नई सार्वजनिक इकाइयां स्थापित करने की जरूरत, भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग
By भरत झुनझुनवाला | Published: July 19, 2021 02:13 PM2021-07-19T14:13:31+5:302021-07-19T14:14:54+5:30
वर्तमान वर्ष 2021-2022 के बजट में केंद्र सरकार ने पूंजी खर्चो में लगभग 35 प्रतिशत की वृद्धि की है और वर्तमान वर्ष में 5.5 लाख करोड़ रुपए का पूंजी खर्च करने का प्रस्ताव है.
तकनीकों की वैश्विक प्रतिस्पर्धा में हम पिछड़ते जा रहे हैं. चीन ने सफलतापूर्वक मंगल ग्रह पर अपना यान उतारा है, सूर्य के ताप के बराबर का ताप अपनी प्रयोगशाला में बना लिया है और लड़ाकू विमानों को राफेल या दूसरी कंपनियों से खरीदने के स्थान पर स्वयं बनाने में सफलता हासिल की है.
यदि हमें तकनीक के क्षेत्र में अपनी पैठ बनानी है तो नई तकनीकों के सृजन में भारी निवेश करना जरूरी है. लेकिन कोविड के इस काल में वर्तमान चालू खर्चो को सरकार पोषित नहीं कर पा रही है. यद्यपि वर्तमान वर्ष 2021-2022 के बजट में केंद्र सरकार ने पूंजी खर्चो में लगभग 35 प्रतिशत की वृद्धि की है और वर्तमान वर्ष में 5.5 लाख करोड़ रुपए का पूंजी खर्च करने का प्रस्ताव है परंतु यह फलीभूत होगा कि नहीं, यह निश्चित नहीं है. इस निवेश में नई तकनीकों का क्या हिस्सा है, यह भी स्पष्ट नहीं है. जबकि आने वाले समय में तकनीक का ही बोलबाला होगा.
जिस देश के पास आधुनिकतम तकनीकें होंगी, वही जीतेगा. प्रश्न है कि इसके लिए रकम कहां से आए? सरकारी इकाइयां तीन प्रकार की हैं. पहली इकाइयां सार्वजनिक सुविधाओं को प्रदान करने वाली हैं. जैसे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया हर जिले में क्लीयरिंग हाउस चलाता है अथवा जैसे सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन द्वारा पूरे देश के विद्यालयों को नियमित किया जाता है.
इस प्रकार की सार्वजनिक इकाइयों को बनाए रखना जरूरी है. इन कार्यो को निजी हाथों में नहीं छोड़ा जा सकता. दूसरी इकाइयां वह हैं जिनके समकक्ष निजी इकाइयां वर्तमान में सफल हैं जैसे स्टेट बैंक को छोड़कर अन्य बैंक के सामने प्राइवेट बैंक सफल हैं. अथवा जैसे एयर इंडिया के सामने इंडिगो एवं स्पाइस जेट एयरलाइन सफल हैं.
अथवा जैसे तेल कंपनियों में इंडियन ऑइल के सामने रिलायंस सफल है. इन क्षेत्रों में सार्वजनिक इकाइयों को बनाए रखने का औचित्य नहीं है क्योंकि इन सेवाओं को निजी उद्यमी उपलब्ध करा सकते हैं. यह सही है कि निजी उद्यमियों द्वारा जनता से अधिक रकम वसूल कर मुनाफाखोरी की जा सकती है लेकिन इस समस्या को नियंत्रण व्यवस्था सुदृढ़ करके संभाला जा सकता है.
जैसे ट्राई ने मोबाइल सेवा प्रदान करने वाली निजी कंपनियों पर नियंत्रण कर देश में सस्ती मोबाइल सेवाएं उपलब्ध कराई हैं. इसी प्रकार रिजर्व बैंक द्वारा निजी बैंकों के नियंत्रण से सस्ती बैंकिंग सेवाएं दिलाई जा सकती हैं. वर्तमान में सार्वजनिक इकाइयों का ‘मार्केट कैपिटलाइजेशन’ यानी उनके शेयरों की बाजार में कीमत लगभग 20 लाख करोड़ है.
इसके सामने वर्तमान वर्ष 2021-2022 में सरकार द्वारा कुल पूंजी खर्च केवल 5.5 लाख करोड़ रुपए किया जा रहा है. अत: यदि वर्तमान सार्वजनिक इकाइयों का निजीकरण कर दिया जाए तो हमें 20 लाख करोड़ की विशाल रकम मिल सकती है. इसमें यदि एक-चौथाई इकाइयां जैसे स्टेट बैंक को मान लें जिनका निजीकरण नहीं करना चाहिए; तो हमें लगभग 15 लाख करोड़ की रकम मिल सकती है.
इस विशाल रकम का हमें नई तकनीकों के सृजन में तत्काल निवेश करना चाहिए. जैसे एक इकाई आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को बढ़ावा देने के लिए बनाई जा सकती है. वर्तमान में मेडिकल आदि क्षेत्रों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की सहायता से डॉक्टरों द्वारा पर्चे आसानी से लिखे जा रहे हैं और रोगियों को लाभ मिल रहा है.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा रोगी के तमाम टेस्ट का अध्ययन करके डॉक्टर को सुझाव दिया जाता है. दूसरे, छठी पीढ़ी के इंटरनेट के सृजन के लिए हमें निवेश करना चाहिए. तीसरे, इंटरनेट ऑफ थिंग्स जैसे इंटरनेट के माध्यम से किसी दफ्तर की सुरक्षा व्यवस्था को संचालित करना, एयर कंडीशनिंग को नियंत्रित करना इत्यादि में निवेश करने में बहुत संभावनाएं हैं.
चौथा, आने वाले समय में जेनेटिक जीन परिवर्तन से नई दवाएं इत्यादि बनाई जा रही हैं जिस पर भी हमें निवेश करना चाहिए. जैसे आलू की प्रजाति में सुधार करके उसके माध्यम से विटामिन परोसा जा सकता है. पांचवा आयुर्वेदिक, यूनानी एवं होम्योपैथी जैसी वैकल्पिक दवाओं के विस्तार के लिए हमें इकाई बनानी चाहिए जो कि अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार इन पर शोध इत्यादि करें.
इन तमाम तकनीकी संभावनाओं को फलीभूत करने के लिए जरूरी है कि देश वर्तमान की तुलना में नई तकनीकों के सृजन में 10 गुना निवेश बढ़ाए. वर्तमान बजट के अंतर्गत यह संभव नहीं है. इसलिए सरकार को कठोर कदम उठाते हुए स्टेट बैंक को छोड़ कर अन्य सरकारी बैंकों, एयर इंडिया, तेल कंपनियों आदि का निजीकरण कर देना चाहिए और मिली रकम का निवेश नई तकनीकों के आविष्कार में करना चाहिए.