खांसी-जुकामः कफ सीरप की बिक्री पर लगाम कसने की कोशिश

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: December 1, 2025 05:41 IST2025-12-01T05:41:59+5:302025-12-01T05:41:59+5:30

Cough and cold: आजादी के समय यह 1:6300 था. इस विषय को अधिक गहराई से देखा जाए तो डॉक्टरों की संख्या शहरी क्षेत्रों में अधिक है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में कम है. हालांकि वर्ष 2014 से 2024 के बीच मेडिकल कॉलेजों की संख्या 387 से बढ़कर 780 हो गई है.

Cough and cold Efforts curb sale cough syrups | खांसी-जुकामः कफ सीरप की बिक्री पर लगाम कसने की कोशिश

सांकेतिक फोटो

HighlightsCough and cold: कफ सीरप से बच्चों की जान गई थी, वह पर्ची पर डॉक्टरों ने ही लिखा था.Cough and cold: दुकानों पर लोग बीमारी बता कर दुकानदार से दवा ले कर ठीक हो जाते हैं.Cough and cold: वर्तमान में देश में डॉक्टर-मरीज का अनुपात लगभग 1:811 है.

Cough and cold: खांसी-जुकाम में अक्सर दिए जाने वाले कफ सीरप की मनमानी बिक्री पर लगाम कसने के लिए केंद्र सरकार ने कड़ा कदम उठाया है. अब अधिकांश कफ सीरप डॉक्टर की पर्ची के बिना दवा दुकानों पर नहीं बेचे जा सकेंगे. उन्हें देने के लिए दुकानदारों को ‘मेडिकल प्रिस्क्रिप्शन’ का रिकॉर्ड रखना होगा. यह माना जा रहा कि सरकार की शीर्ष नियामक औषध परामर्श समिति ने यह कदम कई बच्चों की मौतों और दुष्प्रभावों को देख उठाया है. मगर ध्यान देने योग्य यह कि जिस कफ सीरप से बच्चों की जान गई थी, वह पर्ची पर डॉक्टरों ने ही लिखा था.

उसमें डाई-एथिलीन ग्लाइकोल (डीईजी) और इथिलीन ग्लाइकोल (ईजी) जैसे घातक रसायन थे. अब सवाल यह है कि सीरप गलत था या फिर उसे गलत तरीके से बेचा गया. यूं तो देश में दुकानों पर आसानी से कोई भी दवा का मिलना आश्चर्यजनक नहीं है. अनेक दुकानों पर लोग बीमारी बता कर दुकानदार से दवा ले कर ठीक हो जाते हैं.

इस स्थिति में सरकार का दवा बेचने वालों पर दबाव बनाना कहां तक उचित है. वर्तमान में देश में डॉक्टर-मरीज का अनुपात लगभग 1:811 है. आजादी के समय यह 1:6300 था. इस विषय को अधिक गहराई से देखा जाए तो डॉक्टरों की संख्या शहरी क्षेत्रों में अधिक है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में कम है. हालांकि वर्ष 2014 से 2024 के बीच मेडिकल कॉलेजों की संख्या 387 से बढ़कर 780 हो गई है.

एमबीबीएस सीटों की संख्या 130 प्रतिशत और स्नातकोत्तर सीटों की संख्या 135 प्रतिशत बढ़ाई गई है. बावजूद इसके निजी क्षेत्र में इलाज कराना महंगा है. शहरी भागों में डॉक्टर से परामर्श लेने के लिए मोटी फीस अदा करनी पड़ती है. ऐसे में छोटी-मोटी बीमारी अनुभव, दवा दुकानदार या इधर-उधर की जानकारी के आधार पर दूर करने की कोशिश की जाती है.

इस बात को दवा दुकानों के संचालक भी समझते हैं. किंतु इसका गलत लाभ नशेड़ी लेते हैं, वह कफ सीरप अपनी जरूरत के लिए उपयोग में लाते हैं. देश के जिन राज्यों में शराब पर प्रतिबंध है, वहां कफ सीरप या अन्य दवाएं नशे के लिए प्रयोग में लायी जाती हैं. दवा की आड़ में कुछ लोगों के लिए यह धंधा काफी फलता-फूलता है.

इसमें पुलिस-प्रशासन से लेकर राजनीतिक संरक्षण के प्रमाण सामने आते हैं. इस स्थिति में केवल दवा दुकानों पर कफ सीरप बेचने पर सख्ती बरतने से हल नहीं निकाला जा सकता है. चिकित्सा क्षेत्र की समस्या बरसों पुरानी हैं, जिनका हल निकालने में देर की जाती रही है. जिन पर पिछले कुछ सालों में अधिक ध्यान देना आरंभ हुआ है, लेकिन परिणाम सामने आने में समय लगेगा.

सरकार नए नियम-कानून बना कर अपनी गंभीरता या सजगता का प्रदर्शन भले ही कर ले, लेकिन उसे जमीनी सच से मुंह नहीं चुराना होगा. चिकित्सा क्षेत्र को मजबूत बनाने के लिए ईमानदार प्रयास करने होंगे. उसकी आड़ में पनपते गठजोड़ तोड़ने होंगे. तभी कड़े सरकारी कदम वास्तविकता में बदलेंगे. अन्यथा वे कागजों की संख्या बढ़ाने से कुछ अधिक साबित नहीं हो पाएंगे.

Web Title: Cough and cold Efforts curb sale cough syrups

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