भीख मांगने की त्रसदी पर मानवीय दृष्टिकोण से विचार की जरूरत, ललित गर्ग का ब्लॉग
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 1, 2021 03:40 PM2021-08-01T15:40:18+5:302021-08-01T15:41:25+5:30
अदालत ने साफ शब्दों में कह दिया कि वह सड़कों से भिखारियों को हटाने के मुद्दे पर तथाकथित धनाढ्य एवं संपन्न वर्ग का नजरिया नहीं अपनाएगी, क्योंकि भीख मांगना एक सामाजिक और आर्थिक समस्या एवं विवशता है.
एक आदर्श शासन व्यवस्था की बुनियाद होती है समानता, स्वतंत्रता, भूख एवं गरीबीमुक्त शांतिपूर्ण जीवनयापन. राष्ट्र एवं समाज में भूख व गरीबी की स्थितियां एक त्रसदी है, विडंबना है एवं दोषपूर्ण शासन व्यवस्था की द्योतक है.
आजादी के 74 वर्षों के बाद भी यदि भीख मांगने एवं भिखारियों के परिदृश्य देखने को मिलते हैं तो यह शर्मनाक है. इन शर्म की रेखाओं का कायम रहना हमारी शासन व्यवस्था पर एक बदनुमा दाग है. शर्म की इन रेखाओं को तोड़ने के लिए जिस श्रेष्ठ संवेदना का प्रदर्शन देश की सर्वोच्च अदालत ने किया है, वह न केवल स्वागत-योग्य है, बल्कि अनुकरणीय भी है.
अदालत ने साफ शब्दों में कह दिया कि वह सड़कों से भिखारियों को हटाने के मुद्दे पर तथाकथित धनाढ्य एवं संपन्न वर्ग का नजरिया नहीं अपनाएगी, क्योंकि भीख मांगना एक सामाजिक और आर्थिक समस्या एवं विवशता है. न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम. आर. शाह की बेंच ने कहा कि वह सड़कों और सार्वजनिक स्थलों से भिखारियों को हटाने का आदेश नहीं दे सकती.
अदालत ने भिखारियों एवं भीख मांगने की विवशता को भोग रहे लोगों के दर्द को समझा है. उसने इन शर्मनाक स्थितियों के कायम रहने के कारणों की विवेचना करते हुए कहा कि शिक्षा और रोजगार की कमी के चलते बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए ही लोग आमतौर पर भीख मांगने को मजबूर हो जाते हैं.
अदालत का इशारा साफ था कि भीख मांगने पर प्रतिबंध लगाने की बजाय भीख मांगने के कारणों को मिटाने पर ध्यान देना होगा. विदित हो कि याचिकाकर्ता ने सर्वोच्च अदालत का दरवाजा इस उम्मीद से खटखटाया था कि सर्वोच्च अदालत सड़कों-चौराहों पर लोगों को भीख मांगने से रोकने के लिए कोई आदेश या निर्देश देगी.
अदालत ने समस्या की व्याख्या जिस संवेदना एवं मानवीयता के साथ की है, वह गरीबी हटाने की दिशा में आगे के फैसलों के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध होगी. अदालत ने पूछा कि आखिर लोग भीख क्यों मांगते हैं? गरीबी के कारण ही यह स्थिति बनती है. एक आजाद मुल्क में, एक शोषणविहीन समाज में, एक समतावादी दृष्टिकोण में और एक कल्याणकारी समाजवादी व्यवस्था में यह भूख एवं भिक्षा मांगने की त्रसदी को जीना ऐसी बेशर्मी की रेखा है जिसे मिटाना हमारे शासन-व्यवस्था की प्राथमिकता होनी चाहिए.
अदालत ने समस्या की व्याख्या जिस संवेदना एवं मानवीयता के साथ की है, वह गरीबी हटाने की दिशा में आगे के फैसलों के लिए मील का पत्थर साबित होगी. अदालत ने पूछा कि आखिर लोग भीख क्यों मांगते हैं? गरीबी, अभाव एवं सरकार की असंतुलित नीतियों के कारण ही यह स्थिति बनती है.
आज शासन की नीति की यह आश्चर्यजनक बात है कि वह भूख को नहीं भिखारी को, गरीबी को नहीं गरीब को मिटाने की योजनाएं लागू करती है. यह सोचने में बहुत अच्छा लगता है कि सड़कों पर कोई भिखारी न दिखे, लेकिन सड़कों से भिखारियों को हटाने से क्या गरीबी दूर हो जाएगी? क्या जो लाचार हैं, जिनके पास आय का कोई साधन नहीं, जो दो वक्त की रोटी नहीं जुटा पा रहे हैं, उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया जाएगा? गरीबी से भी ज्यादा भयावह है भूख एवं भीख मांगने की स्थितियां. सरकार ऐसे लोगों को गरीब मानती है जिनकी वार्षिक आय सरकार के निर्धारित आंकड़ों से कम हो.
लेकिन जिनकी आय का कोई जरिया ही न हो, उनके लिए सरकार ने क्या श्रेणी निर्धारित की है? जस्टिस चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील चिन्मय शर्मा से यह भी कहा कि कोई भीख नहीं मांगना चाहता. मतलब सरकार को भीख मांगने की समस्या से अलग ढंग एवं ईमानदार तरीके से निपटना होगा.
मुख्यधारा से छिटके हुए वंचित लोग भीख मांगने को विवश हैं. ऐसे लोगों तक जल्दी से जल्दी सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचना चाहिए. जहां तक चौराहों पर भीख की समस्या है, तो स्थानीय प्रशासन इस मामले में कदम उठा सकता है. सड़क पर भीख मांगने वालों को सचेत किया जा सकता है कि वे किसी सुरक्षित जगह पर ही भीख मांगने जैसा कृत्य करें.
भीख मांगना अगर सामाजिक समस्या है तो समाज को भी अपने स्तर पर इस समस्या का समाधान करना चाहिए. समाज के आर्थिक रूप से संपन्न और सक्षम लोगों को स्थानीय स्तर पर सरकार के साथ मिलकर भीख जैसी मजबूरी एवं त्रसदी का अंत करने के लिए पहल करनी चाहिए.
कोरोना महामारी के मद्देनजर भिखारियों और बेघर लोगों के पुनर्वास और टीकाकरण का आग्रह करने वाली एक याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी करके उचित ही जवाब मांगा है.
भीख मांगने वाले और बेघर लोग भी कोरोना महामारी के संबंध में अन्य लोगों की तरह चिकित्सा एवं अन्य सुविधाओं के हकदार हैं. केंद्र के साथ तमाम राज्य सरकारों को स्वास्थ्य व रोजगार का दायरा बढ़ाना चाहिए ताकि जो बेघर, निर्धन हैं उन तक मानवीयता का एहसास पुरजोर पहुंचे एवं एक आदर्श समाज संरचना का सूर्योदय हो.