रमेश ठाकुर का ब्लॉग: आधुनिक जीवनशैली से भी बढ़ रहे हैं नेत्र रोग
By रमेश ठाकुर | Updated: October 9, 2025 19:53 IST2025-10-09T19:53:23+5:302025-10-09T19:53:35+5:30
डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों की मानें तो विश्व में सालाना 54 करोड़ लोग नेत्र समस्याओं से ग्रस्त होते हैं. इनमें 47 फीसदी ऐसे मरीज हैं जिनकी आंखों की रोशनी तकरीबन जा चुकी होती है.

रमेश ठाकुर का ब्लॉग: आधुनिक जीवनशैली से भी बढ़ रहे हैं नेत्र रोग
मानव शरीर में ‘आंख’ सबसे महत्वपूर्ण अंगों में गिनी जाती है. उसके न होने से दुनिया बेरंग होती है. विश्व का हर पांचवां व्यक्ति नेत्र संबंधित समस्याओं से ग्रस्त है. कम उम्र में आंखों की रोशनी का कमजोर पड़ना आम बात हो गई है. आंखों की रक्षा और सुरक्षा को ध्यान में रखकर आज समूचे संसार में खास दिवस मनाया जा रहा है, जो आंखों की देखभाल के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने और गुणवत्तापूर्ण नेत्र देखभाल की जरूरत को दर्शाता है. ये दिन प्रत्येक साल अक्तूबर के दूसरे गुरुवार को मनाया जाता है. इसकी शुरुआत मूल रूप से वर्ष-2000 में ‘लायंस क्लब इंटरनेशनल फाउंडेशन’ के ‘साइट फर्स्ट कैंपेन’ के जरिये हुई थी.
डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों की मानें तो विश्व में सालाना 54 करोड़ लोग नेत्र समस्याओं से ग्रस्त होते हैं. इनमें 47 फीसदी ऐसे मरीज हैं जिनकी आंखों की रोशनी तकरीबन जा चुकी होती है. वक्त से पहले आंखों की रोशनी क्यों जवाब दे रही है, इसके कुछ कारण आधुनिक जीवनशैली में भी छिपे हैं. दरअसल आज के समय में बड़ों से लेकर छोटे-छोटे बच्चे तक दिनभर मोबाइल, लैपटॉप और टीवी स्क्रीन में चिपके रहते हैं. अधिक देर तक ऐसा करना आंखों को सीधे-सीधे नुकसान पहुंचाना होता है. नेत्र चिकित्सक बताते हैं कि लंबे वक्त तक स्क्रीन पर समय बिताने से रेटिना पर अतिरिक्त भार पड़ता है. स्क्रीन देखने से आंखों में सूखापन, धुंधलापन और सिरदर्द जैसी समस्याएं होती हैं जिसे डिजिटल आई स्ट्रेन भी कहते हैं.
इससे बचने के लिए हर 20 मिनट में 20 सेकंड का ब्रेक लेना चाहिए और 20 फुट दूर किसी चीज को देखने की कोशिश करना चाहिए. नेत्रदान को लेकर भी जागरूकता बढ़ानी होगी, क्योंकि भारत में इस समय लाखों मरीज कार्नियल ब्लाइंडनेस की समस्या से जूझ रहे हैं. नेत्रदान कम होने की वजह से लोगों की आंखों की रोशनी लौटाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. स्पेन आधुनिक तकनीक और कुशल पेशेवरों द्वारा समर्थित अपनी उन्नत नेत्र चिकित्सा देखभाल के लिए प्रसिद्ध है, जहां हर साल बड़ी संख्या में नेत्र शल्य चिकित्सा होती है.
भावी पीढ़ियों की दृष्टि की रक्षा करने में हुकूमतों के अलावा अभिभावकों को भी महती भूमिका निभानी होगी. साथ ही सरकारों को नेत्र स्वास्थ्य सेवाएं सभी के लिए सुलभ और किफायती बनाने पर विचार करना चाहिए. बच्चों में दृष्टि दोष होने से उनकी शिक्षा और सामाजिक समावेशन पर बुरा असर पड़ता है, पिछले साल मई 2024 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गुणवत्तापूर्ण, किफायती चश्मे और उनसे जुड़ी जन-केंद्रित सेवाओं को जरूरतमंदों तक पहुंचाने के लिए वैश्विक मंच पर एक पहल की थी, जिसमें 98 देशों ने भाग लिया. मंच पर तय हुआ कि सभी देश रोशनी लौटाने के लिए नेत्रदान पर जोर देंगे. अगली सभा 2030 में की जाएगी.