अपनी भाषा में शिक्षा के हैं ढेरों फायदे, वेदप्रताप वैदिक
By वेद प्रताप वैदिक | Published: August 7, 2021 05:19 PM2021-08-07T17:19:29+5:302021-08-07T17:20:30+5:30
बीटेक की परीक्षाओं में छात्रगण हिंदी, मराठी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, गुजराती, मलयालम, बांग्ला, असमिया, पंजाबी और उड़िया माध्यम से इंजीनियरिंग की शिक्षा ले सकेंगे.
यह खुशखबरी है कि देश के आठ राज्यों के 14 इंजीनियरिंग कॉलेजों में अब पढ़ाई का माध्यम उनकी अपनी भाषाएं होंगी. नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की पहली वर्षगांठ पर इस क्रांतिकारी कदम का कौन स्वागत नहीं करेगा.
अब बीटेक की परीक्षाओं में छात्नगण हिंदी, मराठी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, गुजराती, मलयालम, बांग्ला, असमिया, पंजाबी और उड़िया माध्यम से इंजीनियरिंग की शिक्षा ले सकेंगे. मातृभाषा के माध्यम का यह शुभ-कार्य यदि 1947 में ही शुरू हो जाता और इसे कानून, गणित, विज्ञान, चिकित्सा आदि सभी पाठ्यक्रमों पर लागू कर दिया जाता तो इन सात दशकों में भारत विश्व की महाशक्ति बन जाता और उसकी संपन्नता यूरोप के बराबर हो जाती.
दुनिया का कोई भी शक्तिशाली और संपन्न देश ऐसा नहीं है, जहां विदेशी भाषा के माध्यम से पढ़ाई होती हो. डॉ. लोहिया ने जो स्वभाषा आंदोलन चलाया था, उसका मूर्त रूप अब दिख रहा है. जब 1965-66 में मैंने इंडियन स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में अपना पीएचडी का शोध ग्रंथ हिंदी में लिखने की मांग की थी तो मुझे निकाल बाहर किया गया था.
उसके 50-55 साल बाद अब क्रांतिकारी कदम उठाने का साहस भाजपा सरकार कर रही है. सरकार अगर दूरदृष्टि से काम ले तो शिक्षा में से अंग्रेजी की अनिवार्य पढ़ाई पर तत्काल प्रतिबंध लगा देना चाहिए और देश के हर बच्चे की पढ़ाई उसकी मातृभाषा में ही हो.
अंग्रेजी सहित कई अन्य विदेशी भाषाएं स्वैच्छिक पढ़ने-पढ़ाने की सुविधाएं विश्वविद्यालय स्तर पर जरूर हों लेकिन यदि शेष सारी पढ़ाई स्वभाषा के माध्यम से होगी तो यह निश्चित जानिए कि नौकरियों में आरक्षण अपने आप अनावश्यक हो जाएगा. गरीबों, ग्रामीणों और पिछड़ों के बच्चे बेहतर सिद्ध होंगे. परीक्षाओं में फेल होनेवालों की संख्या घट जाएगी.
कम समय में ज्यादा पढ़ाई होगी. पढ़ाई से मुख मोड़नेवाले छात्नों की संख्या घटेगी. छात्नों की मौलिकता बढ़ेगी. वे नए-नए अनुसंधान करेंगे. लेकिन भारत की शिक्षा का स्वभाषाकरण करने के लिए सरकार में अदम्य इच्छा-शक्ति की जरूरत है. रातोंरात दर्जनों पाठ्य-पुस्तकें, संदर्भ-ग्रंथ, शब्द-कोश, प्रशिक्षण शालाएं आदि तैयार करवाने का जिम्मा शिक्षा मंत्नालय को लेना होगा.
स्वभाषा में शिक्षण का यह क्रांतिकारी कार्यक्रम तभी अपनी पूर्णता को प्राप्त करेगा, जब सरकारी नौकरियों से अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त होगी. यदि आपने संसद में, अदालतों में, सरकारी कामकाज में और नौकरियों में अंग्रेजी को महारानी बनाए रखा तो मातृभाषाओं की हालत नौकरानियों-जैसी ही बनी रहेगी. मातृभाषाओं को आप पढ़ाई का माध्यम जरूर बना देंगे लेकिन उस माध्यम को कौन अपनाना चाहेगा?