अरुण जेटली (1952-2019): मोदी-शाह ने लुटियंस दिल्ली में अपना सबसे भरोसेमंद दोस्त खो दिया

By धीरज पाल | Published: August 24, 2019 04:46 PM2019-08-24T16:46:29+5:302019-08-24T16:57:03+5:30

अरुण जेटली का शनिवार दोपहर नई दिल्ली स्थित एम्स में निधन हो गया। अरुण जेटली वित्त मंत्री, रक्षा मंत्री, कानून मंत्री और सूचना एवं प्रसारण मंत्री जैसे अहम पदों को संभाल चुके थे।

Arun Jaitley Death bjp spin doctor crisis manager media manager and legal voice | अरुण जेटली (1952-2019): मोदी-शाह ने लुटियंस दिल्ली में अपना सबसे भरोसेमंद दोस्त खो दिया

अरुण जेटली अटल बिहारी वाजपेयी सरकार और नरेंद्र मोदी सरकर में केंद्रीय मंत्री रहे थे।

Highlightsअरुण जेटली पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय बने थे।2014 की नरेंद्र मोदी सरकार में जेटली देश के वित्त मंत्री और रक्षा मंत्री रहे।

अरुण जेटली भाजपा के मैन इन दिल्ली थे। दिल्ली में पले-बढ़े, पढ़े-लिखे जेटली का राजनीतिक जीवन दिल्ली में ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) की राजनीति से शुरू हुआ। जेटली 1974 में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गये। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस लुटियंस दिल्ली को अपना सबसे बड़ा आलोचक बताते हैं अरुण जेटली उसके अहम हिस्सा माने जाते रहे। मीडिया मैनेजर, बीजेपी के संकटमोचक और अटल-आडवाणी के करीबी से मोदी-शाह के खास रहे जेटली विपक्ष दलों के कई नेताओं के भी भरोसेमंद मित्र माने जाते थे।

28 दिसम्बर 1952 को दिल्ली में जन्मे जेटली ने डीयू के टॉप कॉलेजों श्रीराम कॉलेज ऑफ कामर्स और लॉ सेंटर के पूर्व छात्र थे। बीजेपी की राजनीति को करीब से जानने वाले कुछ पुराने पत्रकार मानते रहे हैं कि जेटली की अच्छी अंग्रेजी और दिल्ली के अभिजात्य तबके में उनकी आमदरफ्त ने उन्हें उनकी पीढ़ी के दूसरे बीजेपी नेताओं से हमेशा आगे रखा। 

राजनीति में भी जेटली अपने समकालीन नेताओं से कन्धे से कन्धा मिलाकर चले। जेटली जयप्रकाश नारायण द्वारा बनाए गई छात्रों और युवाओं की राष्ट्रीय समिति अहम सदस्य और संयोजक थे। इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल का विरोध करने के लिए उन्हें करीब डेढ़ साल जेल में बिताना पड़ा। कारावास से बाहर निकलने के बाद जेटली भारतीय जनसंघ के सदस्य बने। 

अटल-आडवाणी और अरुण जेटली

1980 में जनता पार्टी से भारतीय जनसंघ धड़ा अलग हुआ और भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के कन्धों पर सवार नई राजनीतिक पार्टी में अरुण जेटली कुछ ही सालों में विश्वसनीय सिपससालार बनकर सामने आए। सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट के वकील जेटली को वीपी सिंह सरकार ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया। 

1980 के दशक में मण्डल-कमण्डल की राजनीति की शुरुआत हुई। बाद में बीजेपी का चेहरा बनने वाले कई नेताओं ने इसी दौरान अपने तेजाबी बयानों और इंकलाबी आंदोलनों की वजह से राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पहचान बनाई। लेकिन छात्र नेता से नेता बने जेटली इस दौर तक पार्टी के सौम्य, शालीन, शाइस्ता 'मैनेजर' की छवि अख्तियार करने लगे थे।

1990 के दशक में देश में बीजेपी केा क़द बढ़ना शुरू हुआ। साथ ही जेटली का महत्व पार्टी में बढ़ता गया। दिल्ली यूनिवर्सिटी के समय के जेटली के सम्पर्कों की बदौलत मीडिया, नौकरशाही और न्यायपालिका में उनके निजी सम्पर्क गहरे थे। 

वह ऐसा दौर था जब अंग्रेजीदाँ रसूखदार तबके में कांग्रेस की गहरी पकड़ के आगे बीजेपी ख़ुद को बेबस पाती थी। इस बेबसी का सबसे कारगर उपाय थे अरुण जेटली। 

मीडिया के दोस्त अरुण जेटली

जेटली को मीडिया का भी पक्का दोस्त माना जाता था। मीडिया में अरुण जेटली की इतनी गहर पकड़ थी कि कांग्रेस के साथ ही बीजेपी के खिलाफ आने वाली ख़बरों के स्रोत जेटली माने जाते थे।

माना जाता है कि जेटली के घर पर होने वाली संध्या बैठकों में पत्रकारों की अच्छी संख्या होती थी। कई वरिष्ठ पत्रकार लिख चुके हैं कि जेटली इन बैठकों का इस्तेमाल अनौपचारिक तरीके से अपनी पसंद की ख़बरों को मीडिया तक पहुँचाने के लिए भी इस्तेमाल करते थे। 

कानून का जानकार होने के नाते जब भी बीजेपी किसी कानूनी संकट में पड़ती थी तो अरुण जेटली उसका पहला सहारा होते थे। जेटली अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कानून मंत्री भी रहे थे। 

नरेंद्र मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में उत्तराखण्ड में की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त की गई तो जेटली ने पार्टी के फैसले का ब्लॉग लिखकर बचाव किया था। हालाँकि उत्तराखण्ड हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के बर्खास्तगी के फैसले को ग़ैर-क़ानूनी करार दिया था। 

ऐसे अनगिनत मौकों पर जेटली बीजेपी के संकट मोचक बनकर उभरे थे। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बाद उन्हें पिछली नरेंद्र मोदी सरकार का तीसरा अहम स्तम्भ माना जाता था। लेकिन नई सरकार बनने के बाद ही उन्होंने मंत्रिमण्डल में शामिल न होकर यह संकेत दे दिया था कि सक्रिय राजनीति में शायद उनकी वापसी न हो सके और यही हुआ भी।

आज (24 अगस्त 2019) को बीजेपी के इस ओजस्वी नेता के देहावसान के साथ मोदी-शाह ने लुटियंस दिल्ली में अपने सबसे भरोसेमंद दोस्त खो दिया।

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