कृत्रिम विकास से लुप्त हुए सहज ज्ञान को लौटा सकता है एआई! 

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: July 30, 2025 05:24 IST2025-07-30T05:24:56+5:302025-07-30T05:24:56+5:30

जूलॉजी स्कूल के प्रोफेसर योसी योवेल और प्लांट साइंसेज एंड फूड सिक्योरिटी स्कूल की प्रोफेसर लीलाश हादानी ने पहली बार रिकॉर्ड किया कि स्वस्थ पौधे एक घंटे में एक बार पॉपकॉर्न जैसी ‘क्लिक’ ध्वनि निकालते हैं, जबकि तनावग्रस्त पौधे दर्जनों क्लिक निकालते हैं.  

AI bring back instinctive knowledge lost artificial evolution blog Hemdhar Sharma | कृत्रिम विकास से लुप्त हुए सहज ज्ञान को लौटा सकता है एआई! 

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Highlights जैविक विकास क्रम में हम मनुष्य शायद सबसे पुराने जीव हैं क्योंकि हमारा दिमाग सबसे जटिल चीज है. डिकोड करने की क्षमता हासिल कर सके तो शायद जीवन की शुरुआती अवस्था का पता भी लगाया जा सकता है.मनुष्य का रूप हमने कुछ लाख वर्ष पहले ही पाया है, उसके पहले न जाने कितने तरह के शारीरिक बदलावों से होकर गुजरे होंगे!

हेमधर शर्मा

इजराइल की तेल अवीव यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने हाल ही में एक अद्‌भुत खोज की है. उन्होंने दुनिया में पहली बार यह प्रमाणित किया है कि पौधों की आवाज को कीड़े सुन सकते हैं. पौधों से निकलने वाली ध्वनियों से उन्हें पता चलता है कि कौन से पौधे स्वस्थ हैं और कौन से बीमार, फिर उसी आधार पर अंडे देते हैं. अध्ययन के दौरान दो साल पहले जूलॉजी स्कूल के प्रोफेसर योसी योवेल और प्लांट साइंसेज एंड फूड सिक्योरिटी स्कूल की प्रोफेसर लीलाश हादानी ने पहली बार रिकॉर्ड किया कि स्वस्थ पौधे एक घंटे में एक बार पॉपकॉर्न जैसी ‘क्लिक’ ध्वनि निकालते हैं, जबकि तनावग्रस्त पौधे दर्जनों क्लिक निकालते हैं.  

धरती पर जैविक विकास क्रम में हम मनुष्य शायद सबसे पुराने जीव हैं क्योंकि हमारा दिमाग सबसे जटिल चीज है. यह जटिलता अरबों वर्षों के विकास क्रम का ही नतीजा हो सकती है और यदि कभी हम डिकोड करने की क्षमता हासिल कर सके तो शायद जीवन की शुरुआती अवस्था का पता भी लगाया जा सकता है.

जाहिर है कि मनुष्य का रूप हमने कुछ लाख वर्ष पहले ही पाया है, उसके पहले न जाने कितने तरह के शारीरिक बदलावों से होकर गुजरे होंगे! अगर आज कीड़े-मकोड़े तक पेड़-पौधों की भाषा समझ लेते हैं तो क्या कभी हमारे भीतर भी ऐसी क्षमता नहीं रही होगी? फिर वह लुप्त कैसे हो गई?

पिछले कुछ दशकों पर ही अगर हम नजर दौड़ाएं तो पाएंगे कि पूर्वजों से विरासत में मिला बहुत सारा ज्ञान हम धीरे-धीरे भूलते जा रहे हैं. विकास जिस रफ्तार से हो रहा है, परंपराएं उसी रफ्तार से खत्म हो रही हैं. प्रकृति का नियम है कि जो भी चीज उपयोग में नहीं आती वह धीरे-धीरे लुप्त होने लगती है. कहीं ऐसा तो नहीं कि कृत्रिम विकास की प्रक्रिया में हम अपने सहज-स्वाभाविक ज्ञान को खोते चले गए हों!

दुनिया में कोई भी चीज अनियंत्रित रफ्तार से नहीं चलती. सूरज-चांद-सितारे हों या धरती और अन्य ग्रह-नक्षत्र, सब निर्धारित गति से अपनी कक्षा में चलते हैं. धरती पर अन्य जीवों का भी अपना एक निर्धारित विकास-क्रम है. फिर हम मनुष्य ही क्यों बेलगाम विकास करते जा रहे हैं? कम्प्यूटर से अगर पुरानी चीजें डिलीट न की जाएं तो वह हैंग होने लगता है और नया डाटा स्टोर नहीं हो पाता.

इसी तरह हमारा दिमाग भी नई-नई चीजों को ग्रहण करने के लिए पुरानी यादें विस्मृत करता जाता है. चूंकि एआई के युग में नई-नई जानकारियां मिलने की रफ्तार बहुत तेज हो गई है,फलस्वरूप पुराना ज्ञान हम उसी रफ्तार से भूलते जा रहे हैं. लेकिन हर नई चीज अनमोल नहीं होती और हर पुरानी चीज खराब नहीं होती. जरूरत दोनों के बीच संतुलन साधने की है.

यह भी सच है कि विकास का पहिया उल्टी दिशा में कभी नहीं घूमता अर्थात पुरानी स्थिति में हम लौट नहीं सकते. ऐसे में नई परिस्थितियों के साथ संतुलन साधना ही एकमात्र उपाय है. पिछले दिनों खबर आई थी कि एआई के जरिये जीव-जंतुओं की भाषा समझने के प्रयास किए जा रहे हैं. अपनी कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रयोग क्या हम अपनी विस्मृत हो चुकी ज्ञान संपदा को हासिल करने के लिए नहीं कर सकते?

परंपरा जब रूढ़ि बन जाती है तो निष्प्राण हो जाती है. इसलिए शायद रूढ़ियों को देखकर ही हम पुरानी सारी चीजें व्यर्थ होने की धारणा बना लेते हैं. कबीरदासजी सदियों पहले कह गए हैं कि ‘सार-सार को गहि रहै, थोथा देय उड़ाय.’ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) को क्या हम नीर-क्षीर विवेक में पारंगत करके नई-पुरानी जानकारियों के समंदर में से अपने काम लायक चीजों का निचोड़ नहीं निकाल सकते हैं?

Web Title: AI bring back instinctive knowledge lost artificial evolution blog Hemdhar Sharma

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