देश की 80 करोड़ जनता आज भी भूखी, लेकिन देश की कुल संपत्ति का 60% पांच प्रतिशत आबादी के पास, डराते हैं गरीबी के ये आंकड़े

By विश्वनाथ सचदेव | Published: March 1, 2023 01:14 PM2023-03-01T13:14:37+5:302023-03-01T13:17:52+5:30

भारत के आर्थिक शक्ति बनने की बात कहने वाली संस्था और भारत की जनता की भूख के आंकड़े देने वाली संस्था, दोनों विश्व की भरोसेमंद संस्थाएं मानी जाती हैं। हमें ऐसी घोषणाएं करने वालों की नीयत पर शक करने के बजाय इन घोषणाओं से कुछ सीखने की आवश्यकता है।

80 cr people are still hungry in india worrying poverty figures | देश की 80 करोड़ जनता आज भी भूखी, लेकिन देश की कुल संपत्ति का 60% पांच प्रतिशत आबादी के पास, डराते हैं गरीबी के ये आंकड़े

देश की 80 करोड़ जनता आज भी भूखी, लेकिन देश की कुल संपत्ति का 60% पांच प्रतिशत आबादी के पास, डराते हैं गरीबी के ये आंकड़े

Highlightsआंकड़े बता रहे हैं कि आज हमारे देश में 43 करोड़ श्रमिक हैं, इनमें आधे से भी कम लोगों के पास रोजगार है। छह महीने से लेकर 23 माह के बच्चों में से सिर्फ 11 प्रतिशत बच्चों को ही पूरा भोजन मिल रहा है।

कुछ ही अर्सा पहले एक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान ने घोषणा की थी कि भारत शीघ्र ही विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक ताकतों में शुमार हो जाएगा। भारत सरकार के समर्थकों और प्रशंसकों ने इस घोषणा का स्वागत किया था। फिर एक और अंतरराष्ट्रीय संस्थान ने भारत की सोलह प्रतिशत आबादी के गरीब होने की घोषणा कर दी। फिर एक और ऐसा ही वक्तव्य आया जिसमें भूख के सूचकांक के संदर्भ में 121 देशों में भारत का स्थान 107वां बताया गया था। यह बात उनको रास नहीं आई जिन्होंने भारत के आर्थिक ताकत बनने की घोषणा का स्वागत किया था। कहा गया कि इस तरह की बातें करके कुछ तथाकथित वैश्विक संस्थान हमारे भारत की बदनामी करना चाहते हैं। यह तो संभव है कि किसी अंतरराष्ट्रीय संस्थान का कोई आकलन गलत हो, यह भी संभव है कि कोई संस्थान हमारे देश को बदनाम करना चाहता हो, लेकिन अगर हम तारीफ को स्वीकार करते हैं तो आलोचना पर भी ध्यान देना चाहिए। भारत के आर्थिक शक्ति बनने की बात कहने वाली संस्था और भारत की जनता की भूख के आंकड़े देने वाली संस्था, दोनों विश्व की भरोसेमंद संस्थाएं मानी जाती हैं। हमें ऐसी घोषणाएं करने वालों की नीयत पर शक करने के बजाय इन घोषणाओं से कुछ सीखने की आवश्यकता है। ‘कुछ’ अर्थात यह कि ये आंकड़े हमें सावधान भी करते हैं और अपनी स्थिति सुधारने की प्रेरणा भी देते हैं।

गरीबी के आंकड़ों की बात ही कर लें। वस्तुस्थिति यह है कि देश की अस्सी करोड़ जनता आज भी भूखी है और हमारी सरकार को उसे मुफ्त खाद्यान्न देना पड़ रहा है। पिछले तीन साल से ये भारतीय सरकारी मदद पर आश्रित होकर जीवन जी रहे हैं। हकीकत यह है कि प्रति व्यक्ति आय, बेरोजगारी, भोजन की उपलब्धि, आवास, सफाई आदि के मानकों को देखते हुए देश की लगभग एक चौथाई आबादी आज गरीबी का जीवन जी रही है।  

