Dhanteras 2024: धन के साथ धर्म की अमृतवर्षा का पर्व?, जानिए पौराणिक मान्यता
By ललित गर्ग | Updated: October 29, 2024 05:49 IST2024-10-29T05:48:19+5:302024-10-29T05:49:37+5:30
Dhanteras 2024: शास्त्रों में बताया गया है कि इस दिन कुछ उपाय करने से घर में धन-धान्य के भंडार भर जाते हैं और मां लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है.

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Dhanteras 2024: दीपावली से जुड़े पांच पर्वों में दूसरा महत्वपूर्ण पर्व है धनतेरस.धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है और इस दिन खरीदारी और दान-पुण्य करना भी शुभ माना जाता है. इस दिन को धन त्रयोदशी और धन्वंतरि जयंती के नाम से भी जाना जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के जनक धन्वंतरि देव समुद्र मंथन से प्रकट हुए थे और प्रकट होते समय उनके हाथ में अमृत से भरा कलश था. धनतेरस अर्थव्यवस्था का महापर्व है. अर्थ से अर्थव्यवस्था का सम्यक एवं गुणात्मक संधान.
इस दिन घर एवं बाजारों में आशा के दीप सजते हैं, मुद्रा का आदान-प्रदान होता है. मान्यता है कि इस दिन खरीदी गई चीजों में कई गुना वृद्धि हो जाती है. शास्त्रों में बताया गया है कि इस दिन कुछ उपाय करने से घर में धन-धान्य के भंडार भर जाते हैं और मां लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है.
तम मिटाती धनतेरस और प्रकाश बांटती लक्ष्मी यानी भारतीय पद्धति के अनुसार प्रत्येक आराधना, उपासना व अर्चना में आधिभौतिक, आध्यात्मिक और आधिदैविक इन तीनों रूपों का समन्वित व्यवहार होता है. इस मान्यतानुसार इस उत्सव में भी सोने, चांदी, सिक्के आदि के रूप में आधिभौतिक लक्ष्मी का आधिदैविक लक्ष्मी से संबंध स्वीकार करके पूजन किया जाता है.
भारतीय संस्कृति में धर्म-अर्थ-काम और मोक्ष जीवन के उद्देश्य रहे हैं. यहां इन्हें प्राप्त करने के लिए हमेशा से प्रयास होते रहे हैं. धनतेरस पर धन के साथ-साथ धर्म को भी यहां महत्व दिया गया है और दोनों के बीच समन्वय स्थापित किए जाने की आवश्यकता भी व्यक्त होती रही है लेकिन जब-जब इनके समन्वय के प्रयास कमजोर हुए हैं तब-तब समाज में एक असंतुलन एवं अराजकता का माहौल बना है.
शास्त्रों में कहा गया है कि धन की सार्थकता तभी है जब व्यक्ति का जीवन सद्गुणों से युक्त हो. लेकिन हाल के वर्षों में समृद्धि को लेकर हमारे समाज की मानसिकता और मानक बदले हैं. आज समृद्धि का अर्थ सिर्फ आर्थिक सम्पन्नता तक हो गया है. समाज में मानवीय मूल्यों और सद्विचारों को हाशिये पर डाल दिया गया है और येन-केन-प्रकारेण धन कमाना एवं धन की कामना करना ही सबसे बड़ा लक्ष्य बनता जा रहा है. आखिर ऐसा क्यों हुआ? क्या इस प्रवृत्ति के बीज हमारी परंपराओं में रहे हैं या यह बाजार के दबाव का नतीजा है? इस तरह की मानसिकता समाज को कहां ले जाएगी?
ये कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न हैं, जिन पर धनतेरस जैसे पवित्र पर्व पर मंथन जरूरी है. लक्ष्मीजी का स्वरूप त्रिगुणात्मक है. उनका वास तन, मन और धन तीनों में है. पांच प्रकार के सुख कहे गए हैं- तन, मन, धन, पत्नी और संतान. देवी भगवती कमला यानी लक्ष्मीजी के आठ रूप कहे गए हैं.
आद्य लक्ष्मी या महालक्ष्मी (कन्या), धन लक्ष्मी (धन, वैभव, निवेश, अर्थव्यवस्था), धान्य लक्ष्मी (अन्न), गजलक्ष्मी (पशु व प्राकृतिक धन), सनातना लक्ष्मी (सौभाग्य, स्वास्थ्य, आयु व समृद्धि), वीरा लक्ष्मी (वीरोचित लक्ष्मी अर्थात रक्षा, सुरक्षा), विजया लक्ष्मी (दिगदिगंत विजय), विद्या लक्ष्मी (विद्या, ज्ञान, कला विज्ञान), इन आठों स्वरूपों को मिलाकर महालक्ष्मी का पर्व बना दिवाली.दिवाली अर्थात दीप पर्व.
जहां इन आठों स्वरूपों का प्रकाश हो, वहां दिवाली निश्चित रूप से होती है. प्रकाश, पुष्टि, प्रगति की प्रार्थना के साथ. दूसरे अर्थ में समझिए. लक्ष्मीजी का वास एक लघु इकाई में है. एक माटी के दीपक में है. उसके प्रकाश में है. यही लक्ष्मी है. मन की लक्ष्मी. इसका आशय है कि तन, मन, धन, परिवार और संतान की पुष्टि एक दीप की तरह प्रकाशवान रहें. धनवर्षा के साथ, अमृतवर्षा के साथ.
समृद्धि की बदलती फिजा सद्संस्कारों को शिखर दे, वैचारिक दृष्टिकोण को रचनात्मकता दे, आधुनिकता के साथ पनपने वाली बुराइयों को विराम दे, ईमान और इंसानियत बटोरते हुए आगे बढ़े. आज कहां सुरक्षित रह पाया है-ईमान के साथ इंसान तक पहुंचने वाली समृद्धि का आदर्श? कौन करता है अपनी सुविधाओं का संयमन?
कौन करता है ममत्व का विसर्जन? कौन दे पाता है अपने स्वार्थों को संयम की लगाम? भले हमारे पास कार, कोठी और कुर्सी न हो लेकिन चारित्रिक गुणों की काबिलियत अवश्य हो क्योंकि इसी काबिलियत के बल पर हम अपने आपको महाशक्तिशाली बना सकेंगे, तभी हमारा धनतेरस मनाना सार्थक होगा.