क्यों नहीं रुक पा रही है परीक्षाओं में नकल?
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 17, 2018 05:17 AM2018-12-17T05:17:11+5:302018-12-17T05:17:11+5:30
यह खबर कि यूजीसी नेट परीक्षा अब सीसीटीवी-जैमर के पहरे में होगी, अपने पीछे एक ऐसी गहरी त्रसदी छिपाए हुए है
यह खबर कि यूजीसी नेट परीक्षा अब सीसीटीवी-जैमर के पहरे में होगी, अपने पीछे एक ऐसी गहरी त्रसदी छिपाए हुए है, जिसकी लगातार अनदेखी की गई है और वह है नैतिकता का अभाव. यह केवल शिक्षा क्षेत्र ही नहीं बल्कि समाज के हर क्षेत्र में पतन का कारण बन रहा है.
आईएएस के लिए आयोजित परीक्षा में पहले से ही अत्यंत कड़ी निगरानी रखी जाती रही है, अब यूजीसी नेट परीक्षा की तैयारी ने उसे भी पीछे छोड़ दिया है. दरअसल यह तैयारी अकारण नहीं है. भविष्य में देश का कर्णधार बनने की तैयारी करने वाले परीक्षार्थी परीक्षा में पास होने के लिए नकल के ऐसे-ऐसे तरीके अपनाते हैं कि उतनी ही सृजनात्मकता वे देश की भलाई के कार्यो में दिखाएं तो देश समृद्धि के शिखर पर पहुंच जाए!
पिछले साल ही तमिलनाडु में एक आईपीएस अधिकारी को यूपीएससी की मेन्स परीक्षा में नकल करते रंगेहाथ पकड़ा गया था. कुछ साल पहले एक रैकेट का भंडाफोड़ किया गया था जो यूपीएससी द्वारा आयोजित की जाने वाली परीक्षाओं में हाईटेक तरीके से नकल करवाता था. यह दिखाता है कि नकल का कोढ़ शिक्षा के निचले स्तर से लेकर ऊपर तक हर जगह फैला हुआ है. ऐसे ही लोग जब भविष्य में देश के कर्ता-धर्ता बनते हैं तो भ्रष्टाचार की सड़ांध फैलाते हैं. दरअसल नैतिकता को हम दकियानूसी चीज मानकर वैज्ञानिक तरक्की की राह पर आगे तो बढ़ते गए,
लेकिन स्वनियंत्रण का कोई और तरीका विकसित नहीं कर पाए. धन-दौलत को ही हम जीवन में शीर्ष स्थान देते गए और चरित्र की दौलत पीछे छूटती चली गई. कितने आश्चर्य की बात है कि जो लोग आतंकवाद-नक्सलवाद जैसी समाजविरोधी गतिविधियों में सक्रिय होते हैं वे तो अपने उद्देश्य को लेकर जान देने की हद तक प्रतिबद्ध होते हैं, लेकिन समाज को बेहतरी की ओर ले जाने के लिए चुने जाने वाले कर्ता-धर्ताओं में कोई प्रतिबद्धता दिखाई नहीं देती! तकनीकी विकास दोधारी तलवार की तरह है जिसका इस्तेमाल समाज के विकास के लिए भी किया जा सकता है और विनाश के लिए भी.
इसलिए समाज में नैतिक विकास के लिए बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है, क्योंकि वह रीढ़ का काम करता है. इसके अभाव में, हम नकल पर जितना ही रोक लगाने की कोशिश करेंगे, रीढ़विहीन परीक्षार्थी उतना ही उसका तोड़ निकालने की कोशिश करेंगे और तू डाल-डाल, मैं पात-पात का खेल चलता रहेगा.