प्रकाश बियाणी का ब्लॉग: चीन आर्थिक मोर्चे में बैकफुट पर, क्या हम फ्रंट पर खेलेंगे?
By Prakash Biyani | Published: July 17, 2020 03:21 PM2020-07-17T15:21:47+5:302020-07-17T15:21:47+5:30
सरकार ने इन कंपनियों को सारे संसाधन व संरक्षण उपलब्ध करवाए, पर किसी से प्रतिस्पर्धा न होने से ये राजनेताओं और अफसरों के लिए सोने की खान और श्रमिकों के लिए सैरगाह बन गए. इनमें श्रमिकों की संख्या तो बढ़ती गई, पर उत्पादन घटता गया. उन दिनों सरकार तय करती थी कि निजी क्षेत्न क्या बनाएगा और कितना बनाएगा.
भारत और चीन की अर्थव्यवस्था का अतीत समान है, पर वर्तमान नहीं. जब हम गुलाम थे तब चीन अफीमची देश था. 1949 में माओ त्से तुंग ने चीन में साम्यवादी तानाशाही शासन व्यवस्था लागू की. आजाद भारत की सरकार ने अर्थव्यवस्था के लिए रशियन मॉडल अपनाया. प्रतिबंधित अर्थव्यवस्था के तहत भारत सरकार ने सरकारी कंपनियां स्थापित कीं जैसे ओएनजीसी, एलआईसी, एयर इंडिया, भेल, भिलाई स्टील प्लांट आदि.
सरकार ने इन कंपनियों को सारे संसाधन व संरक्षण उपलब्ध करवाए, पर किसी से प्रतिस्पर्धा न होने से ये राजनेताओं और अफसरों के लिए सोने की खान और श्रमिकों के लिए सैरगाह बन गए. इनमें श्रमिकों की संख्या तो बढ़ती गई, पर उत्पादन घटता गया. उन दिनों सरकार तय करती थी कि निजी क्षेत्न क्या बनाएगा और कितना बनाएगा. मांग और आपूर्ति को नजरंदाज करने के कारण देश को न तो समाजवादी अर्थव्यवस्था के लाभ मिले और न ही मुक्त बाजार प्रणाली के फायदे मिले. भारत एक गैर प्रतिस्पर्धी आइलैंड बनकर रह गया.
1979-80 में क्रूड आइल दुनिया के मार्केट में महंगा हुआ. चीन और भारत दोनों के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा नहीं थी. इस संकट को चीन ने अवसर में बदला और हमने मिस किया. भारत ने क्रूड आइल के आयात खर्च की पूर्ति के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से कर्ज लिया और चीन ने इकोनॉमी दुनिया के लिए खोल दी. बहुराष्ट्रीय कम्पनियां चीन में कारखाने लगाने लगीं. चीन की इकोनॉमी मजबूत हुई. उससे चीन ने इंफ्रास्ट्रक्चर सड़क, रेल और पोर्ट्स बनाए. इसके बाद चीन से हम जो पिछड़े तो आज तक उसे पकड़ नहीं पाए हैं.
आधे अधूरे आर्थिक सुधार के कारण भारत में उद्योग स्थापना और उद्योग संचालन आसान नहीं हुआ. हमारे मार्केट में विदेशी सामान तो खूब बिकने लगे पर मैन्युफैक्चरिंग में हम पिछड़ते ही चले गए. भारत में विदेशी कम्पनियां केवल सामान बेचने आईं, मैन्युफैक्चरिंग के लिए उन्होंने चीन को चुना. कोरोना महामारी के पाप के बाद पहली बार चीन आर्थिक मोर्चे पर बैकफुट पर है. पर क्या हम दुश्मन की भूल को अपने फायदे में बदलने को तैयार हैं?