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स्वभाषा में तकनीकी शिक्षा देने की अच्छी पहल, वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: December 22, 2020 14:10 IST

शिक्षा मंत्नालय उच्च शिक्षा के सभी क्षेत्नों में स्वभाषा अनिवार्य कर दे तो कुछ ही वर्षों में हमारे प्रतिभाशाली छात्न पश्चिमी देशों को मात दे सकते हैं.

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ठळक मुद्देसमस्त विषयों की विदेशी पुस्तकों का भी साल-दो साल में ही अनुवाद हो सकता है. अंग्रेजी के अलावा अन्य विदेशी भाषाओं के ग्रंथों का भी वे लाभ उठाएंगे. शिक्षा की भाषा-क्रांति देश का नक्शा बदल देगी.

भारत के शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखिरयाल निशंक बधाई के पात्न हैं कि उन्होंने देश में तकनीकी शिक्षा अब भारतीय भाषाओं के माध्यम से देने का फैसला किया है.

तकनीकी शिक्षा तो क्या, अभी देश में कानून और चिकित्साशास्त्न की शिक्षा भी हिंदी और भारतीय भाषाओं में नहीं है. उच्च शोध भारतीय भाषाओं में हो, यह तो अभी एक दिवा-स्वप्न ही है. 1965 में जब मैंने अपना अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का शोधग्रंथ हिंदी में लिखने की मांग की थी तो देश में तहलका मच गया था.

इंडियन स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज से मुझे निकाल बाहर कर दिया गया था. संसद में जबर्दस्त हंगामा होता रहा था. मैंने अपनी मातृभाषा में लिखने की मांग इसलिए नहीं की थी कि मुझे अंग्रेजी नहीं आती थी.

मैं अंग्रेजी के साथ-साथ संस्कृत, रूसी, फारसी और जर्मन भाषाएं भी जानता था लेकिन मैं इस वैज्ञानिक सत्य को भी जानता था कि स्वभाषा में जैसा मौलिक कार्य हो सकता है, वह विदेशी भाषा में नहीं हो सकता. दुनिया के सभी सबल और समृद्ध राष्ट्रों में सभी महत्वपूर्ण कार्य स्वभाषा के जरिए होते हैं.

लेकिन भारत-जैसे शानदार देश भी ज्ञान-विज्ञान में आज भी इसीलिए पिछड़े हुए हैं कि उनके सारे महत्वपूर्ण काम उसके पुराने मालिकों की भाषा में होते हैं भाषाई गुलामी का यह दौर पता नहीं कब खत्म होगा?यदि हमारा शिक्षा मंत्नालय उच्च शिक्षा के सभी क्षेत्नों में स्वभाषा अनिवार्य कर दे तो कुछ ही वर्षों में हमारे प्रतिभाशाली छात्न पश्चिमी देशों को मात दे सकते हैं.

समस्त विषयों की विदेशी पुस्तकों का भी साल-दो साल में ही अनुवाद हो सकता है. जब तक यह न हो, मिली-जुली भाषा में छात्नों को पढ़ाया जा सकता है. ये छात्न अपने विषयों को जल्दी और बेहतर सीखेंगे. अंग्रेजी के अलावा अन्य विदेशी भाषाओं के ग्रंथों का भी वे लाभ उठाएंगे. वे सारी दुनिया के ज्ञान-विज्ञान से जुड़ेंगे. अंग्रेजी की पटरी पर चली रेल हमारे छात्नों में ब्रिटेन और अमेरिका जाने की हवस पैदा करती है. यह घटेगी. वे देश में ही रहेंगे. अपने लोगों की सेवा करेंगे. शिक्षा की भाषा-क्रांति देश का नक्शा बदल देगी.

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