विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए नियम-कानूनों की दरकार

By गिरीश्वर मिश्र | Updated: June 3, 2025 07:46 IST2025-06-03T07:46:46+5:302025-06-03T07:46:49+5:30

परिणाम यह होता है कि हजारों की संख्या में विद्यार्थी उच्च शिक्षा पाने के लिए अकेले अमेरिका जाते हैं

Need for rules and regulations for foreign universities | विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए नियम-कानूनों की दरकार

विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए नियम-कानूनों की दरकार

आकार की दृष्टि से आज भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी शिक्षा व्यवस्था है जिसमें लगभग 44 हजार उच्चशिक्षा  के  संस्थानों और देशी संस्थाओं के साथ एक विशाल व्यवस्था खड़ी हो चुकी है. इनमें 1115 विश्वविद्यालय या उसी तरह के संस्थान हैं. भारत देश की जनता की औसत आयु 29 वर्ष के करीब आंकी गई है.

इस दृष्टि यह एक युवा देश है और वह एक गुणवत्ता वाली उच्च शिक्षा का हकदार है. उच्च शिक्षा में नामांकन बढ़ाना कई कारणों से देश की आवश्यकता बन चुका है. तभी युवा देश होने का लाभ या डेमोग्राफिक डिविडेंड मिल सकेगा. इस संदर्भ में यह भी गौरतलब है कि उच्च शिक्षा का भारतीय अतीत नि:संदेह रूप से अत्यंत गौरवशाली रहा है. लेकिन निकट अतीत में अंग्रेजों की औपनिवेशिक नीति के तहत भारतीय शिक्षा ब्रिटेन की नकल करते हुए नई चाल में ढल चली. उसने भारतीय शिक्षा का हाशियाकरण किया और शिक्षा के पैमाने बदल डाले.

वित्त ही मुख्य होता गया और उसी के जाल में हम फंसते गए. स्थिति बिगड़ती गई. स्वतंत्र भारत में भी ढांचा वही रहा और शिक्षा को नीति में वह वरीयता न मिल सकी जिसकी उसे दरकार थी. आज विद्यार्थियों और अध्यापकों के आचरण को लेकर कई प्रश्न खड़े हैं. अयोग्य डिग्रीधारी या शिक्षित बेरोजगार बढ़ने लगे. शिक्षा के परिसर प्रदूषित होने लगे. आज की घोर वास्तविकता यही है कि समकालीन उच्च शिक्षा अनेक दुविधाओं और अंतर्विरोधों से ग्रस्त है. वह गुणवत्ता, समता, समावेशिकता, सांस्कृतिक दृष्टि से प्रासंगिकता और उपलब्धता की विकराल चुनौतियों से जूझ रही है. ज्ञान कहीं का हो, आदरणीय है, पर यदि वह हमारे अस्तित्व को खतरे में डाले तो विचार करने की जरूरत पड़ती है.

अब खबर गर्म है कि विदेशी विश्वविद्यालय के उपग्रह भारत में ज्ञान का प्रकाश फैलाएंगे. वैसे आज भी भारत की उच्च शिक्षा की धुरी मूलतः अमेरिका और ब्रिटेन में ही हैं. ज्ञान की विषयवस्तु, परिधि, प्रकार और प्रक्रिया में वे बड़ी भूमिका निभाते आ रहे हैं. पर वह बहुतों को नाकाफी लगती है. परिणाम यह होता है कि हजारों की संख्या में विद्यार्थी उच्च शिक्षा पाने के लिए अकेले अमेरिका जाते हैं. अब विदेशी विश्वविद्यालय भारत में पहुंच कर परिसर खोल रहे हैं. विगत वर्षों में अनेक विदेशी विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधिमंडल भारत में आ चुके हैं और इस देश में शिक्षाकेंद्र शुरू करने में अपनी रुचि व्यक्त कर चुके हैं.

अनेक भारतीय विश्वविद्यालय भी विदेशी संस्थाओं के साथ कई तरह से सम्पर्क साध रहे हैं. इसके नियमन की मुकम्मल व्यवस्था अभी ठीक से कार्यान्वित नहीं हो सकी है. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग कुछ नियम बना रहा है और दिशानिर्देश भी जारी किए हैं.

इसी तरह अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद भी कार्रवाई कर रही है. इस बीच देश में उच्च शिक्षा में सार्वजनिक क्षेत्र की भागीदारी कम हुई है और निजी शिक्षा संस्थानों की बाढ़ सी आ गई है और सैकड़ों  डीम्ड विश्वविद्यालय अस्तित्व में आ चुके हैं.

इनमें कुछ ऐसे भी हैं जो नवाचार, नई विधियों और नए पाठ्यक्रमों में भी रुचि ले रहे हैं. विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए आवश्यक नियम कानून बनाने होंगे और एक पारदर्शी व्यवस्था भी लानी होगी तभी शिक्षा में उत्कृष्टता का सपना पूरा हो सकेगा.

Web Title: Need for rules and regulations for foreign universities

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