भरत झुनझुनवाला का ब्लॉगः नोट छापना ही क्यों पसंद है सरकार को?
By भरत झुनझुनवाला | Published: July 13, 2020 01:31 PM2020-07-13T13:31:45+5:302020-07-13T13:31:45+5:30
मौद्रिक नीति के अंतर्गत रिजर्व बैंक नोट छापकर बैंकों को उपलब्ध करा देता है और बैंक द्वारा सरकार द्वारा जारी बांड खरीदे जाते हैं. इस व्यवस्था का प्रभाव भविष्य में पड़ता है. जैसे यदि आज मान लीजिए हमारे देश में 100 करोड़ रुपए की मुद्रा प्रचलन में है.
कोविड-19 का सामना करने के लिए रिजर्व बैंक नोट छाप रहा है. इसका रहस्य समझे सरकारी खर्च को पोषित करने के लिए तीन प्रकार से रकम जुटाई जाती है. पहला है कि सरकार टैक्स वसूल करे जैसे जीएसटी, आयात कर अथवा इनकम टैक्स से रकम उपार्जित कर वह अपने खर्चो को पोषित करती है. दूसरा उपाय है नोट छाप कर. रिजर्व बैंक नोट छापे और छापे गए नोटों को सरकार ऋण के रूप में हासिल करके अपने खर्चो को पोषित करे. तीसरा उपाय है कि सरकार बाह्य ऋण ले. ये ऋण विश्व या अपने घरेलू मुद्रा बाजार से लिए जा सकते हैं और सरकारी खर्च पोषित किए जा सकते हैं. विषय यह है कि इन तीन में से सरकार को नोट छापना ही क्यों पसंद है?
रकम जुटाने का पहला उपाय टैक्स है. इसमें टैक्स का बोझ तत्काल जनता पर पड़ता है. जैसे सरकार ने जीएसटी की दर 18 प्रतिशत से बढ़कर 24 प्रतिशत कर दी तो आप बाजार से जो माल खरीदेंगे, उस पर आज ही आपको अधिक रकम अदा करनी पड़ेगी.
मौद्रिक नीति के अंतर्गत रिजर्व बैंक नोट छापकर बैंकों को उपलब्ध करा देता है और बैंक द्वारा सरकार द्वारा जारी बांड खरीदे जाते हैं. इस व्यवस्था का प्रभाव भविष्य में पड़ता है. जैसे यदि आज मान लीजिए हमारे देश में 100 करोड़ रुपए की मुद्रा प्रचलन में है. रिजर्व बैंक ने 10 करोड़ की मुद्रा और छापी और सरकार ने यह 10 करोड़ की मुद्रा ऋण के रूप में बैंकों से हासिल कर ली. अब बाजार में माल पूर्ववत 100 करोड़ रुपए का ही है लेकिन मुद्रा 110 करोड़ की उपलब्ध हो गई. फलस्वरूप महंगाई बढ़ी. लेकिन इस महंगाई को बढ़ने में कुछ समय लग जाता है.
तीसरा उपाय घरेलू अथवा विश्व बाजार से सीधे ऋण लेने का है. इस ऋण पर जो ब्याज दिया जाता है उसका भार भी भविष्य में पड़ेगा. जैसे सरकार ने यदि आज 10 करोड़ का ऋण लिया तो उस पर एक करोड़ का जो ब्याज का भार होगा, वह आने वाले समय में पड़ेगा जबकि 10 करोड़ रुपया सरकार को तत्काल मिल जाएगा.
मूल विषय भविष्य और वर्तमान का है. वित्तीय नीति में हम वर्तमान जनता पर भार आरोपित करते हैं जिसका लाभ भविष्य में मिलता है. इसके विपरीत मौद्रिक और ऋण की नीति में लाभ वर्तमान में मिलता है जबकि भार भविष्य में पड़ता है. कोविड-19 संकट का सामना हमें वित्तीय नीति से टैक्स लगाकर करना चाहिए, नोट छाप कर अपने भविष्य को दांव पर नहीं लगाना चाहिए.