अश्विनी महाजन का ब्लॉग: GST पर केंद्र और राज्यों के बीच बढ़ती रार
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: October 20, 2020 03:19 PM2020-10-20T15:19:22+5:302020-10-20T15:19:22+5:30
पिछले वर्ष का बकाया अभी बाकी था कि नए वित्तीय वर्ष 2020-21 के पहले ही माह से जीएसटी की प्राप्तियां कोविड-19 महामारी के चलते नीचे जाने लगीं. ऐसे में चूंकि केंद्र के पास भी राजस्व घटा है, वह इसकी भरपाई करने में स्वयं को असमर्थ पा रही है.
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और राज्यों के बीच आम सहमति बनाते हुए उनके लगभग सभी अप्रत्यक्ष करों को समाहित करते हुए जीएसटी यानी वस्तु एवं सेवा कर के नाम से एक कर वर्ष 2017 के जुलाई माह से लागू कर दिया गया. गौरतलब है कि जीएसटी लागू होने के बाद इस कर से होने वाले संपूर्ण राजस्व के दो बराबर के हिस्से होते हैं.
इसमें से एक हिस्सा केंद्र के पास आता है और दूसरा राज्यों के पास. कई राज्य जीएसटी प्रणाली के लागू होने का विरोध कर रहे थे. ऐसे में तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने एक फार्मूला लागू किया, जिसके अनुसार राज्यों को उनके उन करों से प्राप्त आमदनियों में न केवल जीएसटी में राज्यों के हिस्से में सुनिश्चित किया जाएगा, बल्कि उनमें हर वर्ष 14 प्रतिशत की वृद्धि की भी गारंटी होगी. ऐसी व्यवस्था 5 वर्ष तक चलेगी.
केंद्र सरकार की यह अपेक्षा थी कि जीएसटी से न केवल कर एकत्रीकरण में कुशलता बढ़ेगी, बल्कि इससे करों की चोरी भी रुकेगी और करों के कारण बिना वजह कीमत बढ़ने (कास्केडिंग इफेक्ट) जैसी स्थिति भी समाप्त होगी. इससे एक ओर कर राजस्व बढ़ेगा तो दूसरी ओर उपभोक्ताओं को भी इस व्यवस्था का लाभ होगा, क्योंकि इससे कीमतें भी घटेंगी.
पिछले वर्ष का बकाया अभी बाकी था कि नए वित्तीय वर्ष 2020-21 के पहले ही माह से जीएसटी की प्राप्तियां कोविड-19 महामारी के चलते नीचे जाने लगीं. ऐसे में चूंकि केंद्र के पास भी राजस्व घटा है, वह इसकी भरपाई करने में स्वयं को असमर्थ पा रही है. इन परिस्थितियों में 12 अक्तूबर 2020 को जीएसटी काउंसिल की बैठक हुई, लेकिन इस हेतु मतैक्य के साथ समाधान नहीं हो सका.
गौरतलब है कि चालू वित्तीय वर्ष में 2.35 लाख करोड़ रुपए के राजस्व की कमी रहेगी. केंद्र सरकार ने राज्यों को यह सुझाव दिया है कि वे इस कमी को पूरा करने के लिए उधार लेना शुरू करें, लेकिन सभी राज्यों में इस बाबत सहमति नहीं बन पाई है.
केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को दो विकल्प दिए हैं. एक विकल्प यह है कि राज्य सरकारें इस राजस्व के नुकसान की भरपाई के लिए 1.1 लाख करोड़ रुपए का उधार उठाएंगी और उसके मूल और ब्याज दोनों की अदायगी भविष्य में विलासिता की वस्तुओं एवं अवगुण वाली वस्तुओं पर लगाए जाने वाले क्षतिपूर्ति ‘सेस’ से की जाएगी.
दूसरा विकल्प यह है कि राज्य सरकारें पूरे के पूरे नुकसान 2.35 लाख करोड़ रुपए का उधार लेंगी, लेकिन उस परिस्थिति में मूल की अदायगी तो क्षतिपूर्ति ‘सेस’ से की जाएगी, लेकिन ब्याज के बड़े हिस्से की अदायगी उन्हें स्वयं करनी होगी. हो सकता है कि सभी के लिए स्वीकार्य एक समाधान शायद आने वाले दिनों में संभव हो सके.