अश्विनी महाजन का ब्लॉग: आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना से अर्थव्यवस्था को होगा लाभ

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 26, 2022 03:32 PM2022-08-26T15:32:57+5:302022-08-26T15:38:27+5:30

कहा गया कि देश के विकास का एकमात्र यही सही रास्ता है, और निजी क्षेत्र अथवा निजी उद्यमिता के माध्यम से यह इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि निजी क्षेत्र के पास न तो संसाधन हैं, न ही जोखिम लेने की क्षमता और इच्छाशक्ति और न ही दीर्घकालीन दृष्टि।

The economy will benefit from the concept of self-reliant India | अश्विनी महाजन का ब्लॉग: आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना से अर्थव्यवस्था को होगा लाभ

अश्विनी महाजन का ब्लॉग: आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना से अर्थव्यवस्था को होगा लाभ

Highlightsकुछ वस्तुओं के उत्पादन के लिए निजी उद्यम को उत्पादन की अनुमति तो मिली, लेकिन उसमें भी लाइसेंसिंग व्यवस्था लागू कर दी गई। 2001 में चीन द्वारा विश्व व्यापार संगठन में सदस्यता लेने के बाद सस्ते चीनी उत्पादों की बाढ़ सी आ गई और देश में उद्योगों का पतन होना शुरू हुआ।आयातों में वृद्धि के साथ विदेशों पर निर्भरता बढ़ गई।

भारत के नीति-निर्माताओं के लिए आत्मनिर्भरता कोई नया शब्द नहीं है। आजादी के बाद पं जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में योजनागत विकास के नाम पर जो नीति अपनाई गई, उसे भी आत्मनिर्भर भारत ही कहा गया था। लेकिन भारत के योजनागत विकास के लिए जो कार्यनीति अपनाई गई, जिसे अर्थशास्त्री महालनोबिस कार्यनीति के नाम से पुकारते हैं, के अंतर्गत भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए बड़े और मूलभूत उद्योगों की स्थापना, बड़े बांधों के निर्माण सहित देश को एक मजबूत औद्योगिक ढांचा देने की बात कही गई थी। 

इसे कहा तो गया आत्मनिर्भरता की कार्यनीति, लेकिन प्रारंभिक रूप से इसके कारण विदेशों पर निर्भरता इतनी बढ़ गई कि 1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद हमें 3 वर्षों तक योजना की छुट्टी करनी पड़ी, क्योंकि योजना को कार्यान्वित करने के लिए जिन आर्थिक संसाधनों की जरूरत थी, वे देश के पास थे ही नहीं। देश में औद्योगीकरण के लिए मूलभूत जिम्मेदारी सार्वजनिक क्षेत्र को सौंपी गई। 

कहा गया कि देश के विकास का एकमात्र यही सही रास्ता है, और निजी क्षेत्र अथवा निजी उद्यमिता के माध्यम से यह इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि निजी क्षेत्र के पास न तो संसाधन हैं, न ही जोखिम लेने की क्षमता और इच्छाशक्ति और न ही दीर्घकालीन दृष्टि। इसलिए देश के विकास का जिम्मा सार्वजनिक क्षेत्र को ही उठाना होगा। धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था के लगभग हर क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र का बोलबाला हो गया। कुछ वस्तुओं के उत्पादन के लिए निजी उद्यम को उत्पादन की अनुमति तो मिली, लेकिन उसमें भी लाइसेंसिंग व्यवस्था लागू कर दी गई। 

सरकारी क्षेत्र के दबदबे और निजी क्षेत्र का दम घोंटती आर्थिक नीतियों ने देश में जो व्यवस्था कायम की, उसका असर यह हुआ कि देश में जो भी उत्पादन होता था वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धात्मक नहीं होता था। बाद में उदारीकरण की नीतियों के चलते निजी उद्यमों के लिए तो द्वार खुल गए लेकिन साथ ही विदेशों से आयातों को भी एकाएक खोल दिया गया। आयातों में वृद्धि के साथ विदेशों पर निर्भरता बढ़ गई। 2001 में चीन द्वारा विश्व व्यापार संगठन में सदस्यता लेने के बाद सस्ते चीनी उत्पादों की बाढ़ सी आ गई और देश में उद्योगों का पतन होना शुरू हुआ।

ऐसे में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2020 में आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना को देश के समक्ष प्रस्तुत किया तो उसका स्वागत हुआ और यह माना गया कि भूमंडलीकरण की आंधी में जो उद्योग नष्ट हो गए, उन्हें पुनर्स्थापित करने का अवसर मिल पाएगा। आलोचकों ने यह कहकर उसे खारिज करने का प्रयास किया कि यह नेहरूवाद की पुनरावृत्ति हो जाएगी। हम आत्मनिर्भर भारत के लिए विदेशी आयातों पर रोक लगाएंगे तो देश में कार्यकुशलता घट जाएगी और अर्थव्यवस्था अंतर्मुखी हो जाएगी। ऐसे में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के माध्यम से यह संकेत दिए गए कि वर्ष 2020 की आत्मनिर्भरता की संकल्पना नेहरू की आत्मनिर्भरता की संकल्पना से अलग है।

वर्ष 2020 में नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित आत्मनिर्भर भारत की नीति का सबसे पहला और महत्वपूर्ण आयाम यह था कि आत्मनिर्भर भारत की इस संकल्पना में उन वस्तुओं का देश में उत्पादन बढ़ाना था, जिसके लिए देश विदेशों पर ज्यादा निर्भर करता था। ऐसे 14 उद्योगों की एक सूची तैयार की गई, जहां उन उद्योगों को पुनर्स्थापित करने की जरूरत थी। ये उद्योग थे इलेक्ट्रॉनिक्स, चिकित्सा उपकरण, थोक दवाएं, टेलीकॉम उत्पाद, खाद्य उत्पाद, एसी, एलईडी, उच्च क्षमता सोलर पीवी मॉड्यूल, ऑटोमोबाइल और ऑटो उपकरण, वस्त्र उत्पाद, विशेष स्टील, ड्रोन इत्यादि। 

Web Title: The economy will benefit from the concept of self-reliant India

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