अभिलाष खांडेकर ब्लॉग: पुस्तकप्रेमी नेताओं की बढ़नी चाहिए जमात
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: October 20, 2023 11:55 AM2023-10-20T11:55:45+5:302023-10-20T12:00:31+5:30
भारत में पुरानी पीढ़ी के राजनेता न केवल विद्वान थे बल्कि उनमें से कई ने अपने स्वयं के अध्ययन के लिए निजी पुस्तकालय बनाए और वहां पढ़ने के लिए वे समय भी निकालते थे।
आज के समय में कम ही भारतीय राजनेता पुस्तक प्रेमी व पाठक के रूप में जाने जाते हैं। ऐसे में उनके द्वारा समाज में पुस्तकों, पुस्तकालयों और पढ़ने की संस्कृति को बढ़ावा देना तो दूर की बात है। पिछले हफ्ते भारत-पाकिस्तान विश्व कप मैच के लिए अहमदाबाद में रहने के दौरान मैंने एक स्थानीय अंग्रेजी अखबार में दिलचस्प खबर पढ़ी जिसमें कहा गया था कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (जो मैच के दौरान भी मौजूद थे) ने युवाओं से पुस्तकालयों में जाने की अपील की थी।
सच कहूं तो यह मेरे लिए एक खबर मात्र थी। लेकिन वाकई एक सुखद खबर। शाह ने टिप्पणी की भारत और गुजरात का भविष्य पुस्तकालयों में निहित है। गांधीनगर जिले में अपने छोटे से पैतृक स्थान मनसा में एक समारोह में उन्होंने कहा मैं प्राथमिक और उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों से आग्रह करूंगा कि वे बच्चों और युवाओं को पुस्तकालयों में जाने के लिए प्रेरित करें।
वे गांधीनगर के समाऊ ग्राम में एक ग्रंथालय का उद्घाटन कर रहे थे। शाह ने सभा को बताया कि वहां के पुस्तकालय से उन्हें व्यक्तिगत रूप से बहुत लाभ हुआ है। लाइब्रेरी नहीं होती तो मैं एक साधारण बनिया ही रहता। ताकतवर गृह मंत्री की अपील और एक पुराने सार्वजनिक पुस्तकालय के साथ उनके संबंधों के बारे में पढ़कर कई लोग बहुत खुश हुए होंगे। भारत में पुरानी पीढ़ी के राजनेता न केवल विद्वान थे बल्कि उनमें से कई ने अपने स्वयं के अध्ययन के लिए निजी पुस्तकालय बनाए और वहां पढ़ने के लिए वे समय भी निकालते थे।
राजनीति और समाजशास्त्र से लेकर विज्ञान और कला इत्यादि अनेक विषयों की किताबें वे लोग पढ़ते थे। चाहे वह लोकमान्य तिलक हों या महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, राजेंद्र प्रसाद, डॉ. अंबेडकर, राममनोहर लोहिया, मधु लिमये, मधु दंडवते, अटलबिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी से लेकर इंदिरा गांधी तक। वे सभी और उनके कुछ समकालीन- बहुत अच्छे पाठक थे। उनमें से अनेक ने सुंदर (मौलिक) पुस्तकें लिखी हैं।
वे दूसरों से लिखवाई गई (घोस्ट राइटर) किताबें नहीं थीं, जैसा कि आजकल एक चलन है।अन्य नेताओं में नरसिम्हा राव (सोनिया गांधी या उनके पति राजीव या सीताराम केसरी को छोड़ दें), अर्जुन सिंह, सोमनाथ चटर्जी, सुमित्रा महाजन, जयराम रमेश और शशि थरूर जैसे नेताओं को वास्तविक पुस्तक प्रेमी होने की प्रतिष्ठा हासिल थी।
राव को अनेक विषयों व भाषाओं में विशेषज्ञता हासिल थी। थरूर और रमेश विविध विषयों पर लोकप्रिय किताबें लिखते रहे हैं और इसने उन्हें अध्ययनशील राजनेताओं के वर्ग के बीच एक ऊंचे पायदान पर खड़ा किया है। मैंने खुद कई बार बेहद समृद्ध संसद पुस्तकालय के एक कोने में जयराम रमेश को किताबों के ढेर में घंटों तल्लीन होकर बैठे हुए देखा है। जहां तक अमित शाह की बात है, उन्हें सार्वजनिक रूप से कभी भी किताबों और पुस्तकालयों को बढ़ावा देते या लोगों को पुस्तकालयों में जाने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करते हुए नहीं सुना गया है।
हो सकता है यह केवल मेरी सोच हो। इसलिए, जब उन्होंने युवाओं को पुस्तकालयों में भेजने की अपील की और खुलासा किया कि गांधीनगर के छोटे कस्बे के पुस्तकालय ने उनके निजी विकास में योगदान दिया है, तो कई लोगों को सुखद आश्चर्य हुआ होगा। बेशक, मैं उनकी पढ़ने की आदतों या अन्य चीजों के बारे में कोई व्यक्तिगत जानकारी होने का दावा नहीं करता। गुजरात में कुछ लोग यह जरूर बताते हैं कि जब वे दिल्ली के गुजरात भवन में निर्वासन में थे, तब उन्होंने कई किताबें और जीवनियां पढ़ी थीं।
एक राजनेता के लिए किताबें पढ़ने का क्या महत्व है। इससे न सिर्फ उनका व्यक्तित्व परिपक्व होता है, बल्कि उन्हें अलग-अलग विषयों पर वैश्विक दृष्टिकोण मिलता है और उनकी दृष्टि व्यापक होती है। अध्ययनशील राजनेता संसदीय बहसों को स्तरीय बनाने में योगदान देते रहे हैं। यदि हमने पिछले दशकों में संसदीय बहसों के स्तर में लगातार गिरावट महसूस की है तो इसका मुख्य कारण है कि राजनेताओं ने अच्छी पुस्तकें पढ़ना लगभग बंद कर दिया है। दुःख की बात है कि उनके पास अब पढ़ने के लिए समय नहीं है, जिसके कारण आजकल किसी भी विषय पर स्तरीय बहस सुनने को नहीं मिलती है। राजनीति कितनी बदल गई है।
फिर भी यह जानना दिलचस्प होगा कि पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन और पूर्व मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री अर्जुन सिंह-भाजपा और कांग्रेस के दो महत्वपूर्ण राजनेताओं के पास अपना अच्छा निजी ग्रंथालय था। मैंने उन दोनों को कई बार उनके घरों और दफ्तरों में गंभीर किताबें पढ़ते देखा है। महाजन ने अब अपने इंदौर स्थित घर पर पुस्तकों का विशाल संग्रह जनता के लिए खोल दिया है।
जबकि अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह, जो एक नए जमाने के राजनेता हैं, ने अपने पिता की अधिकांश बहुमूल्य किताबें भोपाल के पुस्तकालय और सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय को दान कर दीं। खैर, छात्रों और युवाओं से शाह की अपील (और इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए) राजनेताओं को भी अच्छा सबक सिखा सकती है। सबक यह है कि किताबें अवश्य पढ़ें और अपने ज्ञान का दायरा बढ़ाते रहें। इससे निश्चित रूप से नए भारत को मदद मिलेगी। अंत में अमित शाह जैसे पुस्तक-प्रेमी राजनेताओं की जमात बढ़े, यही कामना है।