ब्लॉग: अफगानिस्तान पर भारत की प्रभावी भूमिका जरूरी
By शोभना जैन | Published: November 13, 2021 01:30 PM2021-11-13T13:30:57+5:302021-11-13T13:38:39+5:30
अफगान मसले से संबद्ध रूस, ईरान सहित मध्य एशिया के इन देशों की इस बैठक में मौजूदगी से जाहिर होता है कि भारत की इस पहल का स्वागत हुआ है और इन देशों ने संकेत दिया है कि वे अफगान मुद्दे पर भारत के वैध सरोकारों, चिंताओं और हितों और उसकी अहम तथा प्रभावी भूमिका को समझते हैं.
भारत द्वारा अफगानिस्तान के हालात पर चर्चा के लिए रूस, ईरान सहित क्षेत्र के आठ देशों के सुरक्षा सलाहकारों की इसी सप्ताह बुलाई गई अहम बैठक ‘दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता’ में एक स्वर से इन सभी देशों ने शांतिपूर्ण, सुरक्षित और स्थिर अफगानिस्तान पर जोर देते हुए वहां स्वतंत्र और सही मायने में सभी को साथ लेकर चलने वाली समावेशी सरकार बनाए जाने को मजबूत समर्थन दिए जाने का आह्वान किया. साथ ही कड़े शब्दों में संदेश दिया कि अफगानिस्तान की भूमि का इस्तेमाल आतंक के लिए न हो.
इस बैठक की मेजबानी कर भारत ने भी स्पष्ट संदेश दिया कि अफगानिस्तान को लेकर उसकी अहम भूमिका रही है और उसके भविष्य को लेकर वह आगे भी अपनी भूमिका निभाता रहेगा.
बैठक में रूस, ईरान सहित मध्य एशिया के सभी पांच देशों की मौजूदगी से संकेत भी यही मिलता है कि वह अफगान मसले पर भारत की चिंताओं, हितों और उसकी प्रभावी भूमिका को समझते हैं.
वैसे अफगानिस्तान से संबद्ध मुद्दे पर भारत की मेजबानी से पाकिस्तान की बेचैनी एक बार फिर साफ जाहिर हो गई. भारत की इस बढ़ती अहमियत से बेचैन पाकिस्तान ने भारत द्वारा बुलाई गई बैठक में तो हिस्सा नहीं लिया लेकिन भारत में हुई बैठक के एक दिन बाद ही यानी 11 नवंबर को अमेरिका, रूस, चीन के साथ एक बैठक बुला ली जिसमें अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के विदेश मंत्री को भी बुलाया.
हालांकि तालिबान के खैरख्वाह होने के बावजूद उसने चीन की ही तरह वहां की सरकार को मान्यता नहीं दी है. भारत के अफगानिस्तान के साथ सदियों से, खासकर वहां की जनता के साथ दिलों के खास रिश्ते रहे हैं.
पाकिस्तान अब भी अफगानिस्तान के मौजूदा हालात सुधारने की प्रक्रिया से भले ही भारत को अलग-थलग रखने की लगातार जुगत में लगा हो लेकिन इस बैठक की मेजबानी के जरिये भारत ने स्पष्ट कर दिया कि अफगानिस्तान में उसकी खास भूमिका है, और वह उसे निभाता रहेगा.
यह बात सही है कि तालिबान की आतंकी गतिविधियों और अब वहां की तालिबान कार्यवाहक सरकार की कथनी और करनी में फर्क को लेकर भारत की बड़ी आपत्तियां रही हैं. भारत सहित सभी लोकतंत्र समर्थक देश चाहते हैं कि वहां हिंसा बंद हो और तालिबान सरकार वहां मानवाधिकारों के अपने वादों पर अमल कर दिखाए.
लेकिन भारत ने लंबे समय तक तालिबान से दूरी बनाए रखने के बाद जमीनी हकीकत समझते हुए पिछले कुछ समय से अफगान जनता के साथ अपनी प्रतिबद्धता जताते हुए तालिबान से औपचारिक संपर्क भी बनाया है.
भारत-अफगानिस्तान के बीच सदियों से चले आ रहे प्रगाढ़ रिश्तों के क्रम में अगर खास तौर पर पिछले दो दशकों की बात करें तो भारत अफगानिस्तान से करीबी तौर पर जुड़ा रहा है, गृहयुद्ध से तबाह हुए आधारभूत ढांचे को फिर से खड़ा कर बड़े पैमाने पर वह वहां पुनर्निर्माण, विकास कार्यक्रमों, कार्यों को चलाता रहा है, अफगान नागरिकों की आकांक्षाओं को समर्थन देता रहा है और अफगानिस्तान में शांति, स्थिरता कायम किए जाने के प्रयासों को अपने स्तर पर सहयोग देता रहा है.
निश्चित तौर पर क्षेत्र के अन्य देशों की तरह अफगानिस्तान में शांति, सुरक्षा और स्थिरता क्षेत्र के लिए जरूरी है. बैठक की अध्यक्षता करते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकर एनएसए डोभाल ने भी कहा कि अफगानिस्तान में जो कुछ हो रहा है, उसका सिर्फ वहां के निवासियों पर ही असर नहीं होगा बल्कि पड़ोसी देशों और पूरे क्षेत्र पर असर पड़ेगा.
उन्होंने इस वक्त क्षेत्रीय देशों के बीच अधिक सहयोग, विचार-विमर्श और समन्वय की जरूरत जताई. भारत के न्यौते पर रूस, ईरान सहित ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कजाखिस्तान, किर्गिजस्तान और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बैठक में शामिल होने के लिए भारत आए.
अफगान मसले से संबद्ध रूस, ईरान सहित मध्य एशिया के इन देशों की इस बैठक में मौजूदगी से जाहिर होता है कि भारत की इस पहल का स्वागत हुआ है और इन देशों ने संकेत दिया है कि वे अफगान मुद्दे पर भारत के वैध सरोकारों, चिंताओं और हितों और उसकी अहम तथा प्रभावी भूमिका को समझते हैं.
उम्मीद है कि क्षेत्र में भारत की इस सुदृढ़ भूमिका से अफगानिस्तान में शांति बहाली के प्रयासों में सहयोग मिलेगा और वहां तालिबान सरकार से अनेक मुद्दों पर असहमति के बावजूद रिश्ते अच्छे बनेंगे जो कि न केवल अफगानिस्तान के लिए बल्कि इस पूरे क्षेत्र की शांति, सुरक्षा और स्थिरता के लिए जरूरी है.