Goa Nightclub Fire: भगोड़े अपराधियों को वापस लाना आसान नहीं
By विवेक शुक्ला | Updated: December 11, 2025 05:17 IST2025-12-11T05:17:53+5:302025-12-11T05:17:53+5:30
Goa Nightclub Fire: भगोड़ों की बात होगी तो पहला नाम दाऊद इब्राहिम का ही सबसे पहले लेना होगा. उसने 1986 के आसपास भारत छोड़कर दुबई का रुख कर लिया. फिर वहां से कराची चला गया. इकबाल मिर्ची भी दाऊद का आदमी था.

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Goa Nightclub Fire: गोवा के मशहूर रोमियो लेन में स्थित ‘बर्क बाय रोमियो’ क्लब में आग लगने के महज कुछ घंटे बाद ही क्लब के मालिक गौरव लूथरा और सौरभ लूथरा 7 दिसंबर को फ्लाइट पकड़कर थाईलैंड के फुकेट भाग गए. इस घटना ने फिर से साबित कर दिया कि भारत में ‘अपराध करो, विदेश भागो’ वाला फॉर्मूला अपराधी आज भी अपना रहे हैं.
दाऊद से नीरव मोदी तक, विजय माल्या से मेहुल चोकसी तक- यह सिलसिला दशकों पुराना है. बस अब अपराध का स्केल और भागने की तकनीक दोनों बदल गए हैं. ये सच है कि इन शातिर अपराधियों को भागने में मदद करने में कुछ शक्तिशाली सरकारी अफसरों की भी भूमिका रहती है. बेशक, भारत में अपराध कर विदेश भागना कोई नया घटनाक्रम नहीं है,
लेकिन बदलते समय के साथ आर्थिक, संगठित और अंतरराष्ट्रीय अपराधों का दायरा बहुत बढ़ चुका है. भगोड़ों की बात होगी तो पहला नाम दाऊद इब्राहिम का ही सबसे पहले लेना होगा. उसने 1986 के आसपास भारत छोड़कर दुबई का रुख कर लिया. फिर वहां से कराची चला गया. इकबाल मिर्ची भी दाऊद का आदमी था.
ब्रिटेन में उसकी कानूनी लड़ाई और सबूतों की कमी के चलते, उसने कई साल विदेश में गुजारे. छोटा राजन भी भगोड़ा रहा है. हालांकि उसे 2015 में भारत प्रत्यर्पित किया गया, पर उसने लंबे समय तक विदेश में रहकर अपना नेटवर्क चलाया. रवि पुजारी 2019 में, सेनेगल में गिरफ्तार किया गया; फिर 2020 में भारत प्रत्यर्पित किया गया.
वित्तीय धोखाधड़ी के जो आरोपी विदेश भागे, उनमें यूबी ग्रुप और किंगफिशर एयरलाइंस के मालिक विजय माल्या, हीरा कारोबारी नीरव मोदी और मेहुल चोकसी का नाम प्रमुख है. जब इन भगोड़ों पर शिकंजा कसा जाता है तो ये पहले दुबई या दूसरे मध्य-पूर्वी देशों की ओर भागते हैं - वहां से वे फिर अपनी गतिविधियां ड्रग्स, तस्करी, वसूली या आतंकवादी षड्यंत्रों के माध्यम से संचालित करने लगते हैं.
कुछ अपराधी फर्जी पहचान, नकली पासपोर्ट और अन्य दस्तावेजों का इस्तेमाल करते हैं. यह उन्हें कई देशों में घूमने और नया जीवन शुरू करने में मदद करता है. अंतरराष्ट्रीय कानून प्रवर्तन नेटवर्क जैसे इंटरपोल और प्रत्यर्पण संधियां बहुत अहम होती हैं; इनकी मदद से भारत कई भगोड़ों को वापस लाता रहा है.
हाल के वर्षों में सीबीआई और अन्य एजेंसियों ने कई भगोड़ों को विदेशों से भारत वापस लाने की कोशिश तेज की है. उदाहरण के लिए, 2023 तक की रिपोर्ट के अनुसार, 184 भगोड़ों की लोकेशन पता लग चुकी है. 2020–2025 की अवधि में लगभग 134 भगोड़ों को विदेशों से भारत लाया गया है -
यह पिछले दशक की तुलना में दोगुनी दर है. फिर भी, प्रत्यर्पण की प्रक्रिया जटिल होती है. कई देशों के कानूनी ढांचे, पासपोर्ट धोखाधड़ी, प्रमाण जुटाने में कठिनाई और राजनीतिक/कूटनीतिक समझौतों के चलते अपराधियों को पकड़ना मुश्किल हो जाता है. भगोड़ों को पकड़ने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जरूरत होती है.