देश को कहीं तबाह न कर दे बैंकों का यह रवैया!

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: June 25, 2018 05:03 AM2018-06-25T05:03:12+5:302018-06-25T08:18:02+5:30

पिछले दस वर्षो में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने कुल 9.20 लाख करोड़ रुपए का मुनाफा कमाया और 6.57 लाख करोड़ रुपए डूबत कर्ज में डाल दिया।

Vijay Darda's Blog on Indian Banking System loop holes | देश को कहीं तबाह न कर दे बैंकों का यह रवैया!

देश को कहीं तबाह न कर दे बैंकों का यह रवैया!

Highlights9.20 लाख करोड़ का वास्तविक मुनाफा घटकर 2.63 लाख करोड़ रु. रह गयारघुराम राजन जैसे काबिल गवर्नर को क्यों नहीं कंटीन्यू किया गया?भ्रष्टाचार हमारी बैंकिंग व्यवस्था को हजम करने में लगा है।

-विजय दर्डा
एक सप्ताह के भीतर तीन ऐसी खबरें आई हैं जो चिंतित करने वाली हैं। पहली खबर आई कि 1 लाख 44 हजार करोड़ रुपए के कर्ज को सरकार ने बट्टे खाते में डाल दिया है। सामान्य रूप से इसे डूबत खाता कहते हैं। बैंक अपनी भाषा में इसे एनपीए यानी नॉन परफॉर्मिग एसेट्स कहते हैं। इसका मतलब है कि यह कर्ज वापस नहीं आ रहा है।

दूसरी खबर आई कि रियल एस्टेट डेवलपर डी. एस. कुलकर्णी और उनकी पत्नी हेमंती को गैरकानूनी तरीके से करीब 3000 करोड़ रुपए का कर्ज देने के मामले में बैंक ऑफ महाराष्ट्र के सीएमडी रवींद्र मराठे, कार्यकारी निदेशक राजेंद्र गुप्ता, पूर्व मुख्य प्रबंध निदेशक सुशील मुणोत और दूसरे कई बड़े अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया। जांच में यह बात सामने आई थी कि बैंक के अधिकारियों ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर गैरकानूनी तरीके से कर्ज मंजूर किया।

तीसरी खबर आई कि पंजाब नेशनल बैंक में हुए 13000 करोड़ रुपए के घोटाले में  बैंक के कुल 54 कर्मचारी और अधिकारी शामिल थे।  इनमें बैंक क्लर्क से लेकर विदेशी मुद्रा शाखा के अधिकारी और बैंक ऑडिटर से लेकर क्षेत्रीय शाखाओं के वरिष्ठ अधिकारी तक शामिल हैं। पीएनबी की इंटरनल रिपोर्ट में भी यह माना गया है कि बैंक के शीर्ष स्तर तक यह जानकारी थी कि बीते कुछ वर्षो से मुंबई ब्रैडी हाउस ब्रांच में बड़े स्तर पर कर्ज देने का काम हो रहा है लेकिन किसी ने इसके पीछे की वजह जानने की कोशिश नहीं की।

ये तीनों खबरें बता रही हैं कि देश की बैंकिंग व्यवस्था ठीक नहीं चल रही है। व्यवस्था में कहीं न कहीं कोई बड़ी गड़बड़ी है। जरा इन आंकड़ों पर गौर करिए कि पिछले दस वर्षो में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने कुल 9.20 लाख करोड़ रुपए का मुनाफा कमाया और 6.57 लाख करोड़ रुपए डूबत कर्ज में डाल दिया। यानी ये वो राशि है जिसे बैंकों ने विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी और उन जैसे दूसरे लोगों को कर्ज दिया और उस कर्ज की वसूली नहीं हो सकी! जाहिर सी बात है कि बैंक इसकी भरपाई अपने मुनाफे से ही करेंगे! यानी 9.20 लाख करोड़ का वास्तविक मुनाफा घटकर 2.63 लाख करोड़ रु. रह गया। 

बात केवल मोदी, माल्या या चोकसी की ही नहीं है। आपको याद होगा कि 2.54 लाख करोड़ रुपए हड़प लेने वाले 12 बड़े डिफाल्टर्स भूषण स्टील, भूषण पावर एंड स्टील, लैंको इन्फ्रा, एस्सार स्टील, आलोक इंडस्ट्रीज, एमटेक ऑटो, मोनेट इस्पात, इलेक्ट्रोस्टील स्टील्स, इरा इन्फ्रा, जेपी इन्फ्राटेक, एबीजी शिपयार्ड, ज्योति स्ट्रक्चर के नाम सार्वजनिक हुए थे। इसके अलावा और भी सूची आई थी जिसमें एशियन कलरकोटेड इस्पात, ईस्ट कोस्ट एनर्जी, विनसम डायमंड्स, रेई एग्रो, महुआ मीडिया, जायसवाल निको, वीडियोकॉन, रुचि सोया, एस्सार प्रोजेक्ट्स, जयबालाजी इंडस्ट्रीज, ट्रांसट्वाय इंडिया, जूम डेवलपर्स, एस.कुमार, सूर्या विनायक, इंडियन टेक्नोमैक, राजा टेक्सटाइल्स और न जाने कितने नाम शामिल थे। यह सूची बहुत लंबी है।

