अमिताभ श्रीवास्तव का ब्लॉग: महाराष्ट्र में चुनाव परिणाम अनपेक्षित तो नहीं!

By Amitabh Shrivastava | Updated: June 8, 2024 14:38 IST2024-06-08T14:38:07+5:302024-06-08T14:38:07+5:30

महायुति की तुलना में महाविकास आघाड़ी ने आरंभ से ही सूझबूझ और संयम का परिचय दिया, जिसका लाभ उन्हें पहले ही दौर से मिला। उन्हें विदर्भ से लेकर पश्चिम महाराष्ट्र तक आपसी तालमेल और परिस्थिति का काफी आसानी के साथ अनुमान लगा, जिससे सामने आए परिणामों के प्रति उनकी उम्मीद और वास्तविकता गलत साबित नहीं हुई।

Amitabh Shrivastava's blog: Are the election results in Maharashtra unexpected? | अमिताभ श्रीवास्तव का ब्लॉग: महाराष्ट्र में चुनाव परिणाम अनपेक्षित तो नहीं!

अमिताभ श्रीवास्तव का ब्लॉग: महाराष्ट्र में चुनाव परिणाम अनपेक्षित तो नहीं!

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अनेक शीर्ष नेताओं ने अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल बनाए रखने के लिए महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव का परिणाम 45 सीटों से कम नहीं आंका, लेकिन चुनावी हवा के संकेत साफ थे कि इस बार आशाओं पर पानी फिर सकता है। अनेक नेता अपने आंकड़ों के दावों की गाड़ी को बमुश्किल 40 तक पहुंचा रहे थे तो दूसरी ओर कुछ राजनीति के पंडित नतीजा तीस के आस-पास बता कर रुक जा रहे थे। 

मतदान बाद ‘एक्जिट पोल’ ने ‘फिफ्टी-फिफ्टी’ का फार्मूला सामने रखकर 20-25 सीटों के मिलने की संभावना से कुछ हद तक सच्चाई बयान कर दी। हालांकि यह कड़वी सच्चाई थी, मगर परिणाम बाद इसे पीने के लिए महायुति को तैयार होना ही पड़ा। वहीं दूसरी तरफ महाविकास आघाड़ी बार-बार किसी बड़ी संख्या की बात करने से बचते हुए अपने बेहतर प्रदर्शन पर विश्वास कर रही थी। कुछ हद तक नतीजों ने उसकी ही बात को सच साबित कर यह सिद्ध कर दिखाया कि उसके प्रयास परिणामकारक रहे।

यदि राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस के गुरुवार को दिए गए बयान को गंभीरता से लिया जाए तो उसमें एक संदेश साफ है कि चुनावी मुकाबलों में कहीं-न-कहीं भाजपा कमजोर रह गई। जिसे दूर करने के लिए फड़णवीस उपमुख्यमंत्री का पद छोड़ना चाहते हैं। स्पष्ट था कि लोकसभा चुनाव जीतने में भाजपा के सामने जितनी मुश्किलें थीं, वह केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम और राष्ट्रीय स्तर पर सरकार के प्रदर्शन से दूर नहीं हो सकती थीं। 

उधर, जब से राज्य में भाजपा के नेतृत्व में सरकार बनी, तब से उसे केंद्र के साथ जोड़ा गया। मराठा आरक्षण का मामला हो या फिर किसानों की समस्या, हर बार मांगों को केंद्रीय नेतृत्व से सुलझाने के लिए कहा गया। केंद्र को भरोसा रहा कि राज्य अपने स्तर पर अपनी परेशानियों को दूर करने में सफल हो जाएगा, लेकिन राज्य तो कोई हल निकाल नहीं पाया और आंदोलनकारियों का गुस्सा केंद्र तक जरूर पहुंच गया। 

यहां तक कि घोषणा होने के पहले से चुनाव में खलल डालने की तैयारी शुरू हुई। जिसे दबाने के लिए चुनाव से आंदोलन का सीधा संबंध नाकारा गया। फिर भी एक-दो बैठकों में सत्ताधारियों के खिलाफ चिंगारी भड़की, जो अनेक स्थानों पर विरोधी मतों में परिवर्तित हो गई। मराठवाड़ा के नांदेड़, बीड़, अहमदनगर, जालना और छत्रपति संभाजीनगर में मतों का प्रभाव पड़ने की सीधी आशंका रही। परिणामों का नांदेड़, बीड़, अहमदनगर और जालना में सीधा असर दिखा। 

