Bandhavgarh Reserve: आखिर क्यों नहीं रहा हाथी हमारा साथी? 

By पंकज चतुर्वेदी | Published: November 12, 2024 05:49 AM2024-11-12T05:49:20+5:302024-11-12T05:49:20+5:30

Bandhavgarh Reserve: सन्‌ 2018-19 में 457 लोगों की मौत हाथी के गुस्से से हुई तो सन्‌ 2019-20 में यह आंकड़ा 586 हो गया. वर्ष 2020-21 में मरने वालों की संख्या 464, 21-22 में 545 और बीते साल 22-23 में 605 रही.

Bandhavgarh-Raigarh Reserve Why is elephant no longer our companion blog Pankaj Chaturvedi 300 elephants killed in last 03 years | Bandhavgarh Reserve: आखिर क्यों नहीं रहा हाथी हमारा साथी? 

सांकेतिक फोटो

Highlightsपिछले तीन सालों के दौरान लगभग 300 हाथी मारे गए हैं.हाथी-इंसान  के टकराव की 4193 घटनाएं हुईं और इनमें 27 लोग मारे गए.16 राज्यों में बिगड़ैल हाथियों के कारण इंसान से टकराव बढ़ रहा है.

Bandhavgarh Reserve: दीपावली के ठीक एक दिन पहले मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ में दस हाथियों के मारे जाने की खबर सन्न करने वाली है. इसके ठीक तीन दिन पहले पास के छत्तीसगढ़ में रायगढ़ जिले में तीन हाथी मारे गए- कहा गया कि उन पर बिजली का तार गिर गया. अभी इस मामले की पड़ताल चल ही रही थी कि अचानक टाइगर रिजर्व के करीब बसे गांव टिंगीपुर गांव में ठीक दिवाली के दिन एक युवा होता तीन साल का नर हाथी शावक मृत मिला. तभी खबर आई कि 4 नवंबर को असम के पश्चिम कामरूप वनमंडल के अंतर्गत कुलक्षी रेंज में धागरगांव  में एक जंगली हाथी अवैध बिजली की बाड़ की चपेट में आकर मारा गया. दुर्भाग्य है कि बांधवगढ़ में इतनी बड़ी संख्या में हाथी की मौत के बाद भी प्रशासन सतर्क हुआ नहीं और गुस्साए हाथियों ने वहीं गांव के तीन लोगों को कुचल कर मार दिया.

इस 13 के समूह से शेष बचे तीन हाथियों में से बिछड़ा एक हाथी बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व की सीमा से होते हुए कटनी की सीमा में आ गया. हाथी की मौजूदगी से आसपास के क्षेत्र के किसानों और ग्रामीणों में दहशत का माहौल है. बीते कुछ सालों में हाथी के पैरों तले कुचल कर मरने वाले इंसानों की संख्या तो बढ़ी ही, पिछले तीन सालों के दौरान लगभग 300 हाथी मारे गए हैं.

सन्‌ 2018-19 में 457 लोगों की मौत हाथी के गुस्से से हुई तो सन्‌ 2019-20 में यह आंकड़ा 586 हो गया. वर्ष 2020-21 में मरने वालों की संख्या 464, 21-22 में 545 और बीते साल 22-23 में 605 रही. केरल के वायनाड जिले में, जहां 36 फीसदी जंगल है, पिछले साल हाथी-इंसान  के टकराव की 4193 घटनाएं हुईं और इनमें 27 लोग मारे गए.

देश में ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, असम, केरल, कर्नाटक सहित 16 राज्यों में बिगड़ैल हाथियों के कारण इंसान से टकराव बढ़ रहा है. इस झगड़े में हाथी भी मारे जाते हैं. मध्यप्रदेश में जंगल और वनोपज आय के बड़े माध्यम हैं लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि बाघ के लिए जम कर खर्च करने वाली सरकार हाथी के लिए लापरवाह रही है.

प्रदेश में वन विभाग की राज्य की विभिन्न योजनाओं के लिए 2665 करोड़ से ज्यादा बजट है. इमारती लकड़ियों के उत्पादन के लिए तक 159 करोड़ का बजट है, लेकिन हाथियों के प्रबंधन के लिए सिर्फ एक  करोड़ सालाना का बजट वन विभाग के पास है. प्रोजेक्ट टाइगर पर प्रदेश का बजट 200 से 300 करोड़ के बीच रहता है.

लेकिन हाथियों के प्रबंधन पर प्रोजेक्ट एलिफेंट के लिए वन विभाग ने इस साल सिर्फ 66 लाख रुपए रखे. जानना जरूरी है कि हाथियों को 100 लीटर पानी और 200 किलो पत्ते, पेड़ की छाल आदि की खुराक जुटाने के लिए हर रोज 18 घंटों तक भटकना पड़ता है.

हाथी दिखने में भले ही भारी-भरकम होते हैं, लेकिन उनका मिजाज नाजुक और संवेदनशील होता है. थोड़ी थकान या भूख उन्हें तोड़ कर रख देती है. ऐसे में थके जानवर के प्राकृतिक घर यानी जंगल को जब नुकसान पहुंचाया जाता है तो मनुष्य से उसकी भिड़ंत होती है.

Web Title: Bandhavgarh-Raigarh Reserve Why is elephant no longer our companion blog Pankaj Chaturvedi 300 elephants killed in last 03 years

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