विजय दर्डा का ब्लॉग: पेट्रोल-डीजल में किसने आग लगाई...?

By विजय दर्डा | Published: May 3, 2022 02:55 PM2022-05-03T14:55:33+5:302022-05-03T14:58:44+5:30

पेट्रोल-डीजल को जीएसटी में शामिल क्यों नहीं किया जा रहा है? मोटे तौर पर देखें तो पेट्रोल-डीजल पर औसतन 46 प्रतिशत तक टैक्स होता है. एक देश में एक टैक्स प्रणाली होनी चाहिए. केंद्र और राज्य मिलाकर जितना भी टैक्स लेना है एक बार ले लें.

Vijay Darda's blog: why petrol and diesel not getting included in GST | विजय दर्डा का ब्लॉग: पेट्रोल-डीजल में किसने आग लगाई...?

पेट्रोल-डीजल को जीएसटी में शामिल क्यों नहीं किया जा रहा? (फाइल फोटो)

उत्तर प्रदेश के साथ ही पांच राज्यों में विधानसभा का चुनाव खत्म होने के कुछ दिन बाद से पेट्रोल और डीजल की कीमतों में जो आग लगी है, वह बुझने का नाम नहीं ले रही है. हालांकि पिछले साल नवंबर में जब केंद्र सरकार ने टैक्स की दर कुछ घटाई तो फौरी तौर पर लोगों को राहत मिली थी लेकिन पुराने अनुभव के आधार पर लोगों ने उसी वक्त कहना शुरू कर दिया था कि चुनाव खत्म होते ही कीमतें आसमान छूने लगेंगी. ऐसा ही हुआ भी! हालांकि लोगों को एक उम्मीद थी कि केंद्र या राज्य, कोई भी सरकार इतनी निर्दयी नहीं होगी कि कीमतों पर लगाम ही न लग पाए!

इसमें कोई संदेह नहीं कि नवंबर 2021 के बाद से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में 35 डॉलर प्रति बैरल का इजाफा हो चुका है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रति बैरल एक रुपए का इजाफा होता है तो भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतें 55 से 60 पैसे प्रति लीटर बढ़ जाती हैं. जाहिर सी बात है कि मतदाता खफा हो जाता इसलिए कीमतों पर लगाम लगाई गई. केंद्र सरकार ने जब एक्साइज टैक्स घटाए थे तभी भाजपा शासित राज्यों ने भी वैट घटा दिया लेकिन गणित इतना आसान भी नहीं था. 

टैक्स की एक न्यूनतम राशि तय कर दी. लोगों को राहत मिली लेकिन उतनी नहीं जितनी कि मिलनी चाहिए थी. गैरभाजपा शासित राज्यों में से ज्यादातर ने तो वैट घटाने से इनकार ही कर दिया. मोटे तौर पर देखें तो पेट्रोल-डीजल पर औसतन 46 प्रतिशत तक टैक्स होता है. इस भारी-भरकम टैक्स ने ही कीमतों में आग लगा रखी है.

मामला इतना गंभीर हो गया है कि पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक कोरोना पर चर्चा के लिए बुलाई थी लेकिन पेट्रोल-डीजल का मुद्दा उन्होंने सामने रखा और मुख्यमंत्रियों से निवेदन किया कि राज्य वैट घटाएं ताकि लोगों को राहत मिले. लगे हाथ उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र को जो टैक्स मिलता है, उसका भी 42 प्रतिशत हिस्सा राज्यों को चला जाता है. 

स्वाभाविक रूप से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ ही दूसरे गैरभाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भड़क गए. सवाल यह खड़ा होने लगा कि केंद्र ज्यादा टैक्स ले रहा है या फिर राज्य ज्यादा टैक्स ले रहे हैं? वैसे केंद्र सरकार के आंकड़े कहते हैं कि जिन राज्यों ने वैट में कटौती की, उन्हें 23,265 करोड़ रु. का नुकसान हुआ है और जिन राज्यों ने वैट नहीं घटाए, उन्हें 12,441 करोड़ रु. की अतिरिक्त कमाई हुई. 

सबसे ज्यादा कमाई महाराष्ट्र (3472 करोड़ रु.) और तमिलनाडु (2924 करोड़ रु.) ने की है. आंकड़े ये भी बताते हैं कि महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में स्टेट टैक्स केंद्रीय एक्साइज से भी ज्यादा हैं. महाराष्ट्र के जो आंकड़े मुझे मिले हैं, वे चौंकाने वाले हैं. मुंबई, नवी मुंबई, ठाणे और औरंगाबाद में पेट्रोल पर 26 प्रतिशत वैट के अलावा भारी-भरकम अतिरिक्त टैक्स और डीजल पर 24 प्रतिशत वैट के अलावा अतिरिक्त कर भी वसूला जाता है. 

