अवधेश कुमार का ब्लॉग: फर्जी नहीं थी बाटला हाउस मुठभेड़

By अवधेश कुमार | Published: March 13, 2021 12:30 PM2021-03-13T12:30:32+5:302021-03-13T12:30:32+5:30

बाटला हाउस एनकाउंटर पर दिल्ली के साकेत न्यायालय अहम फैसला सुनाया है। न्यायालय ने लिखा है कि आरिज खान और उसके साथियों ने इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की हत्या की थी.

Awadhesh Kumar blog: Batla House encounter was not fake | अवधेश कुमार का ब्लॉग: फर्जी नहीं थी बाटला हाउस मुठभेड़

बाटला हाउस मुठभेड़ पर कोर्ट का फैसला (फाइल फोटो)

बहुचर्चित और विवादित बाटला हाउस मुठभेड़ का फैसला आ गया है. न्यायालय का फैसला उन लोगों को करारा प्रत्युत्तर है जो शहीद इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा के बलिदान को कमतर करते हुए पूरे मामले को पुलिस द्वारा गढ़ा गया एवं मुठभेड़ को फर्जी करार देने का अभियान लगातार चलाए हुए थे. 

करीब साढ़े 12 वर्षों बाद आया यह फैसला हम सबको उद्वेलित व संवेदित करने के लिए पर्याप्त है. दिल्ली के साकेत न्यायालय ने इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादी आरिज खान को दोषी करार देते हुए साफ लिखा है कि अभियोजन द्वारा पेश चश्मदीद गवाहों, दस्तावेजों एवं वैज्ञानिक सबूत आरिज पर लगे आरोपों को साबित करते हैं. इसमें संदेह की कहीं कोई गुंजाइश नहीं है. 

न्यायालय ने साफ लिखा है कि आरिज व उसके साथियों ने इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की हत्या की थी और पुलिसकर्मियों पर गोली चलाई थी. न्यायालय ने यह भी कहा है कि आरिज खान अपने चार साथियों मोहम्मद आतिफ अमीन, मोहम्मद साजिद, मोहम्मद सैफ एवं शहजाद अहमद के साथ बाटला हाउस में मौजूद था. 

न्यायालय का फैसला उन लोगों को करारा प्रत्युत्तर है जो शहीद इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा के बलिदान को कमतर करते हुए पूरे मामले को पुलिस द्वारा गढ़ा गया एवं मुठभेड़ को फर्जी करार देने का अभियान लगातार चलाए हुए थे. 

करीब साढ़े 12 वर्षों बाद आया यह फैसला हम सबको उद्वेलित व संवेदित करने के लिए पर्याप्त है. वैसे 25 जुलाई 2013 को न्यायालय ने शहजाद को आजीवन कारावास की सजा देकर बाटला हाउस मुठभेड़ को सही करार दिया था. बावजूद इस पर शोर कम नहीं हुआ. 

याद करिए 13 सितंबर 2008 को जब दिल्ली में करोल बाग, कनॉट प्लेस और ग्रेटर कैलाश में एक के बाद एक श्रृंखलाबद्ध धमाके हुए तो कैसी स्थिति बनी थी? उन धमाकों में 30 लोग मारे गए और 100 से अधिक घायल हुए थे. 

यह तो संयोग था कि पुलिस ने समय रहते कनॉट प्लेस के रीगल सिनेमा, इंडिया गेट एवं संसद मार्ग से चार बमों को धमाके से पहले बरामद कर निष्क्रिय कर दिया था अन्यथा आतंकवादियों ने अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

पुलिस के आरोप पत्र और फैसले को देखें तो इसमें पूरी घटना का सिलसिलेवार वर्णन है. पुलिस की जांच से पता लग गया था कि इंडियन मुजाहिदीन या आईएम के आतंकवादियों ने इन घटनाओं को अंजाम दिया है और वे सभी बाटला हाउस के एल 18 स्थित फ्लैट नंबर 108 में छिपे हैं. 

इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की टीम 19 सितंबर 2008 की सुबह सादे कपड़ों में सेल्समैन बनकर आतंकियों को पकड़ने के लिए पहुंची. उन्होंने ज्योंही दरवाजा खटखटाया अंदर से गोली चलनी शुरू हो गई. गोलीबारी में दो आतंकवादी आतिफ अमीन और मोहम्मद सज्जाद मारे गए, मोहम्मद साहब और आरिफ खान भाग निकलने में सफल हो गए जबकि जीशान पकड़ में आ गया. 

मोहन चंद शर्मा वहीं शहीद हो गए थे. जैसे ही पुलिस ने लोगों की धरपकड़ शुरू की व्यापक विरोध शुरू हो गया जिसमें राजनीतिक दल, एनजीओ, एक्टिविस्ट, जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्र संगठन- शिक्षक संगठन शामिल थे. जो मोहन चंद शर्मा बहादुरी से लड़ते हुए हमारी आपकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बलिदान हो गए उनको दोषी और अपराधी साबित किया जाने लगा. 

यह भी आरोप लगा कि पुलिस वालों ने ही उनको गोली मार दी. हालांकि ये लोग भी नहीं बता सके कि आखिर आरिज खान है कहां. ग्रेटर कैलाश के एम. ब्लॉक मार्केट स्थित पार्क में आरिफ ने ही बम रखा था.

वैज्ञानिक साक्ष्य के रूप में पुलिस की ओर से आरिज की आवाज के नमूने की जांच रिपोर्ट पेश की गई. इससे पता चला कि घटना के दौरान आरिज ने आतिफ अमीन के मोबाइल नंबर 9811 00 43 09 से कॉल किया था. इससे भी उसके घटनास्थल पर होने की पुष्टि हुई. 

गिरफ्तार मोहम्मद सैफ ने भी आरिज के होने की बात कबूल की. घटनास्थल से आरिज की तस्वीरें, उसके शैक्षणिक प्रमाण पत्र आदि की बरामदगी को भी चुनौती दी गई लेकिन यह नहीं बता सके कि आखिर पुलिस को ये सब मिला कहां से? इंस्पेक्टर शर्मा के गोली लगने के स्थान, उनके सुराख पर भी प्रश्न उठाए गए. अंतत: साबित हुआ कि उनको लगी गोली से बने घाव उनके कपड़े पर हुए सुराख से मेल खाते हैं तथा गिरे आंसू उनके घाव को दशार्ते हैं.  

वास्तव में दिल्ली एवं देश के आम लोगों को पुलिस की जांच पर कोई संदेह नहीं था लेकिन उस वर्ग ने इसे संदेहास्पद बना दिया, जो प्राय: आतंकवादी घटनाओं को संदेह के घेरे में लाता है, पकड़े गए संदिग्ध आतंकवादियों को मासूम बताने के लिए बनावटी तथ्यों और तर्कों का जाल बुनता है तथा पुलिस एवं सरकारों को कठघरे में खड़ा करता है. 

अभी मामला ऊपर के न्यायालयों में जाएगा. वर्तमान फैसले के आलोक में ऐसे लोगों से फिर निवेदन किया जा सकता है कि सुरक्षा के मामले में राजनीति और तथाकथित विचारधारा के नाम पर इस तरह का वितंडा आत्मघाती हो सकता है.

Web Title: Awadhesh Kumar blog: Batla House encounter was not fake

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