Environmental Law: सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण कानूनों को ‘बेकार’ बनाने के लिए केंद्र की आलोचना की है. कोर्ट ने कहा कि स्वच्छ और प्रदूषणमुक्त वातावरण में रहना सभी लोगों का मौलिक अधिकार है और नागरिकों के अधिकारों को बरकरार रखना केंद्र और राज्य सरकारों का कर्तव्य है. कोर्ट का इशारा विशेष रूप से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अधिनियम 2021 (सीएक्यूएम अधिनियम) के तहत निर्धारित पराली जलाने पर दंड को लागू करने में विफलता की ओर था. पराली जलाना दुनिया में वायुमंडलीय प्रदूषण के प्रमुख कारणों में से एक है, जिसका मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ता है. यह दुनिया के कई हिस्सों में वायु प्रदूषण का एक बड़ा स्रोत है और औद्योगिक और वाहनों से होने वाले उत्सर्जन के बाद इसका तीसरा स्थान है.
कोर्ट ने वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से अपने प्रावधानों को लागू करने के लिए आवश्यक तंत्र के बिना सीएक्यूएम अधिनियम को लागू किए जाने पर चिंता भी व्यक्त की. पीठ ने मौजूदा स्थिति पर गहरा असंतोष दिखाते हुए टिप्पणी की, ‘कृपया सीएक्यूएम के अपने अध्यक्ष से कहें कि वे इन अधिकारियों को न बचाएं. हम जानते हैं कि जमीन पर क्या हो रहा है.’
अमृतसर, फिरोजपुर, पटियाला, संगरूर और तरन तारन सहित पंजाब के विभिन्न जिलों में पराली जलाने की एक हजार से अधिक घटनाएं दर्ज की गई हैं. पराली जलाना एक आम प्रथा बन गई है क्योंकि इसमें न्यूनतम श्रम की आवश्यकता होती है, कोई लागत नहीं लगती है और समय भी कम लगता है.
जगजाहिर है कि हमारे पर्यावरण को दूषित करने से लेकर हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने तक, खराब वायु गुणवत्ता एक बड़ी चुनौती है. वायु प्रदूषण से श्वसन स्वास्थ्य प्रभावित होता है. भले ही आप इसे देख नहीं सकते, लेकिन आप जिस हवा में सांस ले रहे हैं वह संभवतः प्रदूषित है. दुनियाभर में, हम में से 10 में से 9 लोग ऐसी हवा में सांस लेते हैं जो हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रही है.
अदृश्य कण हमारे शरीर की हर कोशिका और अंग में प्रवेश कर लेते हैं जिससे अस्थमा, स्ट्रोक, दिल के दौरे और मनोभ्रंश सहित कई छोटी-बड़ी बीमारियां होती हैं. बाहरी वायु प्रदूषण के कारण हर साल लाखों लोगों की समय से पहले मृत्यु हो जाती है. वायु प्रदूषण के नकारात्मक प्रभावों से कोई भी अछूता नहीं है,
लेकिन बड़े खेद की बात है कि इतने गंभीर मामले में केंद्र और राज्य सरकारों को अपनी जिम्मेदारी का एहसास नहीं है और उच्चतम न्यायालय को इसमें दखल देना पड़ रहा है. यह शासन-प्रशासन की जिम्मेदारी है कि हमारे बच्चे और आने वाली सभी पीढ़ियां ऐसी हवा में सांस लेें जो प्रदूषण से मुक्त हो. आशा है कोर्ट की फटकार के बाद केंद्र और राज्य सरकारें सचेत होंगी.