खतरा हमारे सिर पर मंडरा रहा है। उसकी अनदेखी करके नहीं, उसका मुकाबला करके ही स्थिति सुधारी जा सकती है। यह मुकाबला करने के पहले हमें यह जानना होगा कि स्थिति है क्या? स्थिति यह है कि देश का गरीब और गरीब होता जा रहा है और अमीर और अमीर। देश की कुल संपत्ति का साठ प्रतिशत आज पांच प्रतिशत आबादी के पास है। निचली पचास प्रतिशत आबादी के पास देश की कुल तीन प्रतिशत संपदा है। आर्थिक विषमता की यह खाई विकास के हमारे सारे दावों को अंगूठा दिखा रही है। पिछले 75 सालों में विकास हुआ है इसमें कोई संदेह नहीं है, पर इस विकास की गति धीमी भी है और यह विकास नितांत अपर्याप्त भी है।

आंकड़े बता रहे हैं कि आज हमारे देश में 43 करोड़ श्रमिक हैं, इनमें आधे से भी कम लोगों के पास रोजगार है। जहां तक स्वास्थ्य का सवाल है, देश की आधी से अधिक महिलाओं के शरीर में खून की कमी है। छह महीने से लेकर 23 माह के बच्चों में से सिर्फ 11 प्रतिशत बच्चों को ही पूरा भोजन मिल रहा है। देश के लगभग एक तिहाई बच्चे अपर्याप्त वजन वाले हैं।  

आज देश के स्कूलों की स्थिति यह है कि सवा लाख से अधिक स्कूलों में सिर्फ एक अध्यापक पहली से पांचवीं तक के बच्चों को पढ़ा रहा है और आईआईटी जैसे उच्च संस्थानों की स्थिति यह है कि वहां पर्याप्त अध्यापक नहीं हैं- 8153 स्वीकृत स्थानों में 3253 स्थान रिक्त पड़े हैं यानी पर्याप्य पढ़ाने वाले ही नहीं हैं। नए-नए आईआईटी और आईआईएम बनाए जाने की घोषणाएं तो हो रही हैं, पर हकीकत यह है कुछ ही अर्सा पहले तमिलनाडु में एक ‘एम्स’ बनाए जाने की घोषणा हुई थी। विधानसभा में घोषणा तो हो गई पर अभी ‘एम्स’ की चहारदीवारी भी नहीं बनी! कथनी और करनी का यह अंतर कब मिटेगा? दिसंबर-2022 में देश में बेरोजगारी की दर आठ प्रतिशत थी- शहरी भारत में 10.09 प्रतिशत और ग्रामीण भारत में 8.3 प्रतिशत। प्रतिशत में बात पूरी समझ नहीं आती। सी.एम.आई.ई के अनुसार हमारे भारत में आज 5.3 करोड़ लोगों के पास रोज़गार नहीं है। इनमें से 3.5 करोड़ लोग लगातार काम खोज रहे हैं। डेढ़ करोड़ से अधिक लोग ऐसे हैं जो काम करना तो चाहते हैं, पर एक्टिव होकर काम की तलाश नहीं कर रहे- अर्थात वे लोग बुरी तरह निराश हो चुके हैं!

यह निराशा किसी एक क्षेत्र में नहीं है स्थिति गंभीर है। इस गंभीरता को समझा जाना जरूरी है। सवाल बेरोजगारी का हो या महंगाई का; स्वास्थ्य का हो या पढ़ाई का, उत्तर स्थिति की गंभीरता को समझकर ईमानदार कोशिश में ही निहित है। आज हम दुनिया भर के उद्योगों को भारत आने का निमंत्रण दे रहे हैं, उद्योगों के आने की घोषणाएं भी हो रही हैं। अच्छी बात है यह। पर क्या यह भी एक हकीकत नहीं है कि पिछले आठ सालों में हर साल औसतन एक लाख से अधिक भारतीय देश छोड़कर कर चले गए हैं? ये काम की तलाश वाले नहीं हैं, पढ़े-लिखे योग्य लोग हैं जिन्हें विदेश अपने देश से ज्यादा प्यारा लग रहा है। आखिर क्यों? कौन देगा उत्तर इस ‘क्यों’ का?

Web Title: 80 cr people are still hungry in india worrying poverty figures

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