आलोक मेहता का ब्लॉग: समान कानून बिना कैसे होगा सबका विकास?

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: August 11, 2020 02:15 PM2020-08-11T14:15:34+5:302020-08-11T14:15:34+5:30

समान नागरिक संहिता तैयार करने के लिए विधि आयोग को जिम्मेदारी दी गई है लेकिन वर्षो तक विचार-विमर्श के बावजूद उसने गोलमोल सी अंतरिम रिपोर्ट दे दी.

Alok Mehta's blog: How will everyone grow and develop without common law? | आलोक मेहता का ब्लॉग: समान कानून बिना कैसे होगा सबका विकास?

प्रतीकात्मक तस्वीर

विकास में सबसे बड़ी बाधा क्या है? राजनेता, अफसर, विदेशी, जाति, धर्म? नहीं. सबसे बड़ी बाधा है कानून, क्योंकि हमारा महान देश भारत निराला है, जहां सबके लिए कानून समान नहीं हैं. अमेरिका ही नहीं कट्टरपंथी पाकिस्तान, इंडोनेशिया, तुर्की, मिस्र जैसे देशों में भी समान नागरिक कानून व्यवस्था है लेकिन भारत में आजादी के 73 साल बाद भी इस मुद्दे पर विधि आयोग, सरकार, संसद केवल विचार-विमर्श कर रही हैं कि समान नागरिक संहिता को कानूनी रूप कैसे दिया जाए.

निश्चित रूप से आजादी से पहले संविधान निर्माता और बाद के प्रारंभिक वर्षो में भी शीर्ष नेताओं ने यही माना होगा कि कुछ वर्ष बाद संविधान के सभी प्रावधानों को लागू कर दिया जाएगा. उनके इस विश्वास को निहित स्वार्थी नेताओं, संगठनों और कुछ विध्वंसकारी तत्वों ने तोड़ा है. नाम महात्मा गांधी का लेते रहे लेकिन धर्म और जाति के नाम पर जन सामान्य को भ्रमित कर अंधेरे की गुफाओं में ठेलते रहे. सत्तर वर्षो में दो पीढ़ियां निकल चुकीं. 

आबादी के साथ साधन-सुविधाएं बढ़ती गईं. वसुधैव कुटुंबकम की बात सही माने में सार्थक हो रही है. विश्व समुदाय ही नहीं ग्लोबल विलेज की बात हो रही है. केवल जर्मनी का एकीकरण नहीं हुआ, सोवियत रूस, चीन, अफ्रीका तक बहुत बदल चुके. उन देशों में नाम से भले ही कम्युनिस्ट पार्टी रह गई हों लेकिन नियम, कानून-व्यवस्था और जनजीवन पूरी तरह उदार हुआ और पूंजीवादियों से भी एक कदम आगे रहने वाली व्यवस्था लागू हो गई. भारत ने परमाणु शक्ति सहित हर क्षेत्न में क्रांतिकारी बदलाव कर लिया. लेकिन समान नागरिक संहिता नहीं बन पाई है.

समान नागरिक संहिता तैयार करने के लिए विधि आयोग को जिम्मेदारी दी गई है लेकिन वर्षो तक विचार-विमर्श के बावजूद उसने गोलमोल सी अंतरिम रिपोर्ट दे दी. राज्यसभा में किरोड़ीमल मीणा ने गैर सरकारी विधयेक पेश करने की कोशिश की लेकिन कांग्रेस सहित कुछ दलों ने उस पर चर्चा तक नहीं होने दी. एक दशक पहले संविधान संशोधन आयोग भी बना था लेकिन वोट की राजनीति ने बड़े बदलाव नहीं होने दिए. 

विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के लिए समयबद्ध कार्यक्र म बन सकता है, सड़क या अन्य निर्माण कार्यो पर अनुबंध की समय सीमा के अनुसार काम न होने पर जुर्माना हो सकता है तो देश के हर नागरिक के लिए समान कानून का वायदा या जिम्मेदारी संभालने वालों के लिए भी समय सीमा का प्रावधान क्यों नहीं होना चाहिए? जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370 से मुक्ति दिलाने के लिए क्रांतिकारी कदम उठाए जा सकते हैं तो एक ही झटके में समान नागरिकता कानून को पारित कर लागू क्यों नहीं किया जा सकता है?

Web Title: Alok Mehta's blog: How will everyone grow and develop without common law?

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