हेमधर शर्मा ब्लॉग: बच्चे अधिक पैदा करने की अपील और बोझ बनते बुजुर्ग   

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: October 23, 2024 10:04 AM2024-10-23T10:04:51+5:302024-10-23T10:05:02+5:30

इसके अलावा खेतिहर कामों में ज्यादा लोगों की जरूरत भी पड़ती थी.

Appeal to have more children and the elderly becoming a burden | हेमधर शर्मा ब्लॉग: बच्चे अधिक पैदा करने की अपील और बोझ बनते बुजुर्ग   

हेमधर शर्मा ब्लॉग: बच्चे अधिक पैदा करने की अपील और बोझ बनते बुजुर्ग   

आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने लोगों से दो से अधिक बच्चे पैदा करने की अपील की है, लेकिन इसे कोरी अपील न समझें. नायडू ने घोषणा की है, ‘‘सरकार केवल दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने के लिए पात्र बनाने के लिए कानून लाने की योजना बना रही है.’’

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन तो उनसे एक-दो नहीं बल्कि दर्जनों कदम आगे बढ़ गए और नवविवाहित जोड़ों से 16-16 बच्चे पैदा करने की अपील कर डाली. हालांकि उन्होंने इसके लिए अभी कोई कानून लाने की धमकी नहीं दी है. उनकी चिंता है, ‘‘हमारी आबादी कम हो रही है जिसका असर हमारी लोकसभा सीटों पर भी पड़ेगा इसलिए क्यों न हम 16-16 बच्चे पैदा करें.’’

जबकि नायडू का कहना है, ‘‘आंध्र प्रदेश और देश भर के कई गांवों में केवल बुजुर्ग लोग ही बचे हैं. युवा पीढ़ी शहरों में चली गई है.’’ उनकी दलील है  ‘‘अगर प्रजनन दर में गिरावट जारी रही, तो हम 2047 तक गंभीर वृद्धावस्था समस्या का सामना करेंगे, जो वांछनीय नहीं है.’’

नायडू जनसांख्यिकीविद्‌ नहीं हैं, लेकिन मुख्यमंत्री हैं और उनकी बात को हल्के में नहीं लिया जा सकता. वे कहते हैं, ‘‘जापान, चीन और कुछ यूरोपीय देशों जैसे कई देश इस मुद्दे से जूझ रहे हैं, जहां आबादी का एक बड़ा हिस्सा बुजुर्ग है.’’ तो क्या अन्य राज्यों को भी ‘टू चाइल्ड पॉलिसी’ को खत्म कर देना चाहिए? उल्लेखनीय है कि देश के अधिकांश राज्यों में दो से ज्यादा बच्चे होने पर सरकारी नौकरी नहीं मिलती और चुनाव लड़ने पर भी रोक लग जाती है.

बेशक, यह स्थिति पूरे देश की है. गांवों से परिचित लोग जानते हैं कि किस तरह वहां के सारे युवा कमाने के लिए शहरों की ओर निकल जाते हैं और गांवों में रह जाते हैं सिर्फ बूढ़े और बुजुर्ग. साल-दो साल में वे अपने गांव का एकाध चक्कर लगा आते हैं और कभी याद आई तो गाने की इन पंक्तियों को गुनगुना लेते हैं, ‘...चार पैसे कमाने मैं आया शहर, गांव मेरा मुझे याद आता रहा.’  कोरोना काल में शहरों से गांवों की ओर लौटने वालों का जो तांता लग गया था, वह इस करुण कहानी की तस्दीक करता है.

सवाल यह है कि नायडू के अनुसार दो से ज्यादा या स्टालिन के अनुसार सोलह बच्चे पैदा करने पर गांवों में युवाओं की संख्या बढ़ कैसे जाएगी या उनका शहरों (और सक्षम लोगों का विदेशों) की ओर पलायन रुक कैसे जाएगा? पुराने जमाने में भी महिलाओं को बड़े-बुजुर्ग सौ पुत्रों की माता होने का आशीर्वाद देते थे. लेकिन तब अकाल मृत्यु का ऐसा खौफ होता था कि दर्जनों संतानों में से कई की मौत हो जाती थी. इसके अलावा खेतिहर कामों में ज्यादा लोगों की जरूरत भी पड़ती थी. अब मशीनीकरण के इस युग में शहरों, देश के दूसरे हिस्सों या विदेशों में युवाओं का पलायन रोकने के लिए, ज्यादा बच्चे पैदा करने का कानून बनाने के बजाय क्या हमें स्थानीय स्तर पर रोजगार पैदा करने के विकल्प पर विचार नहीं करना चाहिए?

जहां तक बुजुर्ग आबादी के ‘बोझ’ बनने की बात है, यह ऐसी त्रासदी है, जिसका संयुक्त से एकल बनते परिवारों में कोई समाधान नहीं दीखता. बूढ़े तो लोग हमेशा से होते आए हैं, उनका अनुभव समाज को दिशा दिखाता था, फिर समय एकदम कैसे बदल गया? फल जब प्राकृतिक रूप से पकता है तो सूखने लगता है, लेकिन कृत्रिम रूप से पकाने पर सड़ने लगता है. हमारे कृत्रिम होते जाते जीवन का भी क्या यही हश्र हमें डराने लगा है?

Web Title: Appeal to have more children and the elderly becoming a burden

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