महाराष्ट्र के शेष हिस्सों में पेट्रोल पर 25 प्रतिशत और डीजल पर 21 प्रतिशत वैट लगता है. आखिर ऐसा क्यों? मैंने केवल महाराष्ट्र का उदाहरण दिया है, दूसरे राज्यों में भी हालात बहुत अच्छे नहीं हैं.
पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी ने तो ट्वीट करके यह बताने की कोशिश की कि गैरभाजपा शासित राज्य किस तरह से लोगों से ज्यादा कीमतें वसूल रहे हैं. उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि भाजपा शासित राज्यों में वैट 14.50 से 17.50 रु. प्रति लीटर तक है, जबकि अन्य राज्यों में वैट 26 रुपए से 32 रुपए प्रति लीटर तक है. स्वाभाविक रूप से लोगों के मन में यह सवाल पैदा हो रहा है कि सभी राज्यों में वैट की दर एक जैसी क्यों नहीं हो सकती? 

राज्यों का अपना दर्द है कि वे यदि वैट न वसूलें तो उनका काम कैसे चलेगा? राज्यों की आमदनी के स्रोत अत्यंत कम हैं. ज्यादातर राज्य कर्ज के बोझ से दबे हुए हैं. सरकार चलाने के लिए मुफ्त बिजली, मुफ्त अनाज, मुफ्त शिक्षा, मुफ्त इलाज जैसे लोकलुभावन फैसले भी लेने पड़ते हैं, जिसके लिए पैसा चाहिए. सिस्टम में लीकेज और परेशानी पैदा करता है. कम ही राज्य हैं जो स्थिति को संभाल पाएं. 

इसके साथ ही आपातकालीन खर्चों के लिए खजाने में कुछ पैसा रहना जरूरी है. यदि वे वैट न वसूलें तो यह सब कैसे हो पाएगा? पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल के आंकड़े बताते हैं कि लक्षद्वीप में पेट्रोल और डीजल पर स्टेट टैक्स है ही नहीं. अंदमान निकोबार में केवल एक प्रतिशत वैट लिया जाता है. जानकार कहते हैं कि दूसरे राज्य ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि उनकी जरूरतें ज्यादा हैं.

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि सरकारों की सोच में ही गड़बड़ी है. प्रबंधन का तरीका ही गड़बड़ है. प्रोजेक्ट समय पर पूरे नहीं होते हैं और प्रोजेक्ट की लागत कई गुना बढ़ जाती है. मैंने अपने संसदीय कार्यकाल के 18 वर्षों में लगातार यह मुद्दा उठाया और कहा कि यदि सभी प्रोजेक्ट समय पर पूरे हों तो देश को काफी फायदा मिलेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मसले को गहराई से समझा है और महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स की एक सूची तैयार की है ताकि उसे निर्धारित अवधि में पूरा किया जा सके और लागत न बढ़ने पाए.

जहां तक लोगों को राहत देने का सवाल है तो सड़कों के निर्माण के लिए अटलजी के समय पेट्रोल और डीजल पर रोड सेस लागू किया गया था. यह सेस बढ़ता ही जा रहा है. दूसरी तरफ अच्छा खासा टोल टैक्स भी वसूला जा रहा है. जब टोल वसूल रहे हैं तो सेस क्यों? ...लेकिन इस सवाल को उभरने ही नहीं दिया जाता है. कई बार तो लगता है कि आम आदमी को राहत देने की नीयत ही नहीं है! 

सवाल है कि जब टैक्स के लिए जीएसटी प्रणाली को स्वीकार कर लिया गया है और इसके परिणाम भी अच्छे आ रहे हैं तो फिर पेट्रोल-डीजल को इसमें शामिल क्यों नहीं करते? मैंने हमेशा कहा है कि एक देश में एक टैक्स प्रणाली होनी चाहिए. केंद्र और राज्य मिलाकर जितना भी टैक्स लेना है एक बार ले लें. इसी तरह एक राष्ट्र एक कार्ड की नीति भी हमें अपनानी चाहिए. वही आधार हो, वही पैन हो...एक कार्ड में सबकुछ समाहित हो जाए लेकिन पता नहीं क्यों हमारी सरकारें इस पर ध्यान ही नहीं देतीं...! कुछ तो करिए सरकार...!

Web Title: Vijay Darda's blog: why petrol and diesel not getting included in GST

कारोबार से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे