पक्षी संरक्षण के लिए सरकार और समाज की एकजुट पहल

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: November 24, 2025 07:21 IST2025-11-24T07:21:04+5:302025-11-24T07:21:09+5:30

यह पहल भारत में समुदाय-आधारित संरक्षण की एक चमकदार मिसाल है जिसने शिकार के मैदान को विश्व के सबसे बड़े पक्षी संरक्षण स्थलों में से एक में बदल दिया है.

A united initiative of the government and society for bird conservation | पक्षी संरक्षण के लिए सरकार और समाज की एकजुट पहल

पक्षी संरक्षण के लिए सरकार और समाज की एकजुट पहल

सुदूर नगालैंड के वोखा जिले को दो महीने के लिए शांत क्षेत्र, मतलब साइलेंट जोन घोषित कर दिया गया है ताकि हजारों किलोमीटर दूर से आकर कुछ देर सुस्ताने वाले प्रवासी पंछियों को यहां सुकून दिया जा सके.  असल में, यह इलाका वैश्विक पर्यावास की दृष्टि से अनूठा है क्योंकि दुर्लभ पक्षी अमूर बाज, मतलब अमूर फालकन अपने लंबे सफर के दौरान आराम के लिए यहां रुकते हैं. यह भी कम दिलचस्प नहीं है कि नगालैंड में 99.8 प्रतिशत लोग मांसाहारी हैं, फिर भी एक पक्षी के संरक्षण के लिए किस तरह समाज और सरकार एकजुट होकर काम कर रहे हैं.

अमूर बाज बाज परिवार का एक छोटा प्रवासी पक्षी है, जो विश्व में सबसे लंबी यात्रा करने वाले शिकारी पक्षियों में से एक है. ये हर साल साइबेरिया और उत्तरी चीन के अपने प्रजनन क्षेत्रों से उड़ान भरकर दक्षिणी और पूर्वी अफ्रीकी समुद्री तटों में अपने शीतकालीन निवास स्थान तक लगभग 22000 किमी की एक महा-यात्रा तय करते हैं. भारत, और विशेष रूप से नगालैंड, उनकी इस लंबी यात्रा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव (स्टॉपओवर) के रूप में कार्य करता है. हर साल अक्तूबर और नवंबर के महीनों के दौरान लाखों अमूर बाज नगालैंड से होकर गुजरते हैं. इस दौरान, वे लंबी उड़ान की थकान से उबरने और अरब सागर के ऊपर अपनी निर्बाध उड़ान के लिए खुद को तैयार करने के लिए यहां कुछ हफ्तों के लिए रुकते हैं.

राज्य की राजधानी कोहिमा से लगभग 75 किमी दूर वोखा जिले में दोयांग जलाशय के आसपास का क्षेत्र अमूर बाजों के सबसे बड़े वार्षिक सम्मिलन के लिए दुनियाभर में जाना जाता है. इसी कारण नगालैंड को ‘विश्व की फाल्कन राजधानी’ के तौर पर भी जाना जाता है.

अमूर बाज वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 और प्रवासी प्रजातियों पर कन्वेंशन (सीएमएस) के तहत संरक्षित हैं. भारत इस संधि का हस्ताक्षरकर्ता है. इन पंछियों के वास्ते नगालैंड सरकार ने प्रवास के मौसम के दौरान पांगती में बसेरा स्थल को आधिकारिक तौर पर तीन  किलोमीटर के दायरे में एक अस्थायी ‘मौन क्षेत्र’ घोषित किया है.  

वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला है कि तेज आवाजों से जंगली पक्षियों में भय पैदा हो सकता है जिससे वे संभवतः अपने आवास को छोड़ सकते हैं और प्रजनन और अस्तित्व से जुड़े महत्वपूर्ण संचार को बाधित कर सकते हैं. आदेश में यह चेतावनी भी दोहराई गई है कि शिकार या नुकसान पहुंचाने में शामिल गांवों के सरकारी अनुदानों को रोका जा सकता है. इन इलाकों में एयर गन पर भी पाबंदी लगा दी गई है. एयर गन यहां के लगभग हर घर में होती ही है.

जिला प्रशासन ने सभी नागरिकों, समुदायों और आगंतुकों से इस अद्वितीय पारिस्थितिक घटना के संरक्षण में सहयोग करने और सफल वन्यजीव संरक्षण के लिए नगालैंड की वैश्विक प्रतिष्ठा को बनाए रखने का आग्रह किया है. यह पहल भारत में समुदाय-आधारित संरक्षण की एक चमकदार मिसाल है जिसने शिकार के मैदान को विश्व के सबसे बड़े पक्षी संरक्षण स्थलों में से एक में बदल दिया है.

सन्‌ 2012 में नगालैंड में कुछ ही दिनों में कई हजार अमूर बाज का शिकार कर दिया गया. उस साल अफ्रीका तक अमूर बाज पहुंच ही नहीं पाए. लेकिन तब पांगती के आसपास दीमक ने बहुत नुकसान किया. असल में, इन बाजों का अफ्रीका में पसंद का भोजन दीमक होते हैं और जब अमूर बाज मारे गए तो दीमकों की संख्या बढ़ गई.

अब नगालैंड के कई स्कूलों में अमूर बाज को बचाने के क्लब बन गए हैं.  अमूर बाज के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए, मणिपुर के तामेंगलॉन्ग जिले में वार्षिक ‘अमूर फाल्कन महोत्सव’ का आयोजन किया जाता है.

Web Title: A united initiative of the government and society for bird conservation

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