन विभाग के अनुसार पहले चरण में कुल 327 उम्मीदवारों का आपराधिक रिकार्ड है.
प्रश्न है कि कोई भी दल या उसके दागी उम्मीदवार चुनाव आयोग के ऐसे निर्देशों की परवाह क्यों करे. चुनाव प्रचार की तरह आपराधिक पृष्ठभूमि का प्रचार खुद ही किस भय से करे. पहले चरण के मतदान में आपराधिक रिकार्ड का प्रचार न करने वाले उम्मीदवारों को चुनाव आयोग का नोटिस मिलने के बावजूद दूसरे चरण के मतदान वाले दागियों ने इस निर्देश का पालन नहीं किया.
तीन नवंबर को दूसरे चरण के चुनाव में खड़े 176 प्रत्याशियों में से भी 154 को निर्वाचन कार्यालय ने अपना आपराधिक रिकार्ड अखबारों और टीवी चैनलों में प्रकाशित/प्रसारित नहीं करने के लिए नोटिस जारी किया. चुनाव विभाग ने इन उम्मीदवारों से पूछा कि निर्वाचन आयोग की अवहेलना के कारण क्यों न कार्रवाई की जाए.
जिस चुनाव आयोग को दागियों की ओर से पर्चे के साथ अनिवार्य रूप से दिए गए हलफनामे में आपराधिक रिकार्ड की जानकारी देने के बावजूद उनके पर्चे रद्द करने का अधिकार नहीं है, वो संवैधनिक संस्था अपने दागों का प्रचार न करने वाले उम्मीदवारों का क्या बिगाड़ सकती है, यह तो बिगड़ने के बाद ही पता चलेगा.