सवाल यह है कि इनके खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई क्यों नहीं की गई? सवाल यह भी है कि आर्थिक घोटाले में जिनका नाम आता है या जो पकड़े जाते हैं, क्या केवल वही दोषी हैं? क्या उनको एस्केप रूट बनाया जाता है? जो डिसीजन मेकर्स होते हैं, जिनके दबाव में आकर बैंक के चेयरमैन या दूसरे लोग इसमें इन्वॉल्व होते हैं। क्या उन लोगों को पकड़ा जाता है?  चाहे सरकार किसी की भी रही हो। यह सवाल मेरे मन में हमेशा रहा है। 

मैंने पार्लियामेंट में लगातार यह सवाल उठाया कि जिन लोगों को पहले कर्ज दिया था और जो  डिफाल्टर हैं, उन्हें क्या दूसरे नाम से कर्ज दिया गया? स्टैंडिंग कमेटी ऑन द फाइनांस के मेंबर के रूप में मैंने हिंदुस्तान के सभी बैंकों को इस संबंध में चिट्ठी लिखी लेकिन एक का भी जवाब नहीं आया। मैंने कई रिमाइंडर भी भेजे लेकिन बैंकों ने कोई उत्तर नहीं दिया। उसके बाद मैंने वित्त मंत्री से भी कहा, पार्लियामेंट में भी सवाल उठाया लेकिन किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया।

यह सवाल मेरे मन में खटकता रहा कि ऐसा रवैया आखिर क्यों? मेरे मन में यह सवाल अभी भी है कि रघुराम राजन जैसे काबिल गवर्नर को क्यों नहीं कंटीन्यू किया गया? दरअसल वे ढूंढ रहे थे कि दीमक कहां लगी हुई है? 
डिमोनेटाइजेशन को लेकर भी खूब हल्ला मचा। डिमोनेटाइजेशन का उद्देश्य था कि ब्लैक मनी करेंसी सिस्टम से बाहर हो। रिजर्व बैंक के आंकड़े बता रहे हैं कि जितनी करेंसी डिमोनेटाइजेशन से बाहर निकाली उससे ज्यादा सिस्टम में आ चुकी है। और जहां तक भारत को कैशलेस इकोनॉमी की ओर ले जाने की बात हो रही है तो यह केवल भुलावा है। 

मैं अभी स्वीडन में हूं और मैं देख रहा हूं कि होटल से लेकर रेस्टोरेंट तक कोई भी कैश नहीं लेता। इसे कहते हैं कैशलेस इकोनॉमी। हमारे यहां तो वास्तव में पॉलिटिकल सिस्टम यानी चुनाव पर नजर होती है। आप जानते हैं कि चुनाव में कितना खर्च होता है। 10 और 20 लाख रु. में चुनाव की बात केवल भ्रम है। हकीकत में करोड़ों करोड़ रु. में चुनाव होते हैं। इकोनॉमी कैशलेस हो गई तो चुनाव के लिए पैसे कहां से आएंगे? इसीलिए रास्तों को बंद नहीं किया जा रहा है। 

कहने को तो कार्रवाई के लिए कमेटियां बनी हुई हैं लेकिन ये कमेटियां कैसे काम कर रही हैं, यह सबको मालूम है। मेरे एक मित्र हैं जो बैंकिंग व्यवस्था के अच्छे जानकार हैं। वे कह रहे थे कि मुङो कमेटी में रख दो तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि आधे लोग कमेटी में से रिजाइन कर देंगे या छोड़कर चले जाएंगे या दूसरे दिन हम उन्हें निकाल देंगे। वास्तव में हर ओर गोरखधंधा चल रहा है। भ्रष्टाचार हमारी बैंकिंग व्यवस्था को हजम करने में लगा है। इसलिए यह जरूरी है कि इस मिलीभगत को रोका जाए। खासकर कर्ज को डूबत खाते में डालने की प्रक्रिया को और अधिक सख्त बनाने  की जरूरत है। दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो रहा है। 

यूपीए की सरकार ने जितना कर्ज डूबत खाते में डाला था, उससे ज्यादा कर्ज एनडीए सरकार के जमाने में डूबत खाते में डाला गया है। एक बात और महत्वपूर्ण है कि कर्ज डूबने की जिम्मेदारी जब तक तय नहीं करेंगे और उसके लिए सख्त सजा का प्रावधान नहीं करेंगे तब तक मिलीभगत पर रोक लगाना संभव नहीं होगा। देश आर्थिक तौर पर तबाह हो जाएगा।

और अंत में...
जम्मू कश्मीर में इस्लामिक स्टेट की उपस्थिति पूरे देश के लिए चिंता का विषय है। इस्लामिक स्टेट का झंडा तो कश्मीर घाटी में काफी दिनों से दिख रहा था लेकिन इस्लामिक स्टेट (जेएंडके) के चार आतंकियों के मुठभेड़ में मारे जाने की घटना के बाद इस खूंखार आतंकी संगठन की घाटी में मौजूदगी स्पष्ट हुई है। इस्लामिक स्टेट का इतिहास है कि वह जहां भी गया है, उस इलाके को तबाह कर दिया है। हमें वक्त रहते न केवल सचेत होना होगा बल्कि इतनी सख्त कार्रवाई भी करनी होगी कि घाटी में वह अपना प्रभाव न बना पाए।

(विजय दर्डा, लोकमत मीडिया के एमडी व वरिष्ठ स्तंभकार हैं। वे राज्यसभा सांसद रह चुके हैं)

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