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ब्लॉग: बहुरूपिये वायरस से डरने की जगह उसका सामना करें

By अवधेश कुमार | Updated: December 7, 2021 10:04 IST

सबसे पहले तो यह मानकर चलना होगा कि कोरोना जैसी बीमारी आई है तो अचानक जाएगी नहीं. हम भले पहली लहर, दूसरी लहर या संभावित तीसरी लहर की बात करें, सच यही है कि कोरोना पूरी तरह गया ही नहीं.

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ठळक मुद्देभारत एवं पूरे विश्व में फिर कोरोना के नए रूप ओमिक्रॉन ने आतंक पैदा कर दिया है.यूरोप में सामान्य बंदिशों के विरुद्ध प्रदर्शन होने लगे हैं.

भारत एवं पूरे विश्व में फिर कोरोना के नए रूप ओमिक्रॉन ने आतंक पैदा कर दिया है. हालांकि कहीं इसका व्यापक मारक प्रसार नहीं दिखा है, किंतु कोरोना के पिछले कहर की भयावह स्मृतियां भय पैदा कर रही हैं. सबके मन में यही डरावना प्रश्न है कि कहीं फिर उसी तरह की लहर आ गई तो क्या होगा? 

भारत में ऐसा शायद ही कोई व्यक्ति हो जिसने अपनों या परिचितों के जाने का दर्द नहीं झेला हो. धीरे-धीरे फिर गतिविधियां सामान्य हो रही हैं. लोग बंदिशों से ऊब गए हैं. यूरोप में सामान्य बंदिशों के विरुद्ध प्रदर्शन होने लगे हैं. भारत में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्य सरकारों को पत्र लिखकर आगाह किया है. अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों पर विशेष सावधानी बरतने के निर्देश दिए गए हैं. 

साफ है कि कोरोना के नए वैरिएंट के भय से संपूर्ण गतिविधियों को ठप कर देना किसी भी देश और समाज के लिए घातक होगा. इसमें यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि तो फिर किया क्या जाए?

इसके उत्तर के पहले यह समझना जरूरी है कि विश्व की कोई भी सरकार जोखिम उठाने को तैयार नहीं है. अगर उसने इसको नकारने का जोखिम उठाया और मानवीय क्षति हुई तो लोकतंत्र में उस सरकार की कैसी अवस्था होगी, इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है. 

एलोपैथ मेडिकल समुदाय संपूर्ण मार्गनिर्देश का अगुआ बना हुआ है जबकि सच यही है कि उसे भी अभी इस बीमारी के बारे में पूरी तरह पता नहीं है. अभी तक की जानकारी के अनुसार इस नए वैरिएंट बी.1.1.529 की पहचान दक्षिण अफ्रीका में हुई. कहा गया है कि इसमें अप्रत्याशित रूप से ज्यादा म्यूटेशन दिखा है. 

अनेक विशेषज्ञ कह रहे हैं कि विश्व भर में उपलब्ध टीके इस वैरिएंट पर पूरी तरह कामयाब होंगे या नहीं, इसके बारे में निश्चितता से अंतिम निष्कर्ष देना कठिन है. पहले खबर आई कि बोत्सवाना में ऐसे लोग भी ओमिक्रॉन संक्रमित हुए हैं, जो टीके के सभी आवश्यक डोज ले चुके हैं. अब अन्य कुछ जगहों से भी ऐसी खबरें आई हैं. हमारे देश में कुछ विशेषज्ञ बूस्टर डोज की सलाह दे रहे हैं.

विशेषज्ञों की अभी तक की बातों का निष्कर्ष यही है कि टीका या दवा जो भी हमारे सामने हैं वो इस वैरिएंट के सामने नाकाफी हो सकती हैं. कोई संकट या बीमारी सारे प्रयासों के बावजूद अगर बार-बार दस्तक दे रही है और हमारी बेचारगी बार-बार स्पष्ट होती है तो निश्चित रूप से उसके बारे में अभी तक की समझ तथा निपटने के प्रयासों पर नए सिरे से विचार करना जरूरी हो जाता है. 

हमने लॉकडाउन किया. संपूर्ण गतिविधियां ठप कर घर में बैठे. सैनिटाइजर और मास्क का व्यापक प्रयोग किया. टीका आया और अभियान की तरह उसे ज्यादातर आबादी तक पहुंचा दिया गया. इसके आगे हम क्या कर सकते हैं? 

सबसे पहले तो यह मानकर चलना होगा कि कोरोना जैसी बीमारी आई है तो अचानक जाएगी नहीं. हम भले पहली लहर, दूसरी लहर या संभावित तीसरी लहर की बात करें, सच यही है कि कोरोना पूरी तरह गया ही नहीं. 

इसकी संख्या और प्रचंडता में कमी अवश्य आई लेकिन कोई दिन ऐसा नहीं है जिस दिन कोरोना के कुछ संक्रमित मरीज देश के किसी न किसी कोने में सामने नहीं आए हों. अंतर इतना ही होता है कि अचानक संक्रमितों की संख्या तेजी से ऊपर की ओर गई, कुछ दिनों के लिए ऐसा लगा जैसे प्रलय आ गई, स्वास्थ्य के सारे तंत्र चरमरा गए और फिर उतरते हुए यह निचले पायदान पर आ गया. 

टीका बनाने वालों ने भी दावा नहीं किया कि इसकी दोनों खुराक लेने वाला व्यक्ति कोरोना से पूरी तरह सुरक्षित हो गया है. उनका इतना ही कहना है कि आपको बड़ा वाला कोरोना नहीं होगा. यानी संक्रमण होगा लेकिन वह जानलेवा नहीं. दूसरी बात यह कि टीके से पैदा होने वाली एंटीबॉडी छह से आठ महीने में काफी हद तक निष्प्रभावी भी हो जाती है. तो क्या हर छह-आठ महीने पर टीका देना होगा? क्या ऐसा करना संभव है?

सबसे पहले हमें यह स्वीकार करना होगा कि कोरोना से डरकर छुपने की जगह इसका सामना करना ही एकमात्र विकल्प मानव समुदाय के सामने रह गया है. बचाव के जितने मानवीय उपाय अपनाना संभव हो उनको अपनाया जाए किंतु इसके डर से गतिविधियां नहीं रुकें. 

मनुष्य होने के नाते हमारा एक जीवन चक्र है जिसे बाधित करना उचित नहीं. तो आइए, पूरी सावधानी के साथ, अपनी गतिविधियां जारी रखते हुए इस बहुरूपिये वायरस का सामना करें.

टॅग्स :ओमीक्रोन (B.1.1.529)कोरोना वायरसWHO
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