मराठा आरक्षण के अलावा किसानों की समस्याएं इतनी मुखर हो चुकीं थीं कि नासिक में प्रधानमंत्री की चुनावी सभा में प्याज व्यापारियों ने नारेबाजी कर डाली। मराठवाड़ा में पानी से लेकर सोयाबीन, तुअर, कपास आदि की फसलों के समक्ष संकट परेशान करने वाला रहा। विपक्ष ने ग्रामीण भागों में किसानों की समस्या और आरक्षण आंदोलन को उठाया तो शहरी भाग में महंगाई और बेरोजगारी की बात पर आम राय बनाई।

सारे मामले केंद्र से जुड़े थे, जिसका समाधान राज्य सरकार के पास नहीं था। यहां तक कि विपक्ष अपने प्रचार में जो कहानियां (नैरेटिव) बना रहा था, वे मतदाता के मन में घर कर रहीं थीं। दूसरी ओर सत्ताधारी केवल आलोचना से आगे नहीं बढ़ पा रहे थे। संविधान बदलाव की बात भी बहुत आसानी से लोगों की समझ में आयी और वह सत्ताधारियों के चार सौ पार के लक्ष्य से जोड़कर पक्की हो गई। 

लिहाजा प्रचार की बातें तथ्यात्मक कहानियों (नैरेटिव विथ लॉजिक) के रूप में परिवर्तित हो गईं। बावजूद इसके महायुति के पास सिवाय विपक्ष की बातों को झूठी ठहराने और अपनी ईमानदारी का बखान करने से अधिक कुछ नहीं था। बीते अनेक चुनावों में यह भी देखने में आया कि राज्य में भगवा गठबंधन के बीच सीट बंटवारे को लेकर कोई अधिक मतभेद उत्पन्न नहीं हुए। 

इस बार महायुति की सीटों का बंटवारा आधे चुनाव तक चलता रहा। उसके बाद कुछ उम्मीवारों के नाम तो अंत में ही सामने आए। वरिष्ठ अधिवक्ता उज्ज्वल निकम जैसा नाम उन्हीं में से एक था। वहीं दूसरी ओर अनेक नाम ऐसे भी थे, जिनको बदलने की जरूरत थी। उनको लेकर मतदाताओं के मन में निजी और सरकार विरोधी नाराजगी थी। ऐसे में विकल्प वही हो सकता था, जो नया हो और मतदाता को स्वीकार्य हो।

कुछ स्थानों पर नाम बदलने के परिणाम भी मिले, लेकिन वकील निकम का नाम ऐन वक्त पर सामने आना कांग्रेस की स्थापित उम्मीदवार वर्षा गायकवाड़ की तुलना में उचित नहीं था। महायुति की तुलना में महाविकास आघाड़ी ने आरंभ से ही सूझबूझ और संयम का परिचय दिया, जिसका लाभ उन्हें पहले ही दौर से मिला। उन्हें विदर्भ से लेकर पश्चिम महाराष्ट्र तक आपसी तालमेल और परिस्थिति का काफी आसानी के साथ अनुमान लगा, जिससे सामने आए परिणामों के प्रति उनकी उम्मीद और वास्तविकता गलत साबित नहीं हुई। 

यही कारण है कि चुनाव परिणाम सामने आने के बाद आरोप-प्रत्यारोप का कोई दौर आरंभ नहीं हुआ है। उपमुख्यमंत्री ने अधिक जिम्मेदारी से अगले चुनाव में ध्यान केंद्रित करने के लिए पद से हटने की पेशकश की है, समर्थकों को अस्वीकार्य है। दूसरी ओर महायुति पराजय की सामूहिक जिम्मेदारी मान रहा है। किंतु परिणामों के बाद से साफ है कि महाराष्ट्र में महायुति के साथ ऐसा खेल हो गया, जो आंखों से दिखाने के बाद भी उसका कोई समाधान दिख नहीं रहा था।

भविष्य में विधानसभा चुनाव होंगे, जिनको लेकर सतर्कता इतनी ही बरतनी होगी कि हार से पहले पराजय के दृश्य न दिखने लगे। हालांकि उदारवादी दृष्टिकोण से अब यह भी कह देने में कोई बुराई नहीं है कि चुनाव में हार-जीत तो लगी ही रहती है। लेकिन इस बार हार इतनी भी हल्की नहीं कि उसे परंपरागत सोच से पचा लिया जाए।

Web Title: Amitabh Shrivastava's blog: Are the election results in Maharashtra unexpected?

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