Assembly Elections 2024: विपक्षी गठबंधन में फिर से उभरती ‘गांठें’?, देखिए विधानसभा चुनाव आंकड़े

By राजकुमार सिंह | Published: October 12, 2024 05:17 AM2024-10-12T05:17:38+5:302024-10-12T05:17:38+5:30

Assembly Elections 2024: लगातार तीसरी बार केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार बनने में विपक्ष का भी कुछ योगदान रहा, जो स्वाभाविक मित्र दलों को भी गठबंधन में साथ नहीं रख पाया, जबकि भाजपा नए-पुराने मित्र जोड़ने में सफल रही.

Assembly Elections 2024 aam chunav bjp 240 Opposition alliance India win 232 seats Knots emerging again blog raj kumar singh | Assembly Elections 2024: विपक्षी गठबंधन में फिर से उभरती ‘गांठें’?, देखिए विधानसभा चुनाव आंकड़े

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Highlightsलोकसभा चुनावों के बाद सबसे पहले हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए. भाजपा-कांग्रेस को मिली 5-5 लोकसभा सीटों से साफ था कि मुकाबला बराबरी का है.कांग्रेस 10 साल बाद हरियाणा सत्ता में लौट भी सकती है, लेकिन परिणाम चौंकानेवाले आए.

Assembly Elections 2024: यह विपक्ष की विडंबना ही है कि वह चुनावी मुकाबले में एक कदम आगे बढ़ता है और फिर दो कदम पीछे फिसल जाता है. हरियाणा विधानसभा चुनाव नवीनतम उदाहरण है. अप्रैल-जून में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा को अकेले दम बहुमत पाने से वंचित रखने में सफल विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ खुद 232 सीटों तक पहुंच गया था यानी भाजपा से मात्र आठ सीटें कम. जाहिर है, लगातार तीसरी बार केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार बनने में विपक्ष का भी कुछ योगदान रहा, जो स्वाभाविक मित्र दलों को भी गठबंधन में साथ नहीं रख पाया, जबकि भाजपा नए-पुराने मित्र जोड़ने में सफल रही.

लोकसभा चुनावों के बाद सबसे पहले हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए. भाजपा और कांग्रेस को मिली पांच-पांच लोकसभा सीटों से साफ था कि मुकाबला बराबरी का है. यह भी कि सही चुनावी रणनीति और प्रबंधन के जरिए कांग्रेस दस साल बाद हरियाणा की सत्ता में लौट भी सकती है, लेकिन चुनाव परिणाम चौंकानेवाले आए.

यह पहली बार नहीं है, जब हार के बाद कारणों की खोज हो रही है, पर याद नहीं पड़ता कि गलतियों से कभी कोई सबक सीखा गया हो. पिछले साल के अंत में हुए राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावों में भी बाद के दोनों राज्यों में कांग्रेस की जीत की संभावनाएं चुनावी पंडित बता रहे थे, लेकिन परिणाम लगभग एकतरफा आए.

तब भी रेखांकित किया गया था कि छोटे और क्षेत्रीय दलों को साथ न लेना कांग्रेस की हार का एक बड़ा कारण रहा. लोकसभा चुनाव में भूल सुधार की कोशिश की गई तो राजस्थान और हरियाणा में बेहतर परिणाम भी मिले, पर उन्हें अपने पुनरुत्थान का ठोस संकेत मान कर कांग्रेस फिर हवा में उड़ने लगी. दिल्ली और हरियाणा में कांग्रेस-आप के बीच गठबंधन हुआ.

दिल्ली में तो यह गठबंधन भाजपा को लगातार तीसरी बार सभी सात सीटें जीतने से नहीं रोक पाया, लेकिन हरियाणा में स्कोर 5-5 का रहा. कांग्रेस अपने हिस्से की नौ में से पांच सीटें जीत गई तो उसे लगा कि वह अकेले दम भाजपा से हरियाणा की सत्ता छीन सकती है. राहुल गांधी ने इच्छा भी जताई कि सहयोगी दलों को साथ लेकर हरियाणा में ‘इंडिया’ गठबंधन की एकजुट तस्वीर पेश की जानी चाहिए.

लेकिन क्षत्रप अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से आगे नहीं देखते.  चुनाव परिणाम बता रहे हैं कि अगर दस साल की सत्ता विरोधी भावना के बावजूद भाजपा जीत की हैट्रिक लगाने में सफल रही तो कांग्रेस ने अपनी आसान दिखती जीत को खुद ही हार में तब्दील किया.

देश का सबसे पुराना राजनीतिक दल होने के नाते कांग्रेस दावा ज्यादा सीटों पर जताती है, पर संगठनात्मक कमजोरी और वोट बैंक बिखराव के चलते जीत कम सीटें पाती है. यह विरोधाभास और उससे बढ़ता अविश्वास गठबंधन राजनीति में कांग्रेस की राह और ‘इंडिया’ की चुनावी चुनौतियां दुष्कर ही बनाएगा.

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