पुण्य प्रसून वाजपेयी का ब्लॉगः देश की राजनीति को प्रभावित करेगा ये जनादेश

By पुण्य प्रसून बाजपेयी | Published: December 12, 2018 05:47 AM2018-12-12T05:47:15+5:302018-12-12T05:47:15+5:30

तीनों राज्यों में औद्योगिक विकास ठप पड़ा है. तीनों राज्यों में खनिज संसाधनों की लूट चरम पर है. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में तो संघ के स्वयंसेवकों की टोलियों का कब्जा सरकारी संस्थानों से लेकर सिस्टम के हर पुर्जे पर है.

assembly election results: mandate will affect the politics of the country | पुण्य प्रसून वाजपेयी का ब्लॉगः देश की राजनीति को प्रभावित करेगा ये जनादेश

पुण्य प्रसून वाजपेयी का ब्लॉगः देश की राजनीति को प्रभावित करेगा ये जनादेश

जनादेश की आंधी ऐसी चली कि तीन बार की रमन सरकार ही बह गई. मध्य प्रदेश के इंदौर और भोपाल सरीखे शहरी इलाकों में भी भाजपा को जनता ने मात दे दी. जहां की सीट और कोई नहीं अमित शाह ही तय कर रहे थे. और राजस्थान में जहां-जहां वसुंधरा को धूल चटाने के लिए मोदी - शाह की जोड़ी गई वहां वहां वसुंधरा ने किला बचाया और जिन 42 सीटों को दिल्ली में बैठ कर अमित शाह ने तय किया उसमें से 34 सीटों पर भाजपा की हार हो गई. 

तो क्या वाकई 2019 की जीत तय करने के लिए भाजपा के तीन मुख्यमंत्रियों का बलिदान हुआ. या फिर कांग्रेस ने वाकई पसीना बहाया और जमीनी स्तर पर जुड़े कार्यकर्ताओं को महत्ता देकर अपने आलाकमान के पिरामिड को इस बार पलट दिया. यानी न तो पैराशूट उम्मीदवार और न ही बंद कमरों के निर्णयों को महत्व. तो क्या बूथ दर बूथ और पन्ने दर पन्ने की सोच तले पन्ना प्रमुख की रणनीति जो शाह बनाते रहे वह इस बार टूट गई. 

हो सकता है ये सारे आकलन अब शुरू हों लेकिन महज चार महीने बाद ही देश को जिस आम चुनाव के समर में कूदना है उसकी बिसात कैसी होगी और इन तीन राज्यों में कांग्रेस की जीत या भाजपा की हार कौन सा नया समीकरण तैयार कर देगी अब नजरें तो इसी पर हर किसी की होंगी. हां, तेलंगाना में कांग्रेस की हार से ज्यादा चंद्रबाबू के बेअसर होने ने उस लकीर को चाहे-अनचाहे मजबूत कर दिया कि अब गठंबधन की शर्ते क्षत्नप नहीं कांग्रेस तय करेगी.
 
यानी जनादेश ने पांच सवालों को जन्म दे दिया है. पहला, अब मोदी को चेहरा बनाकर प्रेसीडेंशियल फार्मेट की सोच की खुमारी भाजपा से उतर जाएगी. दूसरा, मोदी ठीक हैं पर विकल्प कोई नहीं की खाली जगह पर ठसक के साथ राहुल गांधी नजर आएंगे. तीसरा, दलित वोट बैंक की एकमात्न नेत्नी मायावती नहीं हैं और 2019 में मायावती की सौदेबाजी का दायरा बेहद सिमट गया. चौथा, महागठबंधन के नेता के तौर पर राहुल गांधी को खारिज करने की स्थिति में कोई नहीं होगा. पांचवां, भाजपा के सहयोगी छिटकेंगे और शिवसेना की सौदेबादी का दायरा न सिर्फ भाजपा को मुश्किल में डालेगा बल्कि शिवसेना मोदी पर सीधा हमला बोलेगी. 

तो क्या वाकई कांग्रेस के लिए अच्छे दिनों की आहट और भाजपा के बुरे दिन की शुरुआत हो गई. अगर इस सोच को भी सही मान लें तो भी कुछ सवालों का जवाब जो जनता जनादेश के जरिये दे चुकी है, उसे जुबां कौन सी सत्ता दे पाएगी ये अपने आप में सवाल है. मसलन राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ तीनों सत्ता घाटे के साथ कांग्रेस को मिल रही है. यानी सत्ता पर कर्ज है. तीन राज्यों में किसान-मजदूर-युवा बेरोजगार बेहाल हैं. 

तीनों राज्यों में औद्योगिक विकास ठप पड़ा है. तीनों राज्यों में खनिज संसाधनों की लूट चरम पर है. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में तो संघ के स्वयंसेवकों की टोलियों का कब्जा सरकारी संस्थानों से लेकर सिस्टम के हर पुर्जे पर है. और सबसे बड़ी बात तो ये है कि मौजूदा दौर में जो खटास राजनीतिक तौर पर उभरी वह सिर्फ बयानबाजी या राजनीतिक हमले भर की नहीं रही. बल्कि कांग्रेस को फाइनेंस करने वाले छत्तीसगढ़ के 27 और मध्य प्रदेश के 36 लोगों पर दिल्ली से सीबीआई और इनकमटैक्स के छापे पड़े. 

यानी राजनीतिक तौरतरीके पारंपरिक चेहरे वाले रहे नहीं हैं. तो ऐसे में सत्ता परिवर्तन राज्य में जिस तल्खी के साथ उभरेंगे उसमें इस बात का इंतजार करना होगा कि अब कांग्रेस के लिए संघ का मतलब सामाजिक, सांस्कृतिक संगठन भर नहीं होगा. लेकिन बात यहीं नहीं रुकती क्योंकि मोदी भी समझ रहे हैं और राहुल गांधी भी जान रहे हैं कि अगले तीन महीने की सत्ता 2019 की बिसात को तय करेगी. यानी सत्ता चलाने के तौरतरीके बेहद मायने रखेंगे. 

खासकर आर्थिक हालात और सिस्टम का काम करना. मोदी के सामने अंतरिम बजट सबसे बड़ी चुनौती है तो कांग्रेस के सामने नोटबंदी के बाद असंगठित क्षेत्न को पटरी पर लाने और ग्रामीणों की हालत में सुधार तत्काल लाने की चुनौती है. फिर भ्रष्टाचार के मुद्दों को उठाकर 2014 में जिस तरह बार-बार मोदी ने कांग्रेस को घेरा अब इन्हीं तीन राज्यों में भ्रष्टाचार के मुद्दों के आसरे कांग्रेस बिना देर किए भाजपा को घेरेगी. 

मध्य प्रदेश का व्यापमं घोटाला हो या वसुंधरा का ललित मोदी के साथ मिलकर खेल करना या फिर रमन सिंह का पनामा पेपर. और इस रास्ते को सटीक तरह से चलाने के लिए तीनों राज्यों में जो तीन चेहरे कांग्रेस में सबसे फिट हैं उसमें मध्य प्रदेश में कमलनाथ तो राजस्थान में सचिन पायलट और छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल ही फिट बैठते हैं. 

पर इस कड़ी में आखरी सवाल यही है कि अब शिवराज, रमन सिंह और वसुंधरा का क्या होगा. या फिर मोदी - शाह की जोड़ी अब कौन सी बिसात बिछाएगी या फिर मोदी सत्ता कौन सा तुरुप का पत्ता देश के सामने फेंकेगी जिससे ये मई 2019 तक बरकरार रहे. 

Web Title: assembly election results: mandate will affect the politics of the country

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