ब्लॉग: पहाड़ों के साथ खिलवाड़ करने से बचना होगा
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: August 3, 2024 10:12 AM2024-08-03T10:12:50+5:302024-08-03T10:14:49+5:30
वायुसेना के एमआई-17 और चिनूक हेलिकॉप्टर की मदद से रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया जा रहा है। हालांकि विजिबिलिटी कम होने की वजह से हेलिकॉप्टरों को उड़ान भरने में बाधा आ रही है, इसके बावजूद बाधाओं को पार करते हुए यात्रियों को बाहर निकाला जा रहा है।
देश के कई हिस्सों में इन दिनों बारिश अपना रौद्र रूप दिखा रही है। वायनाड में हुए भूस्खलन की त्रासदी अभी ताजा ही है और अब हिमाचल प्रदेश में भी कई जगह बादल फटने की घटनाएं हुई हैं। बुधवार रात केदारनाथ धाम में भी बादल फटने के बाद हजारों श्रद्धालु विभिन्न स्थानों पर फंस गए थे। इन यात्रियों को सुरक्षित निकालने का काम जारी है लेकिन इसके लिए वायुसेना को खासी मशक्कत करनी पड़ रही है।
वायुसेना के एमआई-17 और चिनूक हेलिकॉप्टर की मदद से रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया जा रहा है। हालांकि विजिबिलिटी कम होने की वजह से हेलिकॉप्टरों को उड़ान भरने में बाधा आ रही है, इसके बावजूद बाधाओं को पार करते हुए यात्रियों को बाहर निकाला जा रहा है।
इस घटना ने वर्ष 2013 में केदारनाथ में हुई भयावह त्रासदी की याद दिला दी है। 16 जून 2013 को केदारनाथ धाम के पीछे मौजूद चोराबारी ग्लेशियर के ऊपर बादल फटा था। इससे ग्लेशियर में बनी एक पुरानी झील में इतना पानी भर गया कि उसकी दीवार टूट गई।पांच मिनट में ही पूरी झील खाली हो गई थी और पानी इतनी तेजी से निकला कि केदारनाथ धाम से लेकर हरिद्वार तक 239 किमी तक सुनामी जैसी लहरें देखने को मिलीं।इस हादसे में हजारों लोग मारे गए थे और हजारों लोगों का आज तक पता नहीं चला।
उस घटना के बाद उम्मीद जताई गई थी कि इससे सबक लेकर हालात कुछ सुधरेंगे, लेकिन ऐसा लगता है कि हादसे हमारे जेहन में थोड़ी देर तक तो ताजा रहते हैं, उसके बाद फिर सबकुछ पहले की तरह ही चलने लगता है।
हिमालय के पहाड़ अन्य पहाड़ों की तुलना में अभी काफी कच्चे हैं और इंसानी गतिविधियों को ज्यादा वहन नहीं कर सकते।पुराने जमाने में भी लोग पहाड़ों पर तीर्थयात्रा करने जाते थे, लेकिन मार्ग दुर्गम होने के कारण उनकी संख्या सीमित रहती थी। अब अत्याधुनिक तकनीकी विकास के चलते मार्गों को इतना सुगम बना दिया गया है कि कभी अत्यधिक दुर्गम माने जाने वाले तीर्थस्थलों पर भी आज लाखों की संख्या में लोग पहुंच रहे हैं। 2013 की भयावह आपदा के बावजूद, उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2019 में करीब दस लाख लोग केदारनाथ धाम की यात्रा पर पहुंचे थे। वर्ष 2020 और 2021 में कोरोना महामारी के कारण इस संख्या में काफी गिरावट आई थी, लेकिन 2022 में फिर यह आंकड़ा 15 लाख के ऊपर चला गया।
2023 में यह 19 लाख के ऊपर पहुंच गया और इस साल तो करीब 25 लाख लोगों के केदारनाथ धाम पहुंचने का अनुमान जताया जा रहा है। जाहिर है कि जब इतनी भारी संख्या में लोग पहुंचेंगे तो वहां कचरा और प्रदूषण भी फैलेगा ही। ऐसे में पहाड़ों की सहनशक्ति जब जवाब देने लगती है तो भीषण आपदाएं आती हैं।तीर्थस्थल श्रद्धा के केंद्र होते हैं और उन्हें मनोरंजन स्थल बनने से बचाना होगा।
जो भी ऐसे स्थलों पर जाए, उस पर यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वह किसी भी तरह का कचरा वहां नहीं फैलाएगा।साथ ही वहां से जल्दी से जल्दी वापस लौटने की कोशिश होनी चाहिए ताकि लोगों के दैनंदिन क्रियाकलापों का बोझ पहाड़ों पर कम से कम पड़े। अगर हम समय रहते नहीं चेतेंगे तो 2013 जैसी आपदा फिर से आने में देर नहीं लगेगी।