प्रकाश बियाणी का ब्लॉगः ब्याज दर कटौती की मार झेलते बुजुर्ग

By Prakash Biyani | Published: January 21, 2020 12:05 PM2020-01-21T12:05:03+5:302020-01-21T12:05:03+5:30

सेविंग बैंक अकाउंट बैंकों के लिए सबसे महंगा प्रोडक्ट है. इनके मैनेजमेंट के लिए बैंकों का संपूर्ण नेटवर्क, सारे एटीएम और सारा स्टाफ लगता है. इसके लिए बैंकों को भारी खर्च करना पड़ता है.

Prakash Biyani's blog: Elders facing interest rate cuts | प्रकाश बियाणी का ब्लॉगः ब्याज दर कटौती की मार झेलते बुजुर्ग

प्रकाश बियाणी का ब्लॉगः ब्याज दर कटौती की मार झेलते बुजुर्ग

बैंक के जमा खाते हैं- करंट अकाउंट, सेविंग बैंक अकाउंट और फिक्स्ड डिपाजिट. आम तौर पर रोजमर्रा के लेन-देन के लिए कारोबारी करंट अकाउंट खोलते हैं. इनमें बैलेंस लगभग न्यूनतम होता है. बैंक इस बैलेंस पर ब्याज नहीं देते बल्कि खातेदार को दी जानेवाली सुविधाओं पर शुल्क वसूल करते हैं. इन खातों के बैलेंस के भरोसे बैंक कर्ज वितरण नहीं कर सकते. बैंकों में सबसे ज्यादा सेविंग बैंक अकाउंट हैं. इनमें नौकरीपेशा लोगों का वेतन और लोगों की रोजमर्रा की बचत जमा होती है. बैंक इन खातों के बैलेंस पर 3 से 4 प्रतिशत ब्याज देते हैं. आम धारणा है कि इन खातों से बैंकों को सबसे कम लागत की पूंजी मिलती है, पर भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन रजनीश कुमार का कहना है कि सेविंग बैंक अकाउंट बैंकों के लिए सबसे महंगा प्रोडक्ट है. इनके मैनेजमेंट के लिए बैंकों का संपूर्ण नेटवर्क, सारे एटीएम और सारा स्टाफ लगता है. इसके लिए बैंकों को भारी खर्च करना पड़ता है.

तदनुसार, बैंकों की ऋण वितरण क्षमता फिक्स्ड डिपाजिट्स पर निर्भर है जो निश्चित अवधि के लिए बैंकों को मिलती हैं.  इसे ही वे कर्ज के रूप में वितरित करके मुनाफा कमाते हैं. रिजर्व बैंक ने पिछली पांच क्रेडिट पॉलिसियों में बैंकों की ब्याज दरें घटाई हैं. इसी अनुपात में बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट की ब्याज दरें घटा रहे हैं. इस ब्याज कटौती से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं अपनी जीवन भर की बचत बैंकों में जमा करनेवाले सीनियर सिटिजन्स. ये वे जमाकर्ता हैं जो डरते हैं कि शेयर मार्केट में निवेश किया तो उनकी बचत डूब सकती है.  बैंक में चाहे कम रिटर्न मिले, पर पूंजी सुरक्षित है तो जरूरत पड़ने पर आसानी से विद्ड्रॉ की जा सकती है. फिक्स्ड डिपाजिट पर जब ब्याज दर 8 या 9 फीसदी थी तब सीनियर सिटिजन्स को एक फीसदी अतिरिक्त ब्याज मिलता था. इसे भी बैंकों ने अब आधा कर दिया है.

महंगाई बढ़ने के साथ फिक्स्ड डिपाजिट पर रिटर्न घटने से इन जमाकर्ताओं की वृद्धावस्था की सारी फायनेंशियल प्लानिंग गड़बड़ा गई है. कर्ज वितरण के लिए निश्चित अवधि की सबसे ज्यादा स्थायी पूंजी उपलब्ध करवाने वाले इन जमाकर्ताओं की बैंकों को भी चिंता करना चाहिए. क्या हमारे देश के 12 करोड़ सीनियर सिटिजन्स कंफर्टेबल जिंदगी के हकदार नहीं हैं?

Web Title: Prakash Biyani's blog: Elders facing interest rate cuts

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