ब्लॉग: दुनिया पर मंडरा रहा मंदी का साया पर भारत के लिए क्या हैं इसके मायने, क्या होगा असर

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: July 5, 2022 02:49 PM2022-07-05T14:49:25+5:302022-07-05T14:51:57+5:30

यह पहली बार नहीं है जब भारत ने वैश्विक मंदी में भी मजबूती बनाए रखी. नई सदी के पहले दशक में भी मंदी आई थी लेकिन भारत उसके दुष्प्रभाव से अछूता रहा था.

shadow of recession is hovering over world but why it is matter of relief for India | ब्लॉग: दुनिया पर मंडरा रहा मंदी का साया पर भारत के लिए क्या हैं इसके मायने, क्या होगा असर

दुनिया पर मंडरा रहा मंदी का साया (फाइल फोटो)

दुनिया के जल्दी ही भयावह मंदी की चपेट में आने की आशंका के बीच अच्छी खबर यह भी है कि भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. मंदी के दुष्प्रभाव से भारत के अलावा चीन की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित नहीं होगी. अमेरिका, यूरोप तथा विश्व की अन्य मजबूत अर्थव्यवस्थाओं की जड़ें संभावित मंदी से हिल सकती हैं. 

रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनिया की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर डाला है. युद्ध के पहले दो साल तक कोविड-19 महामारी से दुनिया के तमाम देशों की अर्थव्यवस्था की रफ्तार लगभग थम सी गई थी. भारत में भी विकास की दर ऋणात्मक हो गई थी लेकिन उसने जल्दी ही खुद को संभाल लिया जबकि अन्य राष्ट्र ऐसा नहीं कर सके. 

कोविड-19 पर नियंत्रण पाने के बाद जैसे-तैसे आर्थिक महाशक्तियां एवं मजबूत बुनियाद वाली अर्थव्यवस्था वाले देश संभलने की कोशिश कर रहे थे कि युद्ध छिड़ गया. युद्ध से पूरी दुनिया पर प्रभाव पड़ा है, मगर सबसे ज्यादा परेशानी अमेरिका तथा यूरोपीय संघ के सदस्य देशों को हो रही है क्योंकि वे कई मायनों में रूस एवं यूक्रेन पर निर्भर थे. 

ग्लोबल ब्रोकरेज फर्म नोमुरा होल्डिंग्स ने मंदी को लेकर बड़ी चेतावनी दी है. उसके  मुताबिक एक साल के भीतर दुनिया की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को भयावह मंदी से जूझना पड़ेगा. यह मंदी पिछली सदी में तीस के दशक में आई मंदी जैसी ही गंभीर हो सकती है और इससे भारत व चीन को छोड़कर दुनिया के अन्य सभी देशों में महंगाई अनियंत्रित हो जाएगी. कर्ज की दरें बढ़ेंगी तथा अर्थव्यवस्था के पहिए सुस्त पड़ जाएंगे. 

यह मंदी बेरोजगारी का संकट भी पैदा कर सकती है और अगर कृषि क्षेत्र ने उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं किया तो अर्थव्यवस्था को संभालना बेहद मुश्किल हो जाएगा. रिपोर्ट में कहा गया है कि यूरोपीय संघ के देशों के अलावा जापान, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, अमेरिका, ब्रिटेन मंदी से सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे. इन पर आश्रित विकासशील तथा गरीब देशों की अर्थव्यवस्थाएं बड़े बुरे दिन देखेंगी. 

गरीब तथा विकासशील देशों में मंदी के कारण सामाजिक असंतोष भी उभर सकता है. भारत इस संकट से बच जाएगा क्योंकि मोदी सरकार ने पिछले आठ वर्षों में अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए दूरगामी कदम उठाए. उसके कारण कोविड-19 से उत्पन्न संकट को भारत आसानी से झेल गया और महामारी का प्रकोप कम होते ही भारतीय अर्थव्यवस्था ने रफ्तार पकड़ ली. इस वक्त हर तिमाही में भारत की अर्थव्यवस्था 8 से 9 प्रतिशत की दर से वृद्धि दर्शा रही है और यह भविष्य के लिए अच्छा संकेत है. 

दुनिया की तमाम रेटिंग एजेंसियों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व बैंक ने भी भविष्यवाणी की है कि भारत की अर्थव्यवस्था 8 से 8.5 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ेगी. इसके अलावा पिछले चार वर्षों से भारत में मानसून सामान्य रहा है जिसके फलस्वरूप कृषि क्षेत्र कोविड-काल में भी चार प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ा. 

इस वर्ष भी मानसून को लेकर अच्छी खबर है. भारत में अच्छा मानसून अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करता है. यह पहला मौका नहीं है जब भारत ने वैश्विक मंदी में भी मजबूती बनाए रखी. नई सदी के पहले दशक में भी मंदी आई थी लेकिन भारत उसके दुष्प्रभाव से लगभग अछूता रहा था. हमारी सरकार भी मंदी की आहट से सचेत है और वह निश्चित रूप से इस संकट को भारत से दूर रखने में सफल रहेगी.

Web Title: shadow of recession is hovering over world but why it is matter of relief for India

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