इस तरह की धोखाधड़ी का कोई अंत है या नहीं?
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: March 6, 2025 06:44 IST2025-03-06T06:44:11+5:302025-03-06T06:44:15+5:30
इसके कई कारण हैं. कई बार अपराधी विदेश में बैठकर अपराध को अंजाम देता है लेकिन जो अपराध देश में बैठकर अपराधी करते हैं,

इस तरह की धोखाधड़ी का कोई अंत है या नहीं?
कम्प्यूटर और इंटरनेट की दुनिया से होते हुए हम ऑनलाइन वित्तीय व्यवस्था तक पहुंचने के बाद अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तक पहुंच चुके हैं. निश्चय ही सुविधाएं बहुत हुई हैं. पहले बैंक से पैसा निकालने या जमा करने के लिए घंटों खड़ा रहना होता था लेकिन अब यह काम एटीएम कार्ड, इंटरनेट बैंकिंग और यूपीआई ने बेहद आसान बना दिया है. ज्यादातर कार्यों के लिए अब बैंक जाने की जरूरत नहीं पड़ती है. लेकिन इस सुविधा के बीच बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी ने भी जन्म लिया है. एटीएम कार्ड की क्लोनिंग अब बहुत पुरानी बात हो चुकी है.
धोखाधड़ी करने वाले न जाने कौन-कौन सी तरकीब निकालते चले जा रहे हैं. अब तो डिजिटल अरेस्ट नाम का भूत भी कई लोगों को अपना शिकार बना चुका है. हालात ऐसे हो गए हैं कि सरकार की ओर से लोगों को सचेत करने के लिए ढेर सारे प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन धोखाधड़ी रुकने का नाम नहीं ले रही है. सबसे बड़ी बात है कि इस धोखाधड़ी का शिकार पढ़े-लिखे लोग भी खूब हो रहे हैं.
धोखाधड़ी पूरे देश में हो रही है लेकिन महाराष्ट्र के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने विधानसभा में बताया है कि पिछले साल साइबर अपराधियों ने महाराष्ट्र में करीब 7634 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी की.
कमाल की बात है कि देश के युवा शहर के रूप में मशहूर पुणे में सबसे ज्यादा करीब 6007 करोड़ की धोखाधड़ी हुई और विडंबना देखिए कि इस मामले में केवल 9 अपराधियों तक ही पुलिस पहुंच पाई जबकि 1504 मामले दर्ज हुए. पुणे की अपेक्षा मुंबई का आंकड़ा थोड़ा संतोषजनक रहा जहां 888 करोड़ की धोखाधड़ी को लेकर कुल 4849 मामले दर्ज हुए और 757 गिरफ्तारियां हुईं.
सवाल यह पैदा होता है कि जब इतने बड़े पैमाने पर साइबर अपराध हो रहे हैं तो उसके खिलाफ सरकार क्या कर रही है? कहने को तो कई कानून बनाए गए हैं लेकिन हकीकत यही है कि सजा देने की बात तो बहुत दूर है, साइबर अपराधियों तक पुलिस ज्यादातर मामलों में पहुंच ही नहीं पाती है. इसके कई कारण हैं. कई बार अपराधी विदेश में बैठकर अपराध को अंजाम देता है लेकिन जो अपराध देश में बैठकर अपराधी करते हैं, उन मामलों में भी पुलिस की पहुंच से वे दूर ही रहते हैं.
यह सवाल उठना लाजिमी है कि हमारी पुलिस साइबर अपराध के मामले में इतनी कमजोर क्यों है? दरअसल पुलिस महकमे ने या सरकार ने अभी तक साइबर अपराध को बहुत गंभीरता से लिया ही नहीं है. कहने को हर राज्य में साइबर सेल बन चुका है, कुछ पुलिसकर्मियों को साइबर अपराध से निपटने की ट्रेनिंग भी दी जाती है लेकिन वास्तविकता यही है कि साइबर अपराधी ज्यादा तेज चल रहे हैं और पुलिस उनकी रफ्तार को मैच भी नहीं कर पा रही है.
जहां तक कानून का सवाल है तो साइबर वार या साइबर आतंकवाद के मामले में अपराधी को उम्र कैद तक का प्रावधान जरूर है लेकिन धोखाधड़ी के साइबर अपराध में सजा का प्रावधान केवल तीन साल और कुछ जुर्माने का है. क्या इतनी कम सजा किसी अपराधी को धोखाधड़ी करने से रोक सकती है? साइबर अपराध को निश्चय ही बहुत गंभीरता से लेना होगा.
सभी राज्यों को एक-दूसरे के साथ तालमेल बिठाना होगा. यदि कहीं अपराध हुआ है और कुछ घंटों के भीतर यदि अपराधी पकड़ लिए जाएं तभी उनमें खौफ पैदा होगा. आम आदमी की सजगता, पुलिस का खौफ अैर कड़ी सजा ही समस्या का निदान है.