अभिषेक कुमार सिंह का ब्लॉग: प्राचीन भारत की विज्ञान की प्रामाणिकता का सवाल
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 11, 2019 01:47 PM2019-01-11T13:47:30+5:302019-01-11T13:47:30+5:30
वैसे तो प्राचीन भारत के ज्ञान-विज्ञान की चर्चा गाहे-बगाहे देश में अरसे से चलती रही है, लेकिन वर्ष 2016 में पहला मौका था जब प्राचीन भारतीय विज्ञान के दावों को चर्चा के लिए साइंस कांग्रेस का विषय बनाया गया था।
पंजाब के जालंधर में संपन्न भारतीय राष्ट्रीय साइंस कांग्रेस की 106वीं बैठक में एक बार फिर प्राचीन मिथकों के हवाले से यह बात उठाई गई कि रामायण-महाभारत कोई मिथकीय ग्रंथ नहीं, बल्कि इतिहास हैं और इनमें वर्णित विमान आदि के संदर्भ वैज्ञानिक हैं।
वैसे तो प्राचीन भारत के ज्ञान-विज्ञान की चर्चा गाहे-बगाहे देश में अरसे से चलती रही है, लेकिन वर्ष 2016 में पहला मौका था जब प्राचीन भारतीय विज्ञान के दावों को चर्चा के लिए साइंस कांग्रेस का विषय बनाया गया था। इसमें खुलकर कहा गया कि प्राचीन भारत का विज्ञान तर्कसंगत है, इसलिए इसे सम्मान से देखा जाना चाहिए। यह दावा तत्कालीन केंद्रीय विज्ञान और तकनीक मंत्नी हर्षवर्धन ने भी किया था कि प्राचीन भारतीय ऋषियों ने खुशी-खुशी अपनी खोज का श्रेय दूसरे देशों के वैज्ञानिकों को दे दिया। जब उनके बयान पर विवाद हुआ तो कांग्रेस सांसद शशि थरूर उनके पक्ष में आ गए थे और कहा था कि प्राचीन भारत की विज्ञान की प्रामाणिक उपलब्धियों को ‘हिंदुत्व ब्रिगेड के बड़बोलेपन’ के कारण खारिज नहीं किया जाना चाहिए। थरूर का कहना था कि इसमें किसी को संदेह नहीं करना चाहिए कि सुश्रुत दुनिया के पहले सर्जन थे।
इसमें संदेह नहीं है कि कई चीजें ऐसी हैं जिनके आविष्कार भारत में शेष दुनिया से काफी पहले हो चुके थे। शून्य भारत का आविष्कार है और सुश्रुत व चरक संहिताओं में चिकित्सा के नए आयामों की सबसे पहले खोज की गई थी।
तो समस्या क्या है जिसे लेकर बीती साइंस कांग्रेस से लेकर इसके हालिया आयोजन तक में इतना हंगामा उठ खड़ा हुआ है और जिसके समाधान की जरूरत है? असली दिक्कत यह है कि जिन प्राचीन वैदिककालीन उल्लेखों के सहारे भारतीय विज्ञान की महत्ता साबित करने की कोशिश की जा रही है, उनमें से कई बेतुके हैं। इसके अलावा जिन पर कोई मतैक्य बन सकता है, उन दावों के समर्थन में दस्तावेजों या प्रत्यक्ष प्रमाणों का अभाव है। बहुत संभव है कि भारत के हजारों साल पुराने वेदों और वैमानिक प्रकरणम जैसे ग्रंथों में दर्ज बातों में तथ्य हो, लेकिन एक तो उनसे जुड़े प्रमाणों का हमारे पास अभाव है और दूसरे उनके विकास का क्र म टूटा हुआ है। यानी जो चीजें वेदों में लिखी गईं, उन पर शोध करके उन्हें निरंतर आगे बढ़ाते रहने में हमारा देश पिछड़ गया। हमारा वह प्राचीन ज्ञान एक स्थान पर रुक गया और उसमें नई खोजों व जानकारियों का समावेश नहीं हुआ।
प्रश्न यह है कि अब किया क्या जाए? निश्चय ही हमारी प्राथमिकता देश को आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्न में आगे बढ़ाने की होनी चाहिए। देश में नई और कायदे की रिसर्च का माहौल बने और आधुनिक-स्वदेशी तकनीकों का इस्तेमाल बढ़े। यह आधुनिक साइंस, मेडिकल, रक्षा, कम्प्यूटर व चिकित्सा- यानी हर क्षेत्न में हो।