प्रमोद भार्गव का ब्लॉगः भाजपा का टूटता तिलिस्म
By प्रमोद भार्गव | Published: December 13, 2018 08:21 AM2018-12-13T08:21:16+5:302018-12-13T08:21:16+5:30
इस चुनाव के परिणामों ने उन सब हुनरबंदों के चेहरों का रंग उड़ा दिया है, जो चुनाव विश्लेषक, चुनावी सर्वेक्षणों के विशेषज्ञ और जमीनी पत्रकार होने का दंभ भरते थे. मध्य प्रदेश में ज्यादातर एग्जिट पोल कांग्रेस की 140 सीटें बता रहे थे, लेकिन उसे भाजपा से बड़े मुकाबले में बहुमत से दो सीटें कम मसलन 114 पर अटक जाना पड़ा.
नरेंद्र मोदी और अमित शाह की अपराजेयता का तिलिस्म और कांग्रेस मुक्त भारत का भ्रम टूट गया है. पांच विधानसभाओं के चुनाव परिणामों ने भाजपा का विजयरथ थामकर, उसे दुविधा में डाल दिया, जबकि कांग्रेस नए उत्साह से भरकर 2019 के लोकसभा चुनाव में जुट जाने के लिए प्रोत्साहित होगी.
इन चुनावों में जहां कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में भाजपा का सूपड़ा साफ कर दिया है, वहीं राजस्थान में बहुमत लाने में सफल हुई है, किंतु रोचक नतीजे मध्य प्रदेश में देखने में आए हैं. यहां कांग्रेस स्पष्ट बहुमत से दो सीट पीछे है. अलबत्ता बसपा, सपा और जो निर्दलीय जीते हैं, उन्हें साथ लेने में कांग्रेस को कोई मुश्किल आने वाली नहीं है. कांग्रेस के चार बागी उसके समर्थन में आ खड़े हुए हैं. मायावती ने भी बसपा के जीते दो उम्मीदवारों का समर्थन देने का ऐलान कर दिया है.
इस चुनाव के परिणामों ने उन सब हुनरबंदों के चेहरों का रंग उड़ा दिया है, जो चुनाव विश्लेषक, चुनावी सर्वेक्षणों के विशेषज्ञ और जमीनी पत्रकार होने का दंभ भरते थे. मध्य प्रदेश में ज्यादातर एग्जिट पोल कांग्रेस की 140 सीटें बता रहे थे, लेकिन उसे भाजपा से बड़े मुकाबले में बहुमत से दो सीटें कम मसलन 114 पर अटक जाना पड़ा. जबकि भाजपा 109 सीटों पर जीत के साथ विपक्ष की मजबूत भूमिका निभाएगी.
इस चुनाव में गठबंधन का मिथक भी टूटा है. तेलंगाना में हुआ कांग्रेस से गठबंधन हर तरह से तेलंगाना राष्ट्र समिति भारी दिख रहा था, लेकिन एकाएक हुआ गठबंधन अवसरवाद का परिणाम था, इसीलिए समझदार मतदाता ने उसे नकार दिया. नतीजतन टीआरएस की एक बार तेलंगाना में फिर से धुआंधार वापसी हुई है. मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने समय से पहले चुनाव कराने का जो जोखिम उठाया, उसमें वे कामयाब रहे. कांग्रस ने टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू से गठबंधन किया था.
इस बार चुनाव आयोग भीे ज्यादा सतर्क दिखाई दिया है. वीवीपैट ने भी शंकाओं का परिहार किया है. शिवपुरी जिले की कोलारस विधानसभा सीट पर कांटे की टक्कर के अंतिम परिणाम वीवीपैट की पर्चियों की गिनती से ही तय हुआ. गोया, ईवीएम की विश्वसनीयता नि:संदिग्ध साबित हुई है. आयोग की यह तकनीक लोकतंत्र की नींव को मजबूती देगी. बहरहाल इन चुनावों ने यह भी तय कर दिया है कि मीडिया प्रबंधन, विज्ञापन और धन के बूते भारत के इस संवैधानिक लोकतंत्र में सेंध लगाना मुश्किल है.