गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: विश्वविद्यालयीन शिक्षा स्तरीय हो और सस्ती भी

By गिरीश्वर मिश्र | Published: November 27, 2019 06:14 PM2019-11-27T18:14:42+5:302019-11-27T18:14:42+5:30

उपर्युक्त स्थिति के विपरीत शिक्षा का निजीकरण एक और ही दृश्य प्रस्तुत करता है. हालात बिगड़ते जा रहे हैं और अध्ययन-अध्यापन व शोध का स्तर लगातार गिरता जा रहा है

Girishwar misra Blog: University Education should be good and affordable too | गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: विश्वविद्यालयीन शिक्षा स्तरीय हो और सस्ती भी

गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: विश्वविद्यालयीन शिक्षा स्तरीय हो और सस्ती भी

ऊंची शिक्षा सस्ते दाम पर वैसे ही दी जाए जैसी वर्षो से चली आ रही  है, इस बात को लेकर पिछले दिनों भारत के उच्च वरीयताप्राप्त एक श्रेष्ठ विश्वविद्यालय में छात्नों का आंदोलन छिड़ा. फीस की पुरानी दरें जब प्रस्तावित हुई थीं तब की स्थितियां और आज की स्थितियां भिन्न हैं तथा फीस की वृद्धि को कोई भी नाजायज और गैरजरूरी नहीं मानता. पर कितनी वृद्धि की जाए और उसके फैसले की प्रक्रिया क्या हो, इसको लेकर छात्नों की नाराजगी विश्वविद्यालय परिसर के बाहर दिल्ली की सड़कों तक फैल गई. 

हम लोग अक्सर समस्याओं की तब तक उपेक्षा करते रहते हैं जब तक काम चलता रहे. वर्तमान प्रसंग में यदि राजनीति को अलग भी कर दें तो भी इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि अचानक सुविधाओं का छिन जाना किसी को भी बुरा लगेगा और यही हुआ. परंतु संदर्भित घटनाक्रम एक संकेत या उदाहरण है. इसे सुनना-समझना जरूरी है.

अनेक पैमानों के आधार पर अब यह बात प्रमाणित हो चुकी है कि उच्च शिक्षा की दुर्दशा के प्रति किसी को चिंता नहीं है. विश्वविद्यालयों की स्थिति दिन-प्रतिदिन गिरती जा रही है. दिल्ली के महाविद्यालयों  में हजारों पदों पर और विश्वविद्यालय के विभागों में सैकड़ों पदों पर अध्यापकों की नियुक्ति नीति, नियम, कानून, न्यायालय, शैक्षिक संस्थाओं की आंतरिक अव्यवस्था और राजनीतिक हस्तक्षेप की बलि चढ़ रही है. 

सब तत्व सम्मिलित रूप से उच्च शिक्षा की पारिस्थितिकी ऐसी बनाते हैं जो उच्च शिक्षा को निरंतर  प्रदूषित करती जा रही है और उसके उत्पाद अनुपयोगी होते जा रहे हैं. इनकी जिम्मेदारी किसी की नहीं ठहरती है और जो स्थिति है उसकी व्याख्या कई तरह से की जाती है. पर असल में इन सबका पुरसाहाल लेने वाला आज कोई नहीं दिख रहा है. हालात बिगड़ते जा रहे हैं और अध्ययन-अध्यापन व शोध का स्तर लगातार गिरता जा रहा है. 

उपर्युक्त स्थिति के विपरीत शिक्षा का निजीकरण एक और ही दृश्य प्रस्तुत करता है. निजी विश्वविद्यालय सरकारी विश्वविद्यालयों की तुलना में कई-कई गुना फीस ले कर विभिन्न पाठ्यक्रमों की पढ़ाई कर रहे हैं और लोग वहां जा भी रहे हैं. 

लोकतंत्न में जीवन में विविधता तो स्वीकार्य है पर उसके आशय व्यापक समाज और शिक्षा की व्यवस्था के लिए कितने लाभदायक या हानिकर हैं इसकी चिंता भी की जानी चाहिए. आज हमारे राजनेता विश्वगुरु बनने और भारतीय ज्ञान-परंपरा के उन्नयन व सामाजिक उत्थान के स्वप्न संजोए हमारी समझौतावादी शिक्षा विषयक नीतियां गुणवत्तामूलक प्रयासों को लागू करने में  कारगर नहीं हो  रही हैं.  इस दिशा में तत्काल ध्यान देने की जरूरत है. 

Web Title: Girishwar misra Blog: University Education should be good and affordable too

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