डॉ. आशीष दुबे का ब्लॉग: कोरोना के बाद शैक्षिक संकट और शैक्षणिक संस्थाओं का दायित्व
By डॉ. आशीष दुबे | Published: March 26, 2020 10:29 PM2020-03-26T22:29:54+5:302020-03-26T22:29:54+5:30
इस समय देश में 21 दिन का लॉकडाउन है. एक सवाल मन में बना हुआ है कि कोरोना वायरस के संक्रमण से हम सब मिलकर लड़ेगे.
इस समय पूरे देश में कोरोना वायरस के संक्रमण से निपटने की युद्धस्तर पर प्रयास किए जा रहे है. इन प्रयासों के तहत सबसे पहले शैक्षणिक संस्थाओं को बंद कराया गया. बच्चों को अवकाश दिया गया. स्कूली परीक्षाएं टाल दी गई. कुछ दिन बाद विश्वविद्यालयों की परीक्षाएं स्थगित हो गई.
शैक्षणिक कार्य व गतिविधियां ठप हो गई. हालांकि यह बेहद जरूरी भी था. इस तरह के कदम 14 मार्च के बाद से उठाए जाने लगे. इस समय देश में 21 दिन का लॉकडाउन है. एक सवाल मन में बना हुआ है कि कोरोना वायरस के संक्रमण से हम सब मिलकर लड़ेगे. इसमें सफल भी जरूर होगे.
इसके बाद पेश आने वाले शैक्षिक संकट से कैसे निपटेगे. किस तरह से स्कूलों में परीक्षाएं होगी. बोर्ड व विश्वविद्यालयों में परीक्षाएं कैसे होगी. केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) हो या राज्यों के शिक्षा बोर्ड सभी की परीक्षाएं अधर में है.
कुछ राज्यों में बोर्ड परीक्षाएं स्थगित कर दी थी. यही स्थिति विश्वविद्यालयों की बनी हुई है. केंद्रीय विश्वविद्यालय हो या राज्यों के विश्वविद्यालय सभी ने एक के बाद एक परीक्षाएं स्थगित कर दी थी. इनमें कुछ ऐसे विश्वविद्यालय है जो संबद्ध महाविद्यालयों, विद्यार्थियों और पाठ्यक्रमों की संख्या के लिहाज से काफी बढ़े माने जाते है. सवाल उठने का कारण यह भी है कि अभी तक केंद्र व राज्य सरकारों ने इस मुद्दे पर कोई खुलासा नहीं किया है. ऐसी योजनाओं कोई योजनाएं अभी सामने नहीं आई है कि कोरोना वायरस के संक्रमण के बाद स्थितियां सामान्य होने के बाद शैक्षिक संकट से निपटने के लिए क्या किया जाएगा.
सरकार ही नहीं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद, बार काउंसिल आॅफ इंडिया, फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया समेत वह तमाम प्राधिकरणों की ओर से कोई ऐसा सामाधान अब तक सामने नहीं आया है. खुद विश्वविद्यलायों के कुलपति व परीक्षा व्यवस्था से जुड़े अधिकारी व शिक्षकों की ओर से कोई नीति सामने नहीं आई है. ऐसे में 21 दिन के लिए घर में बैठे पालक व विद्यार्थियों को यह सबसे बड़ी चिंता बनी हुई है.
केंद्र व राज्य सरकारों के साथ ही उच्च शिक्षा को नियंत्रित व नियमन करने वाले प्राधिकरणों के साथ ही विश्वविद्यालयों को भी इस बारे में कोई ठोस समाधान वाली नीति की घोषणा करनी चाहिए. मनोचिकित्सकों की राय है कि 21 दिन के लॉकडाउन की वजह से घर में बंद लोगों में तनाव, निराशा, चिढ़चिढापन बढ़ सकता है. ऐसे में यदि शैक्षिक संकट का ठोस समाधान सामने आता है तो पालक व विद्यार्थियों में तनाव, निराशा, चिढ़चिढापन होने की स्थिति को रोकने में काफी हद तक मदद मिलेगी.