अवधेश कुमार का ब्लॉग: प्रशांत किशोर से कांग्रेस का कितना भला हो पाएगा?
By अवधेश कुमार | Published: April 21, 2022 11:38 AM2022-04-21T11:38:36+5:302022-04-21T11:38:36+5:30
प्रशांत किशोर के कांग्रेस से जुड़ने की अटकलें एक बार फिर जोर पकड़ चुकी हैं. कांग्रेस में बैठकों का दौर भी जारी है. ऐसे में सवाल है कि क्या प्रशांत किशोर किसी बड़ी भूमिका में कांग्रेस में नजर आएंगे?
प्रशांत किशोर और कांग्रेस के बीच एक बार फिर से संबंध स्थापित हो गए हैं. पिछले 16 अप्रैल को कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी के 10 जनपथ आवास पर प्रशांत किशोर की कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के साथ हुई लगभग 4 घंटे की लंबी बैठक के बाद कई तरह की संभावनाएं बलवती हुई हैं. जितनी सूचनाएं बाहर आईं उनके अनुसार प्रशांत किशोर ने 2024 के लोकसभा चुनाव की संभावनाओं के लिए एक विस्तृत खाका पेश किया था. उसमें कांग्रेस के अतीत, वर्तमान एवं भविष्य को लेकर भी विश्लेषण था.
प्रशांत किशोर चुनावी रणनीतिकार हैं तो निश्चित रूप से संपूर्ण बातचीत चुनावी संभावनाओं पर ही केंद्रित रही होगी. उन्होंने कांग्रेस के नेताओं को आंकड़ों और तथ्यों के साथ बताया कि क्यों उसने चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया.
ध्यान रखिए, कुछ महीने पहले तक प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल होकर महत्वपूर्ण पद संभालने की बात लगभग तय मानी जा रही थी. फिर खबर आई कि प्रशांत किशोर की बात राहुल गांधी से नहीं बनी. प्रशांत ने उसके बाद कई ऐसे ट्वीट किए जो राहुल गांधी और पूरे परिवार के लिए सम्मानजनक तो नहीं थे. उन्होंने कांग्रेस के राजनीतिक भविष्य पर भी बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया. बावजूद दोबारा उन्हें निमंत्रित किया गया है.
प्रशांत किशोर ने कांग्रेस के संदर्भ में अपना रोड मैप बिंदुवार और तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया. उन्होंने कहा कि पार्टी को लोकसभा की 542 सीटों में से 370 से 400 सीटों पर ही फोकस करना चाहिए. राज्य विधानसभा चुनाव के बारे में उनका कहना था कि कुछ राज्यों में उसे अकेले लड़ना चाहिए. उन्होंने बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु तथा केरल का उदाहरण दिया जहां लोकसभा की लगभग 200 सीटों में अपनी तमाम लोकप्रियता के बावजूद भाजपा 50 सीटों से आगे नहीं बढ़ पाई. यानी उनके अनुसार भाजपा की ताकत अभी भी 350 सीटों पर ही सिमटी हुई है. उनका कहना था कि भाजपा को चुनौती दी जा सकती है.
लेकिन दो पहलू ऐसे हैं जिनको लेकर समस्याएं हैं. पहला, प्रशांत किशोर के कांग्रेस से संबंधों को लेकर है. अगर वे चुनावी प्रबंधन या रणनीतिकार के तौर पर कांग्रेस को सहयोग देते हैं तो इसमें किसी को आपत्ति नहीं है. कांग्रेस में अगर वे महत्वपूर्ण पद पर आते हैं और मुख्य रणनीतिकार बनते हैं, नीति निर्माण में उनकी भूमिका होती है तो इसे पूरी पार्टी के लिए स्वीकार करना संभव नहीं है.
कांग्रेस में उनके शामिल होने का विरोध करने वाले केवल जी-23 समूह के लोग ही नहीं दूसरे भी थे. वे लोग पुनः इसका विरोध करेंगे. ये लोग तर्क देते हैं कि प्रशांत किशोर अगर पार्टी में आएंगे तो इस मानसिकता से कि मेरे अलावा पार्टी को चुनाव में विजय दिलाने वाला कोई नहीं है तो जाहिर है उनका व्यवहार अनेक नेताओं के प्रति सम्मानजनक नहीं होगा. तृणमूल कांग्रेस 2021 के चुनाव में अवश्य भारी विजय प्राप्त करने में सफल हुई लेकिन चुनाव पूर्व पार्टी में भगदड़ मची तो उसमें एक मुख्य कारण प्रशांत किशोर ही थे. यही समस्या जनता दल यूनाइटेड में भी पैदा हुई.
नीतीश कुमार ने उनको सर्वाधिक महत्व दिया, पार्टी में उपाध्यक्ष का पद भी उन्हें मिला, पार्टी के नेताओं के साथ उनका सामंजस्य नहीं बैठा और उन्हें अलग होना पड़ा. यह समस्या कांग्रेस के सामने भी आ सकती है. अगर प्रशांत किशोर के आगमन से पार्टी में टूट पड़ी तो लाभ से ज्यादा हानि हो सकती है.
दूसरे, क्या कांग्रेस स्वयं इस स्थिति में है कि प्रशांत किशोर की रणनीति से भाजपा और दूसरी प्रतिस्पर्धी पार्टियों को परास्त कर फिर से चुनावी सफलता प्राप्त करने की ओर अग्रसर हो सके? जिन राज्यों में उसका वजूद नहीं है वहां रणनीति से चुनाव नहीं जीत सकती. नेतृत्व के रूप में कुछ चेहरे और सामान्य संगठन भी चाहिए.
कांग्रेस इस समय नेतृत्व के साथ-साथ विचारधारा एवं रणनीति के संकट से भी गुजर रही है. प्रशांत किशोर को विचारधारा और नेतृत्व से बहुत लेना-देना नहीं होगा. यही बात पार्टी के वरिष्ठ नेता उठाते हैं कि उनकी कांग्रेस के प्रति निष्ठा हमेशा संदिग्ध रहेगी. तो प्रतीक्षा करनी चाहिए कि प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल होने के बाद पार्टी के अंदर क्या प्रतिक्रिया